जम्मू-कश्मीर के चुनावी माहौल में भाजपा की चुनावी रणनीतियों और धर्म आधारित राजनीति का विश्लेषण। बादल सरोज के इस लेख से जानिए कि कैसे भेड़ की खाल ओढ़कर मतदाताओं को लुभाने की कोशिश की जा रही है।
चुनावों में सहूलियतों और राहतों का ऐलान बुरी बात नहीं है – लोकतंत्र में यही वक़्त होता है जब लोक से तन्त्र को थोड़ा बहुत डर लगता है। चुनाव ही ऐसे अवसर होते हैं जब ऊँट और उस पर सवार नेता और उनकी पार्टियां पहाड़ के नीचे आती हैं। इसी बहाने सही, किसी बहाने तो उस अवाम को लाभ पहुंचना चाहिए जिनकी याद चुनाव जीत जाने के बाद सत्ता पार्टियों और खासकर भाजपा को कभी नहीं आती। उलटे याद दिलाने पर वे पूरी बेशर्मी के साथ अपने वायदों और घोषणापत्र के वायदों को जुमला बताकर पतली गली से निकल लेते हैं। इन दिनों उन्हें ऐसा करना और सुविधाजनक हो गया है क्योंकि जिस मीडिया को उनसे पूछताछ करनी चाहिए वह अपने हिस्से की खीर-पूड़ियाँ गिनकर वसूल लेता है और फिर उन्ही की बीन बजाने लगता है। मगर इसके बाद भी कुछ ऐलान वाकई में चौंकाने वाले होते हैं कि आखिरकार कोई इस हद तक झूठ की बौछार कैसे कर सकता है जैसी जम्मू कश्मीर के विधान सभा चुनावों में मतदाताओं को रिझाने के लिए भाजपा नेतृत्व के दो नम्बर पर बैठे अमित शाह ने की है।
घाटी की चुनावी सभाओं में उन्होंने कहा है कि अगर उनकी पार्टी चुनावों में
साम्प्रदायिकता का उभार
यह सिर्फ पाखंड नहीं है – यह धूर्तता और बर्बरता का सांघातिक मेल है। आज जिनके वोट कबाड़ने के लिए मुफ्त सिलेंडर का जाल बिछाया जा रहा है ये वे ही कश्मीरी हैं जिनकी एक नाबालिग बच्ची आसिफा को कठुआ के एक मन्दिर के गर्भगृह में बंदी बनाकर कई दिनों तक उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया गया और उसके बाद निर्ममता के साथ उसकी ह्त्या कर दी गयी। जब इस जघन्यता के अपराधी गिरफ्तार हुए तो उन्हें बचाने के लिए, उनके समर्थन में इन्ही अमित शाह की भाजपा और उसके हिंदुत्ववादी संगठनों ने भगवा और तिरंगे झंडे लेकर सडकों पर बवाल मचाया था। इन प्रदर्शनों में तब की जम्मू कश्मीर की साझा सरकार के भाजपाई मंत्री खुद शामिल हुए थे और दुष्कर्मियों को हिन्दू वीर बताते हुए उनकी रिहाई के लिए आन्दोलन चलाया था। निर्लज्जता की पराकाष्ठा यह थी कि पीड़िता की तरफ से मुकदमा लड़ने वाली महिला वकील को पहले ट्रौल फिर सीधे धमकियों का निशाना बनाकर उन्हें भी डराने की कोशिश की।
बाद में न्यायालय ने उस मंदिर के कथित पुजारी और कुछ पुलिसवालों सहित दुष्कर्म और ह्त्या के अपराधियों को कड़ी सजा सुनाई थी। अब इधर यही मंडली उन सजायाफ्ताओं के लिए अपील और वकील जुटा रही है और उधर उन्ही की पार्टी के अमित शाह आसिफा जिन गुज्जरों और बाकलीवालों के समुदाय की थी उन्ही के हितैषी बनने की धजा बनाए घूम रहे हैं।
जिस धार्मिक समुदाय – मुसलमानों – की ईद और मुहर्रम की याद उन्हें आ रही हैं यह वही समुदाय है जिसके खिलाफ नफ़रत इस पार्टी की बुनियाद में है, जिस समुदाय से जुड़े भारतीयों की इस या उस नाम पर हत्याओं को प्रोत्साहित ही नहीं संगठित भी किया जा रहा है। पशु व्यापारियों की गौ तस्करी के नाम पर लिंचिंग, उन्हें जान से मार डालने की दहलाने वाली वारदातें अब यदा कदा की घटनाएँ नहीं है। यह योजनाबद्ध तरीके से की जा रही हैं, निशाने बनाकर की जा रही हैं और बाकायदा ऐलानिया उस गिरोह की तरफ से की जा रही है जिसका एक बाजू भारतीय जनता पार्टी है। अब दिखावे की आड़ भी नहीं बची है, पार्टी नेता खुलेआम हत्याओं के आव्हान और हत्यारी भीड़ों की अगुआई करते दिखने में भी परहेज नहीं करते और यह सिर्फ संगीत सोम जैसे स्थानीय और छुटभैये नेताओं तक सीमित नहीं है, मुख्यमंत्री और केन्द्रीय मंत्री तक इस तरह के उकसावों भड़कावों यहाँ तक कि कार्यवाहियों में शामिल हैं। भाजपा शासित प्रदेशों में तो कथित गौ रक्षक और सस्कृति रक्षक के नाम पर बाकायदा गुंडों के गिरोह तैयार कर उन्हें सरकारी मान्यता और संरक्षण प्रदान किया जा चुका है। लव जिहाद का झूठ अब एजुकेशन जिहाद के नाम पर शिक्षा संस्थाओं पर हमलों और मुस्लिम समुदाय के छात्र छात्राओं को शिक्षा हासिल करने के दायरे से ही बाहर खदेड़ देने की हिटलरी मुहिम तक पहुंचा दिया गया।
आगामी चुनावों की चुनौतियाँ
लोकतंत्र के मूल्यों की रक्षा
जनता की जागरूकता का महत्व
सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता
अमित शाह जो दो सिलेंडर के नाम पर कश्मीरी मुसलमानों को लुभाना चाहते हैं वे आजादी के बाद इस देश की ऐसी पहली सरकार के गृह मंत्री हैं जिसमे एक भी मुस्लिम मंत्री नहीं है। इससे पहले देश में कभी कोई सरकार नहीं रही जिसमे आबादी के करीब पांचवे हिस्से के समुदाय से कोई मंत्री नहीं बनाया गया हो। मुख्तार अब्बास नकवी आख़िरी ऐसे मंत्री थे जो मुस्लिम समुदाय से आते थे। मोदी जब 2014 में पहली बार प्रधानमंत्री बने तो नजमा हेपतुल्ला कैबिनेट में थीं और एम जे अकबर और नकवी राज्य मंत्री बनाये गए ; 2019 में अकेले नकवी रह गए। 2022 में उनकी राज्यसभा सांसदी की मियाद पूरी हुयी और फिर से राज्यसभा में नहीं भेजे गए तो अधबीच में ही मंत्रिमंडल से जाते रहे। न उनके बाद कोई लिया गया न 2024 में किसी को लिया। भाजपा में लोकसभा के लिए टिकिट पाने वाले मुस्लिम समुदाय के लोगों की संख्या भी इसी तरह लगभग शून्य पर पहुँचती जा रही है। 2014 के लोकसभा चुनावों में भाजपा ने 7 मुस्लिम उम्मीदवार खड़े किये, 19 में ये घटकर 6 और 24 में सिर्फ एक रह गए ; केरल के मलप्पुरम से अब्दुल सलाम भर को टिकिट दिया गया, वे भी हार गए। यही हालत विधानसभाओं की है जहां भाजपा किसी भी मुसलमान को टिकिट न देना अपनी श्रेष्ठता का सबूत बताकर चुनाव लडती है और उसके नाम पर ध्रुवीकरण करती है। काश्मीर में उन्ही को गैस सिलेंडर का छलावा देकर अमित शाह चुनाव जीतना चाह रहे हैं।
देश न सही मगर कमसेकम उनकी भक्त मंडली जरूर इस बात की उम्मीद कर रही थी कि उनके ये परम नेता कश्मीर चुनाव का प्रमुख मुद्दा धारा 370 को हटाये जाने को बनायेंगे। जिन कश्मीरी पंडितों के नाम पर वे आकाश पाताल गुंजाते रहे हैं, जिनके बहाने बाकी देश में ध्रुवीकरण करते रहे हैं उन्हें वापस फिर से उनके घरों में बसाने की समय सीमा बताएँगे। तीन तलाक़ के कथित खात्मे का महात्म्य समझायेंगे। जिस सीमापार आतंकवाद को रोकने के नाम पर उन्होंने नोटबंदी से खुद अपने ही देश की आर्थिक नाकाबंदी तक के गुल खिलाये थे उस आतंकवाद को रोकने की ठोस समयबद्ध योजना बताएँगे। सारे कश्मीरियों को वह कश्मीर फाइल्स नाम की फिल्म दिखाएँगे जिसके जरिये उन्होंने अब तक मोटा मोटी धर्मनिरपेक्ष और समावेशी रहे बोलीवुड और फिल्म माध्यम को अपनी जहर खुरानी का जरिया बनाया। कश्मीरियों के सेबों पर अडानी का कब्जा कराने की तबाही वाली नीतियों और उनकी मुख्य आमदनी पर्यटन की बर्बादी कैसे रुकेगी इस पर मुंह खोलेंगे। मगर ऐसा कुछ करने की बजाय वे सीधे इस हाथ दे उस हाथ ले करने लगे और मुफ्त सिलेंडर देने पर आ गए। यह थोड़े एक्स्ट्रा अचरज की बात इसलिए भी है कि इन्हीं के बड़े वाले मोदी जी यूपी बिहार के चुनाव शमशान और कब्रिस्तान के नाम पर लड़ते रहे हैं, ईद में बिजली देने और दीवाली में कटौती करने को राष्ट्र की सबसे बड़ी विपदा बताते रहे हैं। उनके सबसे ख़ास, बल्कि इकलौते विश्वस्त अमित शाह ने कश्मीर में ठीक इससे उलट धुन में बाजा बजा दिया है और इस तरह दीवारों पर लिखी इबारत को बांच लिया है कि जम्मू और कश्मीर की जनता इन चुनावों में उनका बाजा बजाने वाली है। यह भी कि यह बात उन्हें भी अच्छी तरह से मालूम है।
ऐसा नहीं है कि घाटी और जम्मू और लद्दाख की जनता के गुस्से और आक्रोश से वे इन विधानसभा चुनावों के समय ही अवगत हुए हैं ; इसका पता उन्हें पहले से भी रहा है इसीलिये जितनी देर कर सकते थे उससे भी ज्यादा देर करके उन्होंने यहाँ के चुनावों का ऐलान किया। वह भी मर्जी से नहीं किया, सुप्रीम कोर्ट की चेतावनी के बाद किया। उसके करने के पहले विधानसभा क्षेत्रों के परिसीमन और पुनर्गठन के नाम पर जितनी तिकड़म कर सकते थे, जितनी साजिश रच सकते थे उतनी करने और रचने के बाद किया। इसी क्षोभ का भय था कि 400 पार करने का दंभ ठोंककर, हर मतदान केंद्र पर 370 वोट बढाने के संकल्प के साथ लड़े गए भारत के अब तक के सबसे महंगे और ध्रुवीकृत लोकसभा चुनाव में सब जगह लड़े मगर जिसके बहाने 370 का नारा सूत्रबद्ध किया था उस जम्मू कश्मीर की सीटों की तरफ मुंह तक नहीं किया। बिना लड़े हार मानने के बाद अब लड़कर हारने से पहले ईद भी याद आ रही है मुहर्रम भी।
देश की संसद में वक्फ बोर्ड्स के खात्मे का बिल पेश करने के बाद कश्मीर में जाकर मुसलमानों की याद आना एक ऐसा छल और झूठ है जिसकी किसी भी सभ्य समाज के परिपक्व लोकतंत्र में कोई दूसरी मिसाल नहीं मिलती। मगर जब कोई झूठ बोलने पर इस कदर आमादा हो कि शपथ खाकर बैठा हो कि वह झूठ, झूठ और सिर्फ झूठ ही बोलेगा, झूठ के सिवाय कुछ नहीं बोलेगा तो वही होता है जो इन विधानसभा चुनावों में भी हो रहा है। भाजपा के चुनाव प्रचार के अखंड ध्वजाधारी मोदी तो लगता है झूठ की प्राणप्रतिष्ठा के लिए ही नॉन बायोलॉजिकल अवतार लिए हैं और उसी में अपने प्राण लगाए हुए हैं। नित नए झूठ गढ़ना और उसे उच्चतम तीव्रता के साथ बोलना ही एकमात्र काम बचा है। लोकसभा चुनाव का शंख जिस राम नगरी में फूँका था पहले वहां की जनता ने हराकर बाद में टूटी फूटी पाताल मार्ग दिखाती सड़कों ने रही सही पोल भी खोल दी है, इसलिए फिलहाल हमेशा एजेंडे में ऊपर रहने वाले राम अपने मंदिर सहित वनवास भेज दिए गए हैं। इन चुनावों के अभियान का श्री गणेश, सी जे आई चन्द्रचूड के यहाँ श्री गणेशाय नमः से किया गया। मगर जब यह पूजा और आरती ज्यादा लहर नहीं उभार पाई तो स्वयं प्रधानमंत्री ने कर्नाटक में गणेश की गिरफ्तारी किये जाने का झूठ बोलकर सनसनी फैलाने की कोशिश की। यह भी नहीं चल पाया तो घूम फिर कर पूरा कुनबा अपने परम्परागत आख्यान पाकिस्तान कोहराम पर आ गया है। पहले यह काम उनके कुनबे के छोटे लोग करते थे अब खुद उन्होंने ही कमान थाम ली है और मोदी – शाह से लेकर योगी आदित्यनाथ तक ने विरोधियों की सभाओं में पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगने से लेकर उनकी जीत को पाकिस्तान की जीत बताने तक की बातें बनाना शुरू कर दी हैं। अभी तो जम्मू कश्मीर और हरियाणा के चुनाव हैं तब यह हाल हैं, महाराष्ट्र और झारखंड आने तक यह सन्निपात कहाँ तक पहुंचेगा यह समझा जा सकता है।
लोकसभा चुनावों में काफी हद तक इस देश की जनता इस सच को जान चुकी है। इन विधानसभा चुनावों में भी धार्मिकता की आड़ में फैलाई जा रही साम्प्रदायिकता को लोग समझ रहे हैं ; जैसे-जैसे यह कुहासा छंट रहा है वैसे वैसे अंधियारे के अग्रदूत हिन्दू मुसलमान के मुद्दे पर नफरती मुहिम तेज कर रहे हैं। उन्हें पता है कि अब जो भी आसरा है वह विषवमन से विग्रह, वैमनस्य बरपाने का ही है। उन्हें भले परवाह नहीं कि यह रास्ता किस तरह के विनाश की ओर ले जा सकता है, किन्तु जिनका देश है वे मेहनतकश मजदूर किसान और उनके परिवारी युवा और महिलायें इन खतरों को जानते हैं। मध्यम वर्ग का खुमार भी अब तेजी से उतरता दिख रहा है। हाल के दिनों में आगे बढ़ते आन्दोलन और उनमे दिखती एकता इन आशंकाओं के विरुद्ध सम्भावनाओं की सुबह है।
बादल सरोज
सम्पादक लोकजतन, संयुक्त सचिव अखिल भारतीय किसान सभा
The intention of entering the valley wearing sheep's skin