भारतीय रेलवे (Indian Railway) जिसे 'आम भरतीय जनमानस का जीवन रेखा' कहा जाता रहा है, लेकिन अब इसके जीवन की बागडोर कॉरपोरेट के हाथों होंगी। अब भारतीय रेलवे की धड़कनें पूँजीवादी शोषकों के इशारों पर निर्देशित होगी।
ऐसा नहीं कि अचानक से भरतीय रेलवे की धड़़कनें कॉरपोरेट द्वारा निर्देशित होने की योजना हमारे सामने आ गई है।
दरअसल इसकी शुरुआत 2014 में केंद्र में नई सरकार के गठन के साथ ही शुरू हो गई थी। धीरे-धीरे सुनियोजित तरीके से रेलवे को बीमार बनाया गया और फिर इसे कॉरपरेट की आसीयू में एडमिट कर दिया गया।
भारतीय रेलवे के संदर्भ में जिस तरह की सरकारी नीतियाँ और कार्यवाही देखने को मिल रही हैं वो एक गहरे षड़यन्त्रकारी पूँजीवादी व्यबस्था के हाथों रेलवे को सौंपने की ओर साफ इशारा कर रहीं है। हलांकि रेलमंत्री से लेकर प्रधानमंत्री तक समय-समय पर रेलवे के निजीकरण (Privatization of railways) की बात को सिरे से ख़ारिज करतें रहें है और रेलवे में कॉरपरेट जगत की घुसपैठ को यात्री सुविधा व रेलवे की बदहाल स्थिति में सुधार की कोशिश कहकर असल विमर्श से पल्ला झाड़ लिया है।
याद कीजिए सरकार के सियासी सूरमाओं के बयानों को .... देश के प्रधानमंत्री, भाजपा के तमाम बड़े नेताओं सहित खुद रेलमंत्री पीयूष गोयल तक ने कई मौक़े पर रेलवे के निजीकरण की आशंकाओं पर सफाई देते हुए इसे निर्मूल बताया। जनवरी 2020 तक रेलमंत्री पीयूष गोयल जी ने भारतीय रेलवे के निजीकरण की आशंकाओं को सिरे से खारिज कर दिया।
यानी एक तरफ सरकार के तमाम मंत्री और भाजपा के तमाम बड़े नेताओं ने रेलवे के निजीकरण की आशंकाओं को नकारते रहे और दूसरी तरफ रेलवे निजी हाथों में सौंपने का षड्यंत्र अंजाम दिया जाता रहा। कुल मिलाकर सरकार के संरक्षण और भाजपा के सियासो शूरमाओं के बयानों की कवर फायर की आड़ में धीरे-धीरे दबे पाँव कॉरपरेट की घुसपैठ होती रहीं।
सुपरफास्ट ट्रेनों की निजीकरण (Privatization of superfast trains,) की लुकाछिपी खेल के बीच पहली बार रेलवे ने पैसेंजर ट्रेन सर्विस ऑपरेट करने हेतु प्राइवेट कम्पनियों के लिए दरवाजे खोल दिए हैं।
1 जुलाई 2020 को भारत सरकार के रेल मंत्रालय ने 109 रूटों पर प्राइवेट कंपनियों के द्वारा रेलों के संचालन के लिए Request for Qualification (RFQ) जारी किया। इस प्रपोजल के तहत -
माना जा रहा है कि अडाणी पोर्ट्स और मेक माई ट्रिप और एयरलाइन में इंडिगो, विस्तार और स्पाइसजेट निजी ट्रेनें चलाने की योजना बना रही है। अल्सतॉम ट्रांसपोर्ट, बाम्बार्डियर, सीमेन्स एजी और मैक्वायरी जैसी विदेशी कंपनियां भी इस प्रक्रिया में हिस्सा ले सकती है।
यानी कुछ विशेष सुपरफास्ट ट्रेनों के निजीकरण के बाद अब पहली बार पैसेंजर ट्रेनों के परिचालन में निजी निवेश की अनुमति के साथ ही सरकार ने अब अपने कॉरपरेट हितैषी नीतियों के सारे पत्ते खोल दिए हैं।
सबसे पहले हाल के ऐसे घटनाक्रम का जिक्र आवश्यक है जो निगमीकरण के बहाने पूरे इंडियन रेलवे के निजीकरण के गहरे साजिश की ओर साफ इशारा कर रहे थे। आइए आज हम आपकों सरकार के उन षड़यंत्रकारी नीतियों के बारे में बताते हैं, जो बहुत पहले से ही रेलवे के निजीकरण की दिशा सरकार की पहल को साफ-साफ बता रही थी।
पूर्व से ही आईएसओ प्रमाणित रेलवे स्टेशन हबीबगंज को एनडीए के पिछले कार्यकाल के दौरान ही इसके पुनर्विकास व आधुनिकीकरण के नाम बंसल ग्रुप को ठेका पर दिया गया था। भारतीय रेल स्टेशन विकास निगम लिमिटेड (आईआरएसडीसी) और बंसल ग्रुप के बीच समझौते पर हस्ताक्षर के बाद से यह देश का पहला प्राइवेट रेलवे स्टेशन बन गया है। हबीबगंज स्टेशन के निजीकरण का अनुभव बताता है कि रेलवे का निजीकरण करोड़ों यात्रियों के लिए कितना घातक साबित हो रहा है। हबीबगंज स्टेशन पर सुविधा के नाम पर आर्थिक शोषण किया जा रहा है लगभग 10 गुना पार्किंग चार्ज वसूल किया जा रहा है। बंसल पाथवे हबीबगंज लिमिटेड द्वारा हबीबगंज स्टेशन परिसर में कमर्शियल कॉम्प्लेक्स के बेसमेंट निर्माण के लिए मंजूरी से अधिक खुदाई की जा रही थी इस मामले में जब शिकायत पर खनिज विभाग द्वारा जांच किया गया तो पाया कि कंपनी के पास 2 हजार घनफीट के खुदाई की मंजूरी की तुलना में 10 गुना अधिक खुदाई की गई थी।
■ देश की पहली प्राइवेट ट्रेन 'तेजस' की विफल योजना
रेलवे के निजीकरण की कोशिश के बीच सरकार ने लखनऊ दिल्ली के बीच देश की पहली प्राइवेट ट्रेन तेजस का परिचालन प्रारंभ किया। सरकार का यह प्रयोग बिल्कुल विफल साबित हुआ है। तेजस का ऑक्यूपैंसी लेवल केवल 62 फीसद था, जबकि अन्य ट्रेनों में सामान्यतया 70-100 फीसद की आक्यूपैंसी रहती है। अक्टूबर 19 तक उसे महज 7.73 लाख रुपये का मुनाफा हुआ था, लेकिन उसके बावजूद एक असफल मॉडल को आगे बढ़ाने की दिशा में सरकार पूरी तरह तैयार है।
■ डीरेका सहित रेलवे की सात उत्पादन इकाइयों के निजीकरण की तैयारी।
वर्ष 2019 में रेल मंत्रालय ने रेलवे बोर्ड को उत्पादन इकाइयों के निजीकरण को लेकर विस्तृत रिपोर्ट तैयार करने व रेल संगठनों से बातचीत करने के लिए 100 दिन का समय दिया था और डीरेका (डीजल रेलइंजन कारखाना) सहित सात उत्पादन इकाइयां कॉरपोरेट जगत को सौंपने की रूपरेखा तैयार करने को कहा। सबसे पहले रायबरेली के मॉडर्न कोच फैक्ट्री इसके तहत चुना जाना निर्धारित हुआ था।
उस समय सरकार के इस फैसले पर डीरेका कर्मचारियों द्वारा कड़ा विरोध जताया गया और इसको लेकर कर्मचारी यूनियनों ने जीएम को विरोध का पत्र भी सौंपा। डीरेका की व्यवस्था के अनुसार सभी कर्मचारी भारतीय रेलवे के हैं जिसपर रेल सेवा अधिनियम लागू होता है। डीरेका के सभी कर्मचारी को केंद्रीय कर्मचारी माना जाता है, उत्पादन इकाइयों का सर्वेसर्वा जीएम होता है तथा रेलवे बोर्ड के चेयरमैन को जीएम रिपोर्ट करते हैं। जबकि निगम बनने के बाद डीरेका की व्यबस्था और स्वरूप में बड़ा परिवर्तन होगा जो इस प्रकार होगा-
जीएम की जगह सीईओ की तैनाती की जाएगी। सीईओ, सीएमडी को रिपोर्ट करेगा। सबसे अहम बात ग्रुप 'सी' और जीआरपी 'डी' का कोई कर्मचारी भारतीय रेलवे का हिस्सा नहीं होकर निगम के कर्मचारी होंगे और उन पर रेल सेवा अधिनियम लागू नहीं होगा। वे सभी कर्मचारीयों को कारपोरेशन के नियम के तहत काम करना होगा, वे कर्मचारी संविदा पर काम करेंगे, कर्मचारियों के लिए अलग से पे-कमीशन आएगा, उन्हें केंद्र सरकार की सुविधाएं भी नहीं मिलेंगी, सेवा शर्तें भी बदल जाएंगी और ग्रुप सी और डी के कर्मचारियो के नौकरी पर तलवार लटकी रहेगी, कभी भी उन्हें हटाया जा सकेगा।
प्रॉफिट में चलने के वावजूद राजधानी, दुरंतो और शताब्दी एक्सप्रेस जैसी प्रीमियम ट्रेनों को निजी हाथों में सौंपने के लिए रेल मंत्रालय ने अपनी योजना को हरी झंडी दिखा दी। इंडियन एयरलाइंस की तर्ज पर भारत में रेल गाड़ियों को चलाने की जिम्मेदारी प्राईवेट कंपनियों की देने का रास्ता साफ हो गया। ट्रेनों को निजी हाथों में सौंपने के पीछे तर्क दिया गया कि इससे प्रीमियम ट्रेनों की यात्री सुविधाओं में इजाफा होगा। इस तरह से रेलवे के कमर्शियल ऑपरेशन में निजी क्षेत्र बेहतर सुविधाएं प्रदान करेगा।
■ सबसे तेज ट्रेन 'वंदे भारत' में बासी खाना परोसने वाले जुर्मानाधारी वेंडर 'मेमर्स ट्रीट' को पुनः भोजन बनाने का टेंडर देना।
देश की सबसे तेज रफ़्तार ट्रेन वंदे भारत एक्सप्रेस में बासी खाना देने का वाकया 9 जून 2019 को मिली थी। शिकायतकर्ता खुद केंद्रीय मंत्री व भाजपा नेता साध्वी निरंजन ज्योति थीं। 10 जून को मीडिया में यह खबर प्रकाशित होने के बाद 11 जून को दिल्ली और लखनऊ से अधिकारियों की टीम ने कानपुर का दौरा किया और कानपुर के इस वेंडर पर 50,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया था। लेकिन अजीब बात है कि इस घटना के एक सप्ताह के भीतर आईआरसीटीसी ने 14 जून, 2019 को एक पत्र जारी कर कानपुर के लैंडमार्क टावर ग्रुप की कंपनी "मेसर्स ट्रीट" वेंडर को न केवल डिनर का ठेका तीन माह के लिए बढ़ा दिया बल्कि उसे लंच का भी एक माह का ठेका दे दिया।
■ रेलवे टिकट पर यात्रियों को मिलने वाले सब्सिडी को समाप्त करने की दिशा में सरकार का बढ़ना।
नई सरकार का गठन होते ही रेलवे ने कमाई बढ़ाने के उपायों के तहत सब्सिडी छोड़ने का विकल्प ग्राहकों के सामने रखने का प्रस्ताव तैयार किया है। मंत्रालय ने सौ दिन के एजेंडे में यह प्रस्ताव शामिल कर प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजा, ताकि रेलवे की आय बढ़ाई जा सके। केंद्र सरकार ने रेल मंत्रालय को निर्देश दिया कि वह लोगों को बताए कि उन्हें कितनी सबसिडी दी जा रही है। रेलवे ने ऐसी जानकारी टिकट पर देने की तैयारी किया और इसके लिए रेल टिकट पर ये लिखना शुरू कर दिया-
विदित हो कि राजग के प्रथम कार्यकाल में पूर्व रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने भी इस विकल्प पर विचार किया था, लेकिन कई स्तरों पर कड़े विरोध के बाद उन्होंने इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया था लेकिन 2019 में दोबारा सरकार का गठन होते ही इसपर कार्य पुनः आरम्भ कर दिया गया। अगर पीएमओ इस प्रस्ताव पर मुहर लगाता है तो जल्द ही इसकी भी शुरुआत हो सकती है। वर्तमान व्यबस्था के तहत रेलवे यात्री से टिकट की वास्तविक लागत में करीब 53 फीसदी ही वसूलता है जबकि बाकी 47 फीसदी का वहन रेलवे खुद करता है जो एक तरह से यह सब्सिडी के तौर पर रेल यात्रियों को मिलती है। अभी इस प्रवधान को विकल रूप में शुरू किया जा रहा है लेकिन इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है कि रेलवे टिकट पर सब्सिडी को पूर्ण रूप से खत्म कर दे और ऐसे में यात्रियों को टिकटों को दोगुने मूल्य पर लेना होगा। यानी सरकार ने आम जनमानस को तगड़ा झटका देने का मन बना लिया है, एक तरह से यह लोगों की जेब पर सरकारी डाका ही साबित होगा।
वर्तमान सरकार ने आजादी के बाद सबसे ज्यादा रेल किराया बढ़ाया, टिकट के कैंशिलेशन से सबसे ज्यादा राजस्व की उगाही की, जो प्लेटफॉर्म टिकट 2 रुपये का था उसका मूल्य 10 रुपये तक कर दिए गए, न केवल यात्री भाड़ा बल्कि माल ढुलाई चार्ज भी रेकॉर्ड स्तर पर बढ़ाया गया फिर भी भारतीय रेलवे घाटे में क्यों ? सरकार के कुप्रबंधन और गलत नीतियों से होने वाली आर्थिक नकुसान की भरपाई जनता के जेब मे ही डाका डालकर पूरा करनें की सरकारी स्किम कब तक ?
आज भी अगर स्टेशनों के टिकट खिड़कियों पर नजर दौड़ाएं तो यात्रियों का हुजूम मिलेगा। रिजर्वेशन टिकट दो-तीन महीने तक अग्रिम ही बुक रहती है। ऊँचे मूल्य पर तत्काल टिकटों से भी रेलवे खुद अतिरिक्त राजस्व उगाही करता है। इतने सारे ग्राहक और कमाई के इतने सारे विकल्पों के वावजूद घाटे में संचालित होने वाली भारतीय रेलवे जैसा दूसरा कोई उदाहरण विश्व भर में नहीं मिलता है।
याद कीजिए यूपीए सरकार के कार्यकाल को .....
यूपीए के सरकार में पूर्व रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव के कार्यकाल में रेल किराया को लगातार घटाया गया जबकि उस दरम्यान पेट्रोल-डीजल का रेट लगातार बढ़ रहा था। रेल किराया लगातार घटाने के वावजूद भारतीय रेलवे रिकार्ड मुनाफा अर्जित किया।
लालू यादव के कुशल प्रबंधन के कारण रेलवे कर्मचारियों में भी लगातार खुशी देखी गई। विश्व के कई देश लालू यादव के इस अभूतपूर्व कार्य से अचम्भित रह गए और इस फायदे के गुर सीखने के लिए विदेशों की टीम लालू यादव से मिलने पहुँची। कई अन्य देशों ने भी लालू यादव को आमंत्रित किया ताकि उनसे इस प्रबंधन के टिप्स को ग्रहण किया जा सकें। सुपरफास्ट ट्रेनों की वातानुकूलित श्रेणी में आम लोगों का सफर सुनिश्चित करने के लिए लालू यादव ने "गरीब रथ" नामक सुपरफास्ट ट्रेन का परिचालन प्रारम्भ किया। गरीब रथ ट्रेन रेलवे के राजस्व उगाही का भी बड़ा जरिया बन गया।
भारतीय रेल (Indian Railway) एशिया का दूसरा सबसे बड़ा रेल नेटवर्क तथा एकल सरकारी स्वामित्व वाला विश्व का चौथा सबसे बड़ा रेल नेटवर्क है। यह 160 वर्षों से भी अधिक समय तक भारत के परिवहन क्षेत्र का मुख्य घटक रहा है। रेलवे लगभग ढाई करोड़ लोगों को यात्रा करवाता है। यानी आस्ट्रेलिया की आबादी के बराबर लोग रेलवे के माध्यम से यात्रा करते हैं। यह भारत का पहला और विश्व का सातवाँ सबसे बड़ा नियोक्ता इकाई है जिसके 13 लाख से भी अधिक कर्मचारी हैं। रेलवे में लगभग 6.5 लाख से ज़्यादा SC, ST, OBC कर्मचारी कार्यरत हैं। स्पष्ट है कि रेलवे के निजीकरण का सबसे बड़ा प्रभाव सरकारी नौकरियों पर पड़ेगा। नौकरियां घटेंगी। पहले से रिकार्ड स्तरीय बेरोजगारी का दंश झेल रहे युवाओं के बीच बेरोजगारी और बढ़ेगी।
रेलवे की दो बड़ी और अहम परीक्षाएं 2020 में होने वाली थीं। एक RRB NTPC Exam तथा दूसरा ग्रुप 'डी' एग्जाम। एनटीपीसी की 35,208 भर्तियों के लिए सवा करोड़ (1.25) से अधिक ऑनलाइन आवेदन प्राप्त हुए थे और रेलवे की ग्रुप 'डी' में एक लाख से ज्यादा सीटें बताई गई थी जिसकी परीक्षा NTPC एग्जाम के बाद होनी थी।
अगर ध्यान से भारतीय रेलवे में काम करने वाले कर्मचारियों की संख्या का विश्लेषण किया जाए तो यह देश का इकलौता सरकारी सेक्टर है जहाँ पिछड़े, अति पिछड़े, दलित समुदाय के लोग भी बड़ी संख्या में कार्यरत हैं। आरएसएस की ऑडियोलॉजिकल संतान भाजपा की नीति हमेशा से आरक्षण के विरोध की रही हैं। रेलवे के निजीकरण की आड़ में भाजपा सरकार पिछले दरवाजे से वंचित तबके के कर्मचारियों को निकाल फेंकने की गहरी घिनौनी साजिश को अंजाम देने में भी जुटी है। एक तो एनडीए सरकार के गठन के बाद रेलवे में युवाओं के रोजगार के लिए वेकैंसी न के बराबर आई है। ग्रुप 'डी' के पदों पर बहाली प्रक्रिया यूपीए सरकार के कार्यकाल तक लगभग प्रतिवर्ष होती रहती थी लेकिन 2014 में भाजपा सरकार के गठन के बाद से अब तक ग्रुप 'डी' के रिक्त पदों पर बहाली के लिए भी वेकैंसी न के बराबर ही आई है। ग्रुप 'डी' में एक लाख से ज्यादा पद रिक्त बताए जा रहे हैं और संभावना थी कि 2020 में इसके आवेदन आमंत्रित किए जाएं। अब रेलवे के निजीकरण के बाद कि स्थिति क्या होगी इसका सहज अंदाज़ा लगाया जा सकता हैं, खासकर वंचित तबके के लिए रेलवे नौकरियों में प्रवेश के तमाम रास्ते लगभग बन्द हो जायेंगे।
मालूम हो कि भारत में प्राइवेट सेक्टर में आरक्षण लागू नहीं है। आरक्षण विरोधी भाजपा सरकार इसी को हथियार बनाकर चन्द समृद्धशाली अगड़े वर्ग के लोगों तक रेलवे की नौकरियों को सीमित कर देना चाहती है।
सरकार के तमाम कार्यों और नीतियों को देखते हुए देश की सबसे बड़ी नियोक्ता इकाई के निजीकरण की षड़यंत्र से इंकार नहीं किया जा सकता है और अगर ऐसा हुआ तो बेरोजगारी का रिकार्ड स्तरीय दंश झेल रहे देश के युवाओं का हकलान होना तय है।
आम जनता की जेब लूटकर चन्द पूंजीपतियों की तिजोरी में भर देने की यह नीति देश पर भारी पड़ने वाली है।
कुल मिलाकर रेलवे के निजीकरण की यह कवायद आम जनमानस के लिए काफी पीड़ादायक है। 'गरीब रथ' के स्थान पर 'अमीर रथ' वाली सरकारी स्कीम देश की जनता कभी स्वीकार नहीं करेंगी।
कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह जी ने सही ही कहा है-
"टैक्स जनता का, इंफ्रास्ट्रक्चर सरकार का और मुनाफा उद्योगपतियों का! वाह मोदी जी वाह!"
दया नन्द