वर्ल्ड बैंक के ग्रुप प्रेसिडेंट डेविड मेल्पर्स (World Bank Group President David Malpass) के अनुसार कोविड-19 महामारी की तुलना में अधिक लोग भूख से मरेंगें. उनके अनुसार कोविड-19 के असर और दुनियाभर में लॉकडाउन के असर (Worldwide lockdown effects) से पिछले तीन वर्षीं में गरीबी उन्मूलन (poor elimination) के लिए किये गए सभी कार्य व्यर्थ हो गए हैं. अनिमान है कि कोविड-19 के असर से इस वर्ष के अंत तक दुनिया में 6 करोड़ से अधिक आबादी गरीबी रेखा के नीचे पहुँच जायेगी क्योंकि दुनिया की अर्थव्यवस्था को 5 प्रतिशत से अधिक का झटका लगा है.
As we battle the #COVID19 pandemic, locust swarms represent an urgent double crisis.
This emergency for food supply + livelihoods places some of the world’s poorest & most vulnerable at even greater risk.
Read more on the @WorldBank Group's response: https://t.co/6BFosDYKw0
— David Malpass (@DavidMalpassWBG) May 21, 2020
अर्थव्यवस्था के गिरने से सबसे अधिक नुकसान गरीबों को ही होता है क्योंकि सरकार से इन्हें जो सहायता मिलती है उसमें कटौती कर दी जाती है और अनेक कल्याणकारी योजनायें बंद भी कर दी जातीं हैं.
विश्व बैंक ने दुनिया के 100 देशों को कोविड-19 से लड़ने के लिए 160 अरब डॉलर का ऋण भी दिया है और इसमें भारत भी शामिल है. इन 100 देशों में दुनिया की 70 प्रतिशत से अधिक आबादी बसती है. यह ऋण स्वास्थ्य सेवाओं, अर्थ व्यवस्था और सामाजिक कार्यों में मजबूती के लिए दिया गया है.
ऋण देते समय जो शर्तें हैं उसमें सरकारी निवेश, कॉन्ट्रैक्ट्स, खर्च और टैक्स वसूली में पारदर्शिता की बात भी की गई है. पर, सवाल यही है कि क्या इन विषयों पर हमारे देश में पारदर्शिता है? क्या सरकार कभी बताती
ग्लोबल रिपोर्ट ऑन फूड क्राइसिस 2020 (Global Report on Food Crisis 2020) नामक रिपोर्ट के अनुसार सामान्य अवस्था में, यानि कोविड-19 यदि नहीं रहता तब भी दुनिया में भीषण भुखमरी के शिकार लोगों की संख्या 13.5 करोड़ के पार रहती, पर अब जब कोविड-19 के कारण दुनिया की अर्थव्यवस्था लड़खड़ा रही है तब यह संख्या 26.5 करोड़ से भी अधिक होगी. भारत समेत दुनिया के 55 गरीब और विकासशील देशों पर इस समस्या का अधिक असर पड़ेगा. भीषण भुखमरी की समस्या वर्तमान में भी देशों में अंदरूनी युद्ध, जलवायु परिवर्तन और अर्थव्यवस्था के कारण विकराल है.
Eating a nutritious meal is now more important than ever to protect against infection and support recovery.
In #Chad we deliver nutrition assistance in hard-to-reach places and encourage breastfeeding to provide essential protection to infants. ???@WFP_Chad pic.twitter.com/9apChfzfmY
— World Food Programme (@WFP) May 21, 2020
लन्दन के किंग्स कॉलेज और ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी द्वारा किये गए एक संयुक्त अध्ययन के अनुसार कोविड-19 के प्रकोप के कारण भुखमरी उन्मूलन (Starvation eradication) के क्षेत्र में दुनिया ने पिछले 30 वर्षों में जितनी प्रगति की थी, वह एक झटके में समाप्त हो जायेगी. इससे इस वर्ष के अंत तक दुनिया के 8 प्रतिशत से अधिक आबादी जूझेगी. इस समस्या के और विकराल होने की संभावना है क्योंकि कोविड-19 से पार पाने के बाद अधिकतर देश उद्योगों और अर्थव्यवस्था की तरफ ध्यान देंगें, और भुखमरी से मुक्ति शायद ही किसी देश की प्राथमिकता है.
हमारे देश में वर्तमान में भी कुपोषण की गंभीर समस्या है. वर्ष 2050 तक आबादी लगभग 40 करोड़ और बढ़ चुकी होगी. वर्तमान में लगभग एक-तिहाई आबादी खून की कमी से ग्रस्त है. हरित क्रांति के पहले तक गेहूँ और चावल के अतिरिक्त बाजरा, ज्वार, मक्का और रागी जैसी फसलों की खेती भी भरपूर की जाती थी. इन्हें मोटा अनाज कहते थे और एक बड़ी आबादी, विशेषकर गरीब आबादी, का नियमित आहार थे.
पिछले वर्ष एनवायर्नमेंटल हेल्थ पर्सपेक्टिव नामक जर्नल में प्रकाशित एक लेख के अनुसार तापमान वृद्धि से गेहूं, चावल और जौ जैसी फसलों में प्रोटीन की कमी हो रही है. अभी लगभग 15 प्रतिशत आबादी प्रोटीन की कमी से जूझ रही है और वर्ष 2050 तक लगभग 15 करोड़ अतिरिक्त आबादी इस संख्या में शामिल होगी.
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों के अनुसार विश्व की लगभग 76 प्रतिशत आबादी अनाजों से ही प्रोटीन की भरपाई करती है, पर अब मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी (Soil nutrient deficiency) के कारण इनमें प्रोटीन की कमी आ रही है. इन वैज्ञानिकों ने अपने आलेख का आधार लगभग 100 शोधपत्रों को बनाया जो फसलों पर वायुमंडल में बढ़ते कार्बन डाइऑक्साइड के प्रभावों (Effects of increasing carbon dioxide in the atmosphere) पर आधारित थे.
एक रिपोर्ट के अनुसार कुपोषण के कारण देश में 38.7 प्रतिशत बच्चों की पूरी वृद्धि नहीं होती, 29.4 प्रतिशत बच्चों का वजन सामान्य से कम होता है और 15 प्रतिशत बच्चों में लम्बाई के अनुसार वजन कम रहता है.
वैज्ञानिक पत्रिका लांसेट में प्रकाशित एक लेख के अनुसार हमारे देश में पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु में से 45 प्रतिशत का कारण कुपोषण है.
महेंद्र पाण्डेय