शस्त्र उद्योग, नशा उद्योग, दवाई उद्योग, खनिज उद्योग और भोजन उद्योग है।
सोचने या चिंता वाली बात यह है कि जिसे पहले नंबर पर होना चाहिए, वो पाँचवे स्थान पर है।
मानव सभ्यता के परिचायक इन्हीं मुद्दों (Issues Identifying Human Civilization) को ध्यान में रखते हुए विचार करिए तो हम पाएंगे कि पृथ्वी पर जितने प्राणी हैं, उनमें मनुष्य ने सबसे अधिक बुद्धिमान बनकर खुद को सबसे अधिक परेशान किया है! देखा जाए तो उसने अपने दिमाग को उस दिशा में विकसित किया, जहां वैमनस्यता बढ़ती है इसीलिए विश्व में सबसे ज्यादा शस्त्रों का ही निर्माण होता गया।
विश्व पटल पर देखा जाए तो हमें जानकर आश्चर्य होगा कि इस विध्वंसकारी दुनिया में इतने अस्त्र शस्त्र बन चुकें हैं कि इस पूरी पृथ्वी को दस बार पूरी तरह से नष्ट किया जा सकता है, जबकि मनोविज्ञान हमें समझाता है कि अस्त्र और शस्त्र तभी विकसित होते हैं जब दो मनुष्यों में वैमनस्य हो, इसीलिए कोरोना महामारी ने अब हम सबको प्रकृति के संदेशों को ठीक से समझने के लिए तैयार किया है।
सही अर्थों में देखा जाए तो अब मनुष्य को शस्त्र, नशा, दवाई और खनिज जैसी चीजो की कम जरूरत है, पर प्रकृति के सभी मानव और अन्य प्राणियों को भोजन पानी या कहें तो सुपाच्य भोजन की सबसे ज्यादा आवश्यकता है।
अपने देश मे केंद्र और राज्य सरकारों में तालमेल का अभाव के कारण मध्यम वर्ग आज कैसे कैसे मानसिक तनाव से जूझ रहा है, ये भी किसी महामारी से कम नहीं है। किसी भी आपात स्थिति में अगर केंद्र और राज्यों में
अभी ये नहीं पता कि ये लॉक डाउन कब तक चलेगा ? उससे होने वाली चुनौतियों से कैसे निपटा जाए?
अपने देश में यही कारण है कि जब तक परस्पर अविश्वास रहेगा, कोई भी योजना चाहे कितनी ही मानवीय हो, जितनी भी उपयोगी हो सफल हो ही नहीं सकती है। चाहे वो कोई भी हो फिर देश के सामने कोरोना महामारी आज सुरसा के समान मुंह बाये हमारे दरवाजे पर खड़ी है।
आज IMF ने 1930 के बाद 2020 में पूरे विश्व में ग्रेट डिप्रेशन आने की संभावना व्यक्त की है। इसी ग्रेट डिप्रेशन को महामंदी भी कहा जाता है यह 20 वी सदी की सबसे बड़ी घटना मानी जाती है जिसने पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था को ही ध्वस्त कर दिया था।
इसी तरह की महामंदी से अमेरिका में 29 अक्टूबर 1929 को न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज और बुरी तरह गिरा और 14 अरब डॉलर का नुकसान हुआ। इस तरह 29 अक्टूबर 1929 के दिन मंगलवार को 'ब्लैक ट्यूज़डे कहा गया।
10 मार्च 2020 के बाद से अब तक अमेरिका में 12 % लोगों ने अपनी नौकरियां गंवाई हैं, बेरोजगारी की दर 15 % तक पहुंच गई है, जो 1930 के बाद सबसे ज्यादा है। मेरा डाटा प्रिडिक्शन कह रहा है कि यह दर 32 ℅ भी जा सकती है। यह बिलकुल 1930 के दौर की याद दिला रहा है। मुझे आशंका है अमेरिका में जितने लोग कोरोना वायरस से नही मरेंगे उससे ज्यादा लोग मानसिक तनाव या अवसाद से मरेंगे।
वैसे ही भारत मे भी इसके आसार दिखने शुरू हो गए है बेरोजगारी की दर अपने उच्च शिखर 25 % पर आ खड़ी हुई है जो कि एक विकासशील अर्थव्यवस्था के लिए बहुत ही बड़ी मुसीबत के संकेत हैं। करीब 50 करोड़ कुशल और दिहाड़ी मजदूरों पर आजीविका संकट है। ऐसे में भारत सरकार के लिए दोहरी चुनौती है कि वो मांग और पूर्ति संतुलन कैसे बनाती है। क्या वो 1930 की जैसी महामंदी से लड़ने का कोई रास्ता खोज सकती है।
लेकिन 1930 के महामंदी के दौर में तो भारत ने डट कर लिया था क्योंकि उस समय सोवियत संघ के समान ही भारत में भी एक समाजवादी व्यवस्था थी, क्योंकि भारत में आंतरिक नियमों और ब्रिटिश कॉलोनी होने से अर्थव्यवस्था अनुशासित थी। 1930 के भारत से यह सबक लिया जा सकता है कि
1930 के समय ग्रेट डिप्रेशन में हजारों अमेरिकी नागरिकों ने आत्महत्या की थी, क्योंकि वो जीवन स्तर में गिरावट के आदी नहीं थे, जिससे वो मानसिक तनाव में गये औऱ अमेरिकी मध्यवर्ग अपनी जड़ों से कटा हुआ था। इसके विपरीत उस समय भारत में मध्यमवर्गीय समाज की अवधारणा ही नहीं थी, इसलिए भारत उस महामंदी को भी आसानी से झेल गया था। लेकिन क्या आज का मध्यम वर्ग इस चुनौती के लिए तैयार है? क्योंकि 2016 में की गई नोटबन्दी ने भारतीय मध्यम वर्ग की कमर पूरी तरह से तोड़ दी और इस समय यही सबसे बड़ा सवाल है कि लगभग सभी मानव और अन्य प्राणियों को भोजन, पानी और उनकी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति कैसे होगी ?
ऐसे में एक बार फिर विश्व समुदाय को चिंतन और मनन करने की आवश्यकता है। जिससे विश्व बंधुत्व का सर्वांगीण विकास हो, और धरती के सभी राष्ट्र विकसित हों, और हमें हमारे प्रधानमंत्री जी से कुछ ज्यादा ही अपेक्षा है क्योंकि भारत की जनता ने उन्हें पूर्ण बहुमत से जिता कर देश की कमान दी है। ऐसे में वह भारत के हितों की रक्षा करते हुए भारत को विश्व का नेता बनकर उभारें। ऐसी मेरी कामना है।
अमित सिंह शिवभक्त नंदी