जब भारत कोरोना के सबसे गंभीर दौर में प्रवेश कर रहा है उस बीच उसे अम्फान और निसर्ग जैसे समुद्री तूफानों से दो चार होना पड़ा। इसके चलते असम में चक्रवाती तूफान अम्फान से बाढ़ आ रही है।
इस मुसीबत से वह उबर भी नहीं पाया था कि टिड्डी दल के हमलों ने उसे एक बार फिर एक नयी मुसीबत में डाल दिया। वहीं दिल्ली में आ रहे लगातार भूकंप के झटके, उत्तराखंड के जंगलों में लगी आग जैसी आपदाएं। कुल मिलाकर इबारत साफ़ है। जलवायु परिवर्तन के भारत पर पड़ रहे असर की अनदेखी अब मुमकिन नहीं।
ऐसे में पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा जारी भारत के पहले जलवायु परिवर्तन आंकलन ( "असेसमेंट ऑफ़ क्लाइमेट चेंज ओवर इंडियन रीजन" ) में कहा गया है कि सदी के अंत तक धरती का तापमान 4.4 डिग्री तक बढ़ जायेगा। इसकी वजह से बाढ़, सूखे और चक्रवाती तूफानों के गंभीर संकट पैदा होंगे।
यह रिपोर्ट कहती है कि भारतीय रीज़न में अब तक 0.7 डिग्री की तापमान वृद्धि दर्ज की गई है जो पूरी तरह ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन की वजह से है।
रिपोर्ट कहती है कि अगर तुरंत कार्बन उत्सर्जन काबू करने के उपाय नहीं किये गये तो हीट वेव्स (लू के थपेड़ों) में 3 से 4 गुना की बढ़त होगी और ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से ही समुद्र जल स्तर में करीब 30 सेंटीमीटर यानी 1 फुट बढ़ जायेगी। कोलकाता, चेन्नई और मुंबई जैसे महानगरों समेत तटीय इलाकों के लिये यह एक गंभीर चुनौती होगी।
ये जान लीजिये कि 1901 से लेकर 2018 तक, मतलब 115 सालों में तापमान 0.7 डिग्री सेल्सियस बढ़ा है। इस 0.7 डिग्री सेल्सियस की बढ़त में सबसे ज़्यादा इज़ाफ़ा पिछले
रिपोर्ट के अनुसार, हमारे सागर का तापमान भी बढ़ गया है और अगर नहीं कुछ किया तो बढ़ता ही जायेगा। जहाँ दुनिया भर के समुद्रों की सतह का औसत तापमान 1951-2015 के बीच 0.7 डिग्री सेल्सियस बढ़ा, हमारे उष्णकटिबंधीय भारतीय महासागर का तापमान उसी दौरान 1.0 डिग्री सेल्सियस बढ़ा है। उत्तर हिंद महासागर में समुद्र-स्तर की वृद्धि 1874-2004 के दौरान जहाँ प्रति वर्ष 1.06-1.75 मिमी की दर से हुई, वहीँ पिछले ढाई दशकों (1993-2017) में इसमें वृद्धि प्रति वर्ष 3.3 मिमी की दर से हुई है।
वैज्ञानिकों की मानें तो इक्कीसवीं सदी के अंत तक उत्तर हिन्द महासागर में समुद्र स्तर का बढ़ कर लगभग 300 मिमी तक हो जाने का अनुमान है।
इस सरकारी रिपोर्ट की मानें तो पिछले छह दशक में मानसून में 6 प्रतिशत की गिरावट आयी है। इसमें सबसे ज़्यादा गिरावट पश्चिमी घाट के इलाकों और खेती के लिए मुफ़ीद गंगा के मैदानी इलाकों में दर्ज की गयी है। मतलब इसका सीधा असर देश की खेती-किसानी और उपज-पैदावार पर पड़ेगा।
सीमा जावेद
पर्यावरणविद, स्वतंत्र पत्रकार