ब्रिटेन के प्रधानमंत्री की जेसीबी पर की गई सवारी (UK Prime Minister's ride on JCB) को लेकर दुनिया के अग्रणी मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल की तरफ से जारी बयान (Statement issued by the human rights organization Amnesty International,) में बाकायदा कहा गया कि आखिर एक देश का प्रधानमंत्री इस समूची पृष्ठभूमि में ऐसी 'अज्ञानता' का परिचय कैसे सकता है? दिल्ली की म्युनिसिपल कारपोरेशन द्वारा उत्तरी पश्चिमी दिल्ली के जहांगीरपुरी इलाके में मुसलमानों की दुकानों को ध्वस्त करने के लिए हुआ जेसीबी बुलडोजरों के इस्तेमाल की पृष्ठभूमि में प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन की चुप्पी शर्मनाक है।'
बुलडोजर एक विचार है / जो एक मशीन के रूप में सामने आता है/
और आंखों से ओझल रहता है
बुलडोजर एक विचार है /हर विचार सुंदर नहीं होता
लेकिन वह चूंकि मशीन बन आया है तो / इस विचार को भी कुचलता हुआ आया है
कि हर विचार को सुंदर होना चाहिए ...
- विष्णु नागर
कुछ कुछ तस्वीरें ताउम्र सियासतदानों का पीछा करती हैं, और मुमकिन हो एकांत में बैठे उन्हें इन तस्वीरों को देख कर शर्मिंदगी भी होती हो। जैसे वह एक तस्वीर थी जिसमें भारत के प्रधानमंत्री जनाब नरेंद्र मोदी राष्ट्रपति ओबामा की अगवानी में एक ऐसी पोशाक पहने दिखे थे, जिस सूट पर उनका अपना नाम अंकित था।
जनाब बोरिस जॉनसन (Mr boris johnson) - जो भारत के दौरे से लौट गए हैं - उनकी इस यात्रा की एक ऐसी ही तस्वीर इन दिनों वायरल हो गयी है, जिसमें वह बुलडोजर पर सवार दिख रहे है, जिसके चलते हंगामा मच गया है।
याद रहे जेसीबी के चेयरमैन लॉर्ड बैमफोर्ड (JCB Chairman Anthony Paul Bamford, Baron Bamford, DL) वर्ष 2001 से उनकी कन्जर्वेटिव पार्टी को चंदा देते रहे हैं, इतना ही नहीं वर्ष 2019 में कन्जर्वेटिव पार्टी के नेतृत्व के लिए चले संघर्ष में भी उन्होंने बोरिस जॉनसन का साथ दिया था। बात यहां तक नहीं रुकी उन्होंने उस खरबपति द्वारा बनाए जा रहे बुलडोजर पर सवार होकर एक तरह से उसके उत्पाद का विज्ञापन किया ताकि चंदेदार का उत्पाद और बिके, तो फिर सवाल उठना लाजिमी है।
हंगामे की वजह महज इतनी नहीं थी कि वह सरकारी खर्चे से चार हजार किलोमीटर दूर की यात्रा करके दूसरे मुल्क में पहुंचे थे - ताकि वहां के हुक्मरानों से बातचीत की जाए, कुछ आपसी मेल मिलाप, व्यापार बढ़ाया जाए और उसी यात्रा से समय चुरा कर आप ऐसे शख्स की फैक्टरी में पहुंचे थे, जो आप की पार्टी को चंदा देता हो, तो फिर सवाल उठना लाजिमी था।
वजह यह भी कि भारत में आज की तारीख़ में बुलडोजर एक अदद मशीन नहीं अलबत्ता सत्ताधारी पार्टी की बढ़ती निरंकुशता का प्रतीक बन कर सामने आया है, जिसके तहत उस पर आरोप लग रहे हैं कि उचित न्यायिक प्रक्रियाओं का ध्यान दिए बगैर वह कथित असामाजिक तत्वों के खिलाफ कार्रवाई करती है।
गौरतलब है कि बोरिस जॉनसन की भारत यात्रा के पहले दिन (On the first day of Boris Johnson's visit to India) बुलडोजर पर उनकी सवारी का प्रसंग राजधानी दिल्ली के जहांगीरपुरी के इलाके में अवैध निर्माण तोड़ने के नाम पर अधिकतर धार्मिक अल्पसंख्यकों के मकानों एवं दुकानों पर चले बुलडोजर के अगले दिन ही सामने आया था।
ब्रिटेन के प्रधानमंत्री की जेसीबी पर की गयी सवारी को लेकर दुनिया के अग्रणी मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल की तरफ से जारी बयान में बाकायदा कहा गया कि आखिर एक देश का प्रधानमंत्री इस समूची पृष्ठभूमि में ऐसी 'अज्ञानता' का परिचय कैसे सकता है? दिल्ली की म्युनिसिपल कारपोरेशन द्वारा उत्तरी पश्चिमी दिल्ली के जहांगीरपुरी इलाके में मुसलमानों की दुकानों को ध्वस्त करने के लिए हुआ जेसीबी बुलडोजरों के इस्तेमाल की पृष्ठभूमि में प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन की चुप्पी शर्मनाक है।'
अपने ट्विटर पर एमनेस्टी ने इस पूरे प्रसंग पर जॉनसन के मौन की भी आलोचना की और जोड़ा कि जिस तरह भारत सरकार मानवाधिकारों पर रोज हमले कर रहे हैं, तब ब्रिटेन को चाहिए कि वह मौन दर्शक न बने।
2019-2020 के सीएए विरोधी आंदोलन के बाद सूबा उत्तर प्रदेश में आंदोलन में हुई हिंसा के लिए चंद लोगों का जिम्मेदार ठहराते हुए नुकसान भरपाई के लिए उन्हें नोटिस भेजे गए थे, ऐसे लोगों की तस्वीरें- जो सरकार के हिसाब से अभियुक्त थे - बाकायदा चौराहों-चौराहों पर लगाई गई थी, कई जगहों पर लोगों से वसूली भी हुई थी। उस वक़्त भी इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ऐसे कदम की आलोचना की थी। बुलडोजरों के इस्तेमाल से मकानों को ध्वस्त करना इस पूरी कवायद का अगला कदम है, जहां न नोटिस दिया जाता है, न कोई सुनवाई होती है, न पीड़ित पक्ष को बात कहने का मौका दिया जाता है।
वैसे ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन- जो इन दिनों पार्टीगेट कांड के चलते मुश्किल में बताये जा रहे हैं - उनके प्रधानमंत्री पद काल पर कोई भी नजर दौड़ाए, वह अंदाज लगा सकता है कि भारत आकर एक अधिक संयत, गरिमापूर्ण व्यवहार की उनसे अपेक्षा करना आकाशकुसुम पाने की अभिलाषा जैसा रहा है। अपने देश में मानवाधिकारों को लेकर उनका अपना रिकॉर्ड कत्तई प्रशंसनीय नहीं रहा है। ताजा मसला ब्रिटेन में शरण के लिए आ रहे प्रवासियों को एकतरफा टिकट देकर अफ्रीका के मुल्क रवांडा भेजने का है, जिसे लेकर ब्रिटेन सरकार की जबरदस्त आलोचना हो रही है, यहां तक कि उनके अपने करीबियों ने भी इस योजना से असहमति जताई है। बहरहाल, बोरिस जॉनसन को अपनी इस दो दिनी भारत यात्रा से कितना राजनीतिक फायदा हुआ हो या नहीं मगर इस बहाने उन्होंने भारत के अंदर मानवाधिकारों की बदतर होती स्थिति पर दुनिया की निगाहें फिर एक बार टिका दी है।
सुभाष गाताडे
'Ignorant': Amnesty Slams Boris Johnson's Visit to JCB Factory Amidst Demolitions