Hastakshep.com-आपकी नज़र-Akhand Bharat-akhand-bharat-Infection due to lock down-infection-due-to-lock-down-Infection-infection-Lock down-lock-down-Namaste Trump-namaste-trump-अखण्ड भारत-akhnndd-bhaart-अमेरिका से सावधान-amerikaa-se-saavdhaan-क्या है-kyaa-hai-मासिक धर्म-maasik-dhrm-राष्ट्रवाद-raassttrvaad

लॉक डाउन की वजह से संक्रमण भारत जैसे घनी आबादी वाले देश में थर्ड स्टेज पर देशभर में नहीं फैला, सच है।

लेकिन महाराष्ट्र और मुंबई, गुजरात, दिल्ली, मध्यप्रदेश के इंदौर और अन्यत्र, उत्तर प्रदेश के आगरा और कानपुर से जो खबरें आ रही हैं,वे वहां थर्ड स्टेज की ओर इशारा कर रहे हैं।

34 दिनों के लॉक डाउन के बाद यह स्थिति है।

लॉक डाउन हटा तो क्या होगा?

लॉक डाउन 3 मई के बाद भी नहीं हटाया जा सका तो क्या होगा?

अमेरिका की आबादी 33 करोड़ है। जो आजादी से पहले अखण्ड भारत (Akhand Bharat,) यानी भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश की कुल आबादी है। अब भी भारत अखण्ड होता तो हम 170 करोड़ या उससे ज्यादा ही होते।

अमेरिका में 10 लाख से ज्यादा लोग कोरोना के शिकंजे में हैं और इनमें से ज्यादातर अश्वेत और गरीब हैं। 56 हजार लोग अब तक मारे गए हैं। बल्कि उन्हें मरने के लिए छोड़ दिया गया है।

आधिकारिक तौर पर कोरोना के बाद दो करोड़ लोग बेरोजगार हैं।

वहां और यूरोप में कृषि और गांव , किसान और मजदूरों का सत्यनाश करने वाली पूंजीवादी साम्राज्य वादी फासिस्ट सत्ता, राजकाज है और मुक्त बाजार की अर्थव्यवस्था विश्व व्यवस्था भी उन्हीं का।

दूसरे विश्वयुद्ध में ब्रिटिश अपने उपनिवेशों से बेदखल हो गए। महायुद्धों में हथियार और कर्ज बांटकर अमेरिका इंग्लैंड, फ्रांस, पुर्तगाल, ऑस्ट्रिया, जर्मनी ,हॉलैंड, स्पेन के कुल साम्राज्य का इकलौता वारिस बनकर दूनिया को गुलाम बना चुका है।

वहां कहने को लोकतन्त्र है। संघीय ढांचा है। संविधान और कानून का राज है। स्वतन्त्र न्याय पालिका है।

मिथक है कि अमेरिकी नागरिक भी महाशक्ति अमेरिका की तरह शक्तिशाली है और अमेरिकी हित में अमेरिका बाकी। दुनिया को तबाह कर सकता है। करता रहा है।

इस अंध सैन्य राष्ट्र और उसके राष्ट्रवाद के खिलाफ थे रवींद्रनाथ। इसपर उनके लिखे पर में विस्तार से लिख बोल चुका हूँ।

क्या है अमेरिका में आम नागरिक की औकात?

क्या

है, अमरीकी महाशक्ति का असली चेहरा? | What is the real face of the American superpower?

क्या है उसकी अर्थव्यवस्था की असलियत? | What is the reality of America's economy?

पलाश विश्वास जन्म 18 मई 1958 एम ए अंग्रेजी साहित्य, डीएसबी कालेज नैनीताल, कुमाऊं विश्वविद्यालय दैनिक आवाज, प्रभात खबर, अमर उजाला, जागरण के बाद जनसत्ता में 1991 से 2016 तक सम्पादकीय में सेवारत रहने के उपरांत रिटायर होकर उत्तराखण्ड के उधमसिंह नगर में अपने गांव में बस गए और फिलहाल मासिक साहित्यिक पत्रिका प्रेरणा अंशु के कार्यकारी संपादक। उपन्यास अमेरिका से सावधान कहानी संग्रह- अंडे सेंते लोग, ईश्वर की गलती। सम्पादन- अनसुनी आवाज - मास्टर प्रताप सिंह चाहे तो परिचय में यह भी जोड़ सकते हैं- फीचर फिल्मों वसीयत और इमेजिनरी लाइन के लिए संवाद लेखन मणिपुर डायरी और लालगढ़ डायरी हिन्दी के अलावा अंग्रेजी औऱ बंगला में भी नियमित लेखन अंग्रेजी में विश्वभर के अखबारों में लेख प्रकाशित। 2003 से तीनों भाषाओं में ब्लॉग पलाश विश्वास
जन्म 18 मई 1958
एम ए अंग्रेजी साहित्य, डीएसबी कालेज नैनीताल, कुमाऊं विश्वविद्यालय
दैनिक आवाज, प्रभात खबर, अमर उजाला, जागरण के बाद जनसत्ता में 1991 से 2016 तक सम्पादकीय में सेवारत रहने के उपरांत रिटायर होकर उत्तराखण्ड के उधमसिंह नगर में अपने गांव में बस गए और फिलहाल मासिक साहित्यिक पत्रिका प्रेरणा अंशु के कार्यकारी संपादक।
उपन्यास अमेरिका से सावधान
कहानी संग्रह- अंडे सेंते लोग, ईश्वर की गलती।
सम्पादन- अनसुनी आवाज - मास्टर प्रताप सिंह
चाहे तो परिचय में यह भी जोड़ सकते हैं-
फीचर फिल्मों वसीयत और इमेजिनरी लाइन के लिए संवाद लेखन
मणिपुर डायरी और लालगढ़ डायरी
हिन्दी के अलावा अंग्रेजी औऱ बंगला में भी नियमित लेखन
अंग्रेजी में विश्वभर के अखबारों में लेख प्रकाशित।
2003 से तीनों भाषाओं में ब्लॉग

हम दस साल तक अमेरिका से सावधान लिखते हुए लोगों को, पढ़े लिखे लोगों को भी यह समझा नहीं सके और भारत अमेरिकी उपनिवेश बन गया।

हमारे यहां आम नागरिक की औकात क्या है?

क्या है हमारी ताकत की असलियत?

क्या है हमारी अर्थव्यवस्था?

कैसा है संविधान, कानून का संसदीय राजकाज और लोकतंत्र?

समानता, न्याय, विविधता, बहुलता, भाषा, धर्म, संस्कृति,

विचारधारा, विरासत और इतिहास,भूगोल, पुरातत्व के सच जानने के लिए हमें आईने में अपना चेहरा देखना होगा।

एक आईना अमेरिका भी है।

करेंगे सच का सामना?

न्यूयार्क से डॉ पार्थ बनर्जी का आंखों देखा हाल रोज़ लाइव शेयर कर रहा हूँ।

कुछ पढ़ भी लीजिए।

पलाश विश्वास

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