नई दिल्ली, 30 जुलाई। 'जश्नेहिंद' दिल्ली के तत्वावधान में एक डिजिटल गोष्ठी में सुपरिचित ग़ज़लगो एवं कवयित्री ममता किरण के ग़ज़ल संग्रह ''आंगन का शजर'' का लोकार्पण संपन्न हुआ। गोष्ठी की शुरुआत 'जश्नेहिंद' की निदेशक डॉ. मृदुला सतीश टंडन के स्वागत से हुई। उन्होंने ममता किरण की ग़ज़लों को अदब की दुनिया में एक शुभ संकेत बताया और संग्रह का हार्दिक स्वागत किया।
इस समारोह में साहित्य अकादेमी के उपाध्यक्ष एवं जाने माने ग़ज़लगो कवि, कथाकार,गद्यकार माधव कौशिक, उर्दू अदब के जाने माने शायर व आलोचक प्रो. खालिद अल्वी, सुपरिचित कवयित्री डॉ. पुष्पा राही, प्रख्यात ग़ज़लगो, गीतकार एवं संपादक बालस्वरूप राही, कवि-आलोचक डॉ. ओम निश्चल, कथाकार-कवि तेजेन्द्र शर्मा, गायक संगीतकार आर डी कैले एवं जनाब शकील अहमद ने हिस्सा लिया।
लोकार्पण एवं चर्चा का संचालन करते हुए कवि आलोचक डॉक्टर ओम निश्चल ने श्रीमती ममता किरण की काव्ययात्रा पर प्रकाश डाला तथा ग़ज़लों के क्षेत्र में उनके योगदान की सराहना की।
उन्होंने कहा कि ममता किरण की ग़ज़लों में एक अपनापन है, जीवन यथार्थ की बारीकियां हैं, बदलते युग के प्रतिमान एवं विसंगतियां हैं, यत्र तत्र सुभाषित एवं सूक्तियां हैं, भूमंडलीकरण पर तंज है, कुदरत के साथ संगत है, बचपन है, अतीत है, आंगन है,और पग पग पर सीखें हैं।
डॉ. ओम निश्चल ने ममता जी की ग़ज़ल के इन शेरों का विशेष तौर से उल्लेख किया जहां वे अपने बचपन को अपनी ग़ज़ल में पिरोती हैं --
अपने बचपन का सफर याद आया
मुझको परियों का नगर याद आया।
जिसकी छाया में सभी खुश थे 'किरण'
घर के आंगन का शजर याद आया।
ममता किरण ने लोकार्पण के पूर्व 'आंगन का शजर' से कुछ चुनिंदा ग़ज़लें सुनाईं। उन्होंने कुछ ग़ज़लों के अशआर पढ़े जो बेहद सराहे गए --
फोन वो खु़शबू कहां से ला सकेगा
वो
मैं हकीकत हूँ कोई ख्वाब नहीं
इतना कहना है बस जमाने से।
आज कल खुदकुशी करने वाले नौजवानों पर ममता किरण ने ये शेर पढ़ा--
खुदकुशी करने में कोई शान है
जी के दिखला तब कहूं इंसान है।
ममता किरण के ग़ज़ल पाठ के बाद गजल संग्रह 'आंगन का शजर' का लोकार्पण किया गया। उर्दू के जाने माने समालोचक एवं शायर प्रो खालिद अल्वी ने कहा कि संग्रह में कुछ ग़ज़लें ममता जी ने गा़लिब की ज़मीन पर कही हैं तथा उनके यहां अपनेपन, संबधों एवं यथार्थ से रूबरू ग़ज़लें हैं जिससे हिंदी ग़ज़ल में उन्होंने अपना स्थान और पुख्ता किया है। प्रो खालिद अल्वी ने इन ग़ज़लों में हिंदुस्तानी जबान के बेहतरीन इस्तेमाल की सराहना की।
लंदन से बोलते हुए कथाकार तेजेद्र शर्मा ने कहा कि ममता जी अरसे से लिख रही हैं तथा ग़ज़लों में वे एक अरसे से काम कर रही हैं तथा उनकी शायरी में एक परिपक्वता नज़र आती है। उन्होंने भी गंगाजमुनी भाषा में रची इन ग़ज़लों की वाचिक अदायगी की तारीफ की। तेजेंद्र शर्मा ने ममता जी की कई ग़ज़लों के उदाहरण देते हुए कहा कि ये हमारे दिलों के करीब की ग़ज़लें हैं।
चंडीगढ साहित्य अकादमी के अध्यक्ष एवं साहित्य अकादमी दिल्ली के उपाध्यक्ष, जाने माने ग़ज़लगो माधव कौशिक ने कहा कि एक दौर था कि पत्र पत्रिकाएं ग़ज़लों के न छापने का ऐलान किया करती थीं किंतु आज सभी जगह ग़ज़लों की मांग है। प्रकाशक भी इसे प्राथमिकता दे रहे हैं।
उन्होंने ममता किरण की इन ग़ज़लों में आम जबान की अदायगी की सराहना की और कहा कि आज हिंदी ग़ज़ल उर्दू की ग़ज़ल से कहीं भी कम नहीं है। हिंदी ग़ज़लों में सामाजिक यथार्थ जिस तेज़ी से आ रहा है उसे उर्दू ग़ज़लों ने भी अपनी अंतर्वस्तु में शामिल किया है।
डॉ. पुष्पा राही ने कहा कि ममता किरण की इन ग़ज़लों में ममता व आत्मीयता का निवास है। उन्होंने भारतीय जन जीवन में व्याप्त संबंधों, बेटे बेटियों व पारिवारिकता को ग़ज़लों में प्रश्रय दिया है। कई ग़ज़लों से शेर उद्धृत करते हुए उन्होंने बल देकर कहा कि ममता किरण के पास ग़ज़ल का एक सिद्ध मुहावरा है जो उन्हें इस क्षेत्र में पर्याप्त ख्याति देगा।
इन ग़ज़लों पर अपनी सम्मति व्यक्त करते हुए बाल स्वरूप राही ने कहा कि ममता किरण ने अपने इस संग्रह से ग़ज़ल की दुनिया में एक उम्मीद पैदा की है। उन्होंने कहा आम जीवन की तमाम बातें इन ग़ज़लों का आधार बनी हैं। बोलचाल की एक अनूठी लय इन ग़ज़लों में हैं। उन्होंने ममता किरण को एक बेहतरीन शायरा का दर्जा देते हुए कहा कि वे भविष्य में और भी बेहतरीन ग़ज़लों के साथ सामने आएंगी ।
लोकार्पण को संगीतमय बनाने के लिए ममता किरण की ग़ज़ल को गायक एवं संगीतकार आर डी कैले ने गाकर सुनाया। गायक जनाब शकील अहमद ने भी उनकी ग़ज़ल गाकर महफिल को संगीतमय कर दिया।
अंत में मृदुला सतीश टंडन ने जश्नेहिंद की ओर से धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कहा कि ममता किरण से उन्हें बहुत आशाएं हैं तथा अदब की दुनिया में उन्होंने अपनी मौजदूगी से एक हलचल पैदा की है। कार्यक्रम का संचालन हिंदी के सुधी कवि गीतकार एवं समालोचक डॉ ओम निश्चल ने किया। रात आठ बजे से शुरु होकर यह गोष्ठी रात साढे दस बजे तक चलती रही।