खबरें आ रही है कि गलवान घाटी और दूसरे कई स्थानों पर भी चीन और भारत, दोनों ने अपनी सेनाओं को पीछे हटाना शुरू कर दिया है। अगर यह सच है तो यह खुद में एक बहुत स्वस्तिदायक समाचार है।
भारत चीन के बीच सीमा पर तनाव के अभी कम होने के बाद हम नहीं जानते कि आगे दोनों देशों की सरकारें इसे किस प्रकार से देखेंगी और क्या सबक़ लेगी, लेकिन बहुत विधेयात्मक दृष्टि से सोचें तो यह दुनिया के दो सबसे बड़ी आबादी वाले देशों के बीच सहयोग और समर्थन का एक ऐसा युगांतकारी मोड़ साबित हो सकता है जो विश्व राजनीति में शक्तियों के सारे संतुलन को बुनियादी रूप से बदल सकता है। इसी बुनियाद पर आगे का काल वास्तव अर्थों में एशिया का काल साबित हो सकता है।
हम समझते हैं कि यह काम इतना आसान नहीं होगा। यह खुद में कोई साधारण घटना नहीं होगी। अमेरिकी वर्चस्व के परिवर्ती एक नए विश्व के गठन की यह एक सबसे महत्वपूर्ण परिघटना होगी। यही वजह है कि आज भी भारत-चीन के बीच संबंधों पर पश्चिम की तमाम साम्राज्यवादी ताक़तों की एक गहरी गिद्ध दृष्टि लगी हुई है। एशिया की इन दो महाशक्तियों के बीच सहयोग में वे अपने प्रभुत्व के दिनोंके अंत को और भी नज़दीक आता हुआ साफ़ तौर पर देख सकते हैं। इसीलिये यह अनुमान करने में जरा भी कठिनाई नहीं होनी चाहिए कि आगे आए दिन इन संबंधों में दरार को चौड़ा करने की तमाम कोशिशें और भी ज़्यादा देखने को मिलेगी। दोनों देशों के बीच संदेह और आपसी वैमनस्य को बढ़ाने वाले न जाने कितने प्रकार सच्चे झूठे क़िस्सों
अगर सचमुच कुछ भी सकारात्मक होता दिखाई देता है तो सीआईए अभी से अपने सर्वकालिक रौद्ररूप में पूरी ताक़त के साथ मैदान में कूद पड़ेगा। सारी निहित स्वार्थ की बड़ी-बड़ी ताकतें उसके साथ होगी। दोनों देशों पर न जाने कितने प्रकार के दबाव डाले जायेंगे। परस्पर स्वार्थों के न जाने कितने झूठे-सच्चे तर्क बुने जाएँगे। और इन तमाम उलझनों के बीच से अपना स्वार्थ साधने की राजनीतिक ताक़तों की कोशिशें के भीनाना रूप देखने को मिलेंगे। झूठे क़िस्सों के जाल में फँसा कर दोनों देशों को इस पटरी से उतारने की हर संभव कोशिश की जाएगी। सारी दुनिया की हज़ारों न्यूज़ एजेंसियाँ इसी काम में जुट जाएगी।
पर हमारा यह दृढ़ विश्वास है कि इस सहयोग और समर्थन में ही एशिया के इन दोनों महान राष्ट्रों का भविष्य है। एक दूसरे की सार्वभौमिकता का पूरा सम्मान करते हुए एक गठनमूलक प्रतिद्वंद्विता और सहयोग का संबंध दोनों राष्ट्रों की तमाम संभावनाओं को साकार करेगा।
सीमा पर तनावों के कम होने के बाद आगे सारी सावधानियों के साथ दोनों देश की सरकारें परस्पर विश्वास क़ायम करने के किस प्रकार के उपायों पर किस गति और निश्चय के साथ काम करती हैं, यह गंभीर पर्यवेक्षण का विषय होगा। हम अभी इसे बहुत उम्मीद भरी निगाहों के साथ देखते है।
—अरुण माहेश्वरी