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जानिए राष्ट्रीय स्वच्छ वायु योजना के फायदे और नुकसान

नई दिल्ली, 11 जनवरी। भारत के विभिन्न शहरों में वायु प्रदूषण के चरम स्तर को कम करने की कोशिश के तहत केंद्रीय पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन ने बहुप्रतीक्षित नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम (एनसीएपी) जारी किया। इस योजना का उद्देश्य (The aim of the National Clean Air Program) वर्ष 2024 तक प्रमुख प्रदूषकों पीएम 2.5 और पीएम 10 के संघनन में 20 से 30% तक की कटौती करना है। इसके लिए वर्ष 2017 को आधार वर्ष माना गया है। एनसीएपी (राष्ट्रीय स्वच्छ वायु योजना) पांच वर्षीय कार्य योजना है और वर्ष 2019 उसका प्रथम वर्ष होगा। केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय (Union Environment Ministry) ने देश के 102 शहरों में वायु प्रदूषण (air pollution) की समस्या से निपटने के लिए अगले 2 साल के लिए 4.50 करोड़ डॉलर का बजट घोषित किया है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने इन 102 शहरों को ऐसे नगरों के तौर पर चयनित किया है जहां पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (Ministry of Environment and Climate Change) द्वारा प्रदूषण से संबंधित मानकों का पालन नहीं किया जा रहा है।

क्लाइमेट ट्रेंड्स संस्था से जुड़े पर्यावरण विशेषज्ञों की नजर से जानते हैं राष्ट्रीय स्वच्छ वायु योजना’ (National Clean Air Plan) के फायदे और नुकसान

सफलता का आधार योजना को मजबूत और गंभीर तरीके से लागू करने पर रहेगा। एक महत्वाकांक्षी और विशाल क्षेत्र को दायरे में लानेवाली इस योजना में कार्यान्वयन पर ध्यान देना होगा।

राष्ट्रीय स्वच्छ वायु योजना की महत्वपूर्ण

बातें

Important points about National Clean Air Plan -

राष्ट्रीय स्वच्छ वायु योजना (The National Clean Air Plan) में देश के 102 गैर-प्राप्ति शहरों में वायु की सांद्रता PM-2.5 और PM-10 में 2024 तक 20% से 30% की कमी लाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। वर्ष 2017 के वायु स्तर को तुलना के लिए आधार बनाया गया है। राष्ट्रीय स्वच्छ वायु योजना 5 साल की मध्यावधि योजना होगी और 2019 प्रथम साल गिना जाएगा। देश के जो शहर पर्यावरण मंत्रालय के प्रदूषण मानकों को पूरा नहीं करते हैं, उनकी केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) की और से गैर-प्राप्ति शहरों के रूप में पहचान की गई है।

राष्ट्रीय स्वच्छ वायु योजना इस सच्चाई को मान्यता देती है कि वायु प्रदूषण केवल दिल्ली विशेष की समस्या नहीं है, बल्कि पूरे भारत के शहरों को प्रभावित करता है। योजना में वायु की गुणवत्ता की स्थिति और रूझान निर्धारित करने के लिए पर्याप्त और ठोस निगरानी तंत्र बनाने का प्रस्ताव है। उच्च गुणवत्ता वाले डेटा की उपलब्धता का विस्तार एक स्वागत योग्य कदम है।

योजना में मौजूदा नियमों के प्रवर्तन की कमी, अधिक जागरूकता और आंतर-राज्य व विभागीय समन्वय की आवश्यकता की पहचान की गई है। हालांकि यह देखा जाना बाकी है कि सरकार वायु की स्वच्छता के लिए आर्थिक तर्क से कैसे आश्वस्त हो पाती है। जब ऐसा होगा, तब हमारे नीति निर्माता इस योजना को गंभीरता से लेंगे और साथ ही वैश्विक स्वास्थ्य निष्कर्षों का खंडन नहीं करेंगे, जो भारत पर वायु प्रदूषण के बड़े सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रभाव को दिखाते हैं।

Know the advantages and disadvantages of the National Clean Air Plan

एक कार्य योजना के रूप में राष्ट्रीय स्वच्छ वायु योजना कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं है। जिन शहरों को सूचीबद्ध किया गया है वे राष्ट्रीय स्वच्छ वायु योजना के तहत अपनी खुद की कार्ययोजना तैयार कर रहे हैं। इस तरह की योजना कार्रवाई और आंतर-विभागीय प्रतिबद्धताओं पर मजबूत पहल साबित होगी। इस योजना को सफल बनाने के लिए कार्रवाई, कार्यान्वन और बहु-हितधारक समन्वय कैसा होगा, यह देखा जाना बाकी है। ऐसे समय में जब 95% देश प्रदूषित हवा को सांस में ले रहा है, समयबद्ध परिणामों के साथ मजबूत कार्यान्वयन राष्ट्रीय स्वच्छ वायु योजना की प्रभावशीलता के लिए महत्वपूर्ण होगा।

राष्ट्रीय स्वच्छ वायु योजना पूरे देश में वायु की गुणवत्ता की निगरानी बढ़ाने पर आधारित है। वर्तमान में देश में हवा की गुणवत्ता की वास्तविक समय में निगरानी करने वाले यंत्र (real time Air Quality (AQ) monitors) सिर्फ 101 जगह पर मौजूद हैं, जबकि विश्लेषण के मुताबिक कम से कम ऐसे 4000 यंत्र की जरूरत है। योजना में वायु प्रदूषण के स्रोत और कारणों की एक राष्ट्रीय सूची तैयार करने की चर्चा की गई है। योजना में 102 गैर-प्राप्ति शहरों में प्रदूषण के स्रोत और उनके योगदान की सीमा निर्धारित करने का प्रस्ताव है। कार्ययोजनाओं के सटीक निरूपण के लिए इस तरह के अध्ययनों को शुरू करना और निगरानी तंत्र की स्थापना करना एक अच्छी पहल है। देश में जिस तरह से वायु प्रदूषण का स्तर बढ़ता जा रहा है उसे देखते हुए ऐसे कदमों को और तेज करने की तत्काल आवश्यकता है। अगर तेजी से कार्यान्वयन और निष्पादन नहीं होता है तो देश वर्तमान में जिस संकट का सामना कर रहा है उसे संबोधित करने में योजना विफल हो जाएगी।

वर्तमान में उपलब्ध निगरानी तंत्र से हम वायु प्रदूषण के रूझान को जानते हैं और यह रूझान हमें सभी बड़े प्रदूषण स्रोतों से निपटने की दिशा में इंगित करता है। जब निगरानी तंत्र के जरीए सटीक समाधान मिल जाएगा, नीति निर्धारण के लिए प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ेगी, बल्कि बढ़े हुए वायु प्रदूषण के स्रोत से निपटने के लिए कार्रवाई करते हुए आगे बढ़ना होगा। अगर हम राष्ट्रीय स्वच्छ वायु योजना के तहत वायु की गुणवत्ता में सुधार लाना चाहते हैं तो हमें प्रदूषण के सभी स्रोत – उद्योग, परिवहन, कृषि, घरेलू – से बहु-क्षेत्रीय दृष्टिकोण से निपटना होगा, न कि किसी एक के खिलाफ या दूसरे के बदले में।

राष्ट्रीय स्वच्छ वायु योजना में प्रदूषण के सभी महत्वपूर्ण स्रोत जैसे कि औद्योगिक, परिवहन, कृषि, कचरा, घरेलू वायु प्रदूषण और वन संवर्धन में से प्रत्येक के तहत कार्रवाई बिंदुओं की एक सूची प्रदान की गई है। यह एक नेक ईरादे के साथ तैयार किया गया पूर्ण दस्तावेज है, लेकिन इस के लिए जरूरी बजट का आवंटन नहीं किया गया। फिलहाल सिर्फ 300 करोड रुपये का आवंटन किया गया है। अगर हमें वास्तविक परिवर्तन लाना है तो इस के लिए और ज्यादा धन की आवश्यकता होगी, जिसे केन्द्र और राज्य सरकारों को आवंटित करना होगा।

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में जो वायु प्रदूषण की समस्या है वह एक क्षेत्रीय समस्या है ओर भारत-गंगा मैदानों के लिए अद्वितीय है। भारत-गंगा मैदान पूरे विश्व में सबसे ज्यादा प्रदूषित स्थान बन चुका है। इस का समाधान करने के लिए राज्यों को मिलजुल कर प्रयास करने होंगे, जैसा कि योजना में सूचित किया गया है। लेकिन यहां फिर से इच्छा का अभाव है, जिस की हमें जरूरत है। समस्या के समाधान के लिए एक योजना बनाई गई है, लेकिन तुलना करने पर पता चलता है कि समस्या जस की तस है।

राष्ट्रीय स्वच्छ वायु योजना में औद्योगिक समूहों से निकलने वाले प्रदूषण के योगदान का उल्लेख किया गया है, लेकिन इस औद्योगिक प्रदूषण की वजह से शहरों, समुदायों, कृषि और पारिस्थितिकी पर जो प्रदूषण का प्रभाव होगा उससे निपटने के लिए कोई उपाय सूचित नहीं किया गया है। वर्ष 2009 में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की ओर से जो गंभीर पर्यावरणीय प्रदूषण सूचकांक तैयार किया गया था उस में 43 अतिगंभीर प्रदूषित विस्तारों की सूची बनाई गई थी, जिन में ज्यादातर देश के ग्रामीण ईलाकों से थे। राष्ट्रीय स्वच्छ वायु योजना में ऐसे क्षेत्रों की पहचान की गई है ओर निगरानी तंत्र को मजबूत करने का प्रस्ताव किया गया है। लेकिन जब तक सख्त उत्सर्जन मानकों को लागू नहीं किया जाता तब तक योजना का पूर्ण प्रवर्तन नहीं होगा। क्योंकि पूरे देश में उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार उद्योग प्रदूषण फैलाना जारी रखेंगे।

दो साल के लिए 300 करोड रुपए का बजट पर्याप्त नहीं है, लेकिन यह एक अच्छी शुरुआत है। क्षेत्रीय लक्ष्यों को हासिल करने के लिए राज्यों और केन्द्र के बीच स्वतंत्र कार्य योजनाओं को लागू करने के लिए स्पष्ट समन्वय की जरूरत होगी। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) की भूमिका सालों से अप्रभावी रही है। CPCB की भूमिका को वायु कानून के तहत संशोधित किया जाना चाहिए ताकि वह एक निगरानी तंत्र के बजाय प्राधिकारण के तौर पर काम करे।

वायु प्रदूषण पर विश्व स्वास्त्य संगठन (WHO) की ओर से जो डाटा तैयार किया गया है उस में भारत के टीयर-1 और टीयर-2 श्रेणी के कुछ शहरों के विश्व के सब से प्रदूषित शहरों की सूची में शामिल किया गया है।

2018 में विश्व के सब से ज्यादा प्रदूषित 15 शहरों में 14 भारत के थे। फिलिप लेंडरिगन के नेतृत्व में बने ‘लान्सेन्ट कमिशन ऑन पॉल्युशन एन्ड हेल्थ’ ने भी समय पूर्व मृत्यु और वायु प्रदूषण से होने वाली मौत की दर में भारत को नंबर-1 क्रम दिया है। कमीशन के वर्ष 2015 के रिपोर्ट में कहा है कि, भारत में वायु प्रदूषण से 2.51 मिलियन मौत हुई और साथ ही भारत में प्रति वर्ष होने वाली कुल मौत में से 25 फीसदी मौत के लिए वायु प्रदूषण को जिम्मेदार ठहराया है। अभी हाल ही में, यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो के एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट की ओर से तैयार किए गए ‘एयर क्वॉलिटी लाईफ इंडेक्स’ के मुताबिक, अगर वायु गुणवत्ता के लिए WHO के सुरक्षित मानकों को पूरा किया जाता है तो भारत के दिल्ली शहर के नागरिक और 9 साल तक जिंदा रह सकते हैं। देश में बढ़ते वायु प्रदूषण के स्तर के सभी आंकड़ें जब सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल की ओर इशारा करते हैं, ऐसे में राष्ट्रीय स्वच्छ वायु योजना स्वास्थ्य संकट से निपटने की आवश्यकता पर उचित संज्ञान देने में विफल दिखता है।

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