उनका जो फ़र्ज़ है वो अहल ए सियासत जानें
मेरा पैग़ाम मोहब्बत है जहाँ तक पहुंचे
जिगर मुरादाबादी साहब के इस शेर की चलती फिरती मिसाल बीते दिनों उनकी कर्म भूमि गोंडा में देखने को मिली, जब ईद के त्यौहार को शहर के कुछ नौजवानों ने एक अलग रंग देने की ठानी। कोरोना महामारी और उसकी वजह से हुए लॉकडाउन के चलते ईद (Eid in lockdown) इस बार हमेशा की तरह चहल पहल वाली नहीं थी, न ईद मुबारक का शोर, न गली मोहल्ले में बच्चों की खिलखिलाती हुई टोलियां और न ही गले मिलते हुए दोस्त अहबाब मगर इसी सब के बीच नौजवानों का ये ग्रुप कुछ ऐसा कर रहा था कि जिस से ऐसा लगा कि ईद फिर से रंगीन हो गई है और वो खुशियां फिर से लौट आई हैं।
तपती दोपहरी में सर पर आग उगलते सूरज, चेहरे को झुलसा देनी वाली गर्म हवाओं और पैरों के नीचे भट्टी के मानिंद ज़मीन की परवाह किये बग़ैर ये लोग घर लौट रहे मुसाफ़िरों के साथ शहर की सरहद से निकलने वाले हाईवे, रेलवे स्टेशन, रोडवेज़ स्टैंड पर ईद मना रहे थे, उनको सेवईं, नमकीन, बिस्कुट और पानी बाँट रहे थे और सिर्फ़ मुसाफ़िरों को ही नहीं बल्कि जो भी मज़दूर, रिक्शे ठेले वाले और जो भी ज़रूरतमंद इनको मिलता था उसको भी शामिल कर लेते थे ताकि उसको ये एहसास न हो कि इस बार लॉकडाउन की वजह से जो काम धंदे का नुकसान हुआ है उस से मेरी ईद की ख़ुशी अधूरी रह गई। ये सिलसिला ईद के तीनों दिन तक बिना रुके बिना थके चलता रहा और बहुत से चेहरों पर मुस्कान लाने में कामयाब रहा।
इन्हीं सब के बीच इस कार्यक्रम में चार चाँद उस वक़्त लग गए जब ईद के दूसरे दिन यानी मंगलवार को बड़ा मंगल होने की वजह रोडवेज़ स्टैंड पर हनुमान भक्तों का एक
सिर्फ़ इतना ही नहीं, ये ग्रुप जिसका नाम हुसैनी मिशन (Hussaini Mission of Gonda,) है वो लॉकडाउन से लेकर अब तक मज़हब, ज़ात, पात, और अक़ीदे की परवाह किये बग़ैर गोंडा और आस-पास के इलाक़ों में लोगों की ऐसी ही मदद कर रहा है, चाहे वो लोगों को राशन पहुँचाना हो, सब्ज़ी पहुँचाना हो या कुछ और; लॉकडाउन को 2 महीने से ऊपर हो चुके हैं मगर अभी भी वही जज़्बा, हिम्मत और लगन क़ायम है और जब से ये ग्रुप अपने वजूद में आया है तब से ऐसे ही मानवता की सेवा में लगा हुआ है।
हुसैनी मिशन के संस्थापक सदस्य शबाहत हुसैन और कमाल अब्बास बताते हैं कि आज से 7-8 साल पहले बहुत छोटे पैमाने पर ये काम शुरू किया था और इसका एक ही मक़सद है कि जो भी ज़रुरतमंद हो उसकी मदद कि जाये चाहे मरीज़ के इलाज के लिए पैसे, किसी ग़रीब की शादी, किसी को तन ढंकने के लिए कपड़ा या किसी भूखे को खाना खिलाना हो क्योंकि इनका मानना है कि इंसान की ख़िदमत से बढ़कर कोई सेवा या धर्म नहीं है । वक़्त के साथ इसमें और लोगों के जुड़ने से ये मिशन और भी मज़बूत हुआ है और अपने मक़सद को बहुत बख़ूबी अंजाम दे रहा है ।
रात को जीत तो पाता नहीं लेकिन ये चराग़
कम से कम रात का नुक़सान बहुत करता है
डॉ सैय्यद ज़ियाउल अबरार हुसैन , लेखक एक रिसर्च साइंटिस्ट हैं , जो कि वर्तमान में गुडगाँव में एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में कार्यरत हैं, तथा सामाजिक और राजनितिक विषयों पर मिल्ली गैज़ेट, क़ौमी आवाज़, Democracia.in और hastakshep.com जैसे विभिन्न न्यूज़ पोर्टल में लेख लिखते हैं ।