हर साल 22 अप्रैल दुनियाभर में पृथ्वी दिवस (Earth Day) या अंतर्राष्ट्रीय मातृ पृथ्वी दिवस (International Mother Earth Day) मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस (UN Secretary-General António Guterres) के पृथ्वी दिवस पर संदेश के मुताबिक हमें अपने ग्रह (पृथ्वी) को कोरोनोवायरस और जलवायु व्यवधान के अस्तित्व के खतरे से बचाने के लिए निर्णायक रूप से कार्य करना चाहिए। जलवायु परिवर्तन, मानव निर्मित प्रकृति के साथ-साथ अपराध जो जैव विविधता को नष्ट करते हैं, वनों की कटाई, भूमि उपयोग परिवर्तन, गहन कृषि और पशुधन उत्पादन या बढ़ते अवैध वन्यजीव व्यापार, जानवरों से संक्रामक रोगों जैसे कि COVID -19 जैसे मानव (जूनोटिक रोग) के संपर्क और संचरण को बढ़ा सकते हैं। इंटरनेशनल मदर अर्थ डे कब मनाया जाता है, बताता वरिष्ठ पत्रकार और पर्यावरणविद् अरुण तिवारी का यह लेख मूलतः हस्तक्षेप पर 22 अप्रैल 2017 को प्रकाशित हुआ था। इस खबर में वह बता रहे हैं कि विश्व पृथ्वी दिवस कब और क्यों मनाया जाता है, 22 अप्रैल कैसे पृथ्वी दिवस बना, विश्व पृथ्वी दिवस का महत्व क्या है।
भारतीय कालगणना दुनिया में सबसे पुरानी है। इसके अनुसार, भारतीय नववर्ष का पहला दिन, सृष्टि रचना की शुरुआत का दिन है।
पृथ्वी का जन्मदिन कब है ?
आईआईटी, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ. बिशन किशोर (Professor Bishan Kishore of IIT, Banaras Hindu
जाहिर है कि 22 अप्रैल, पृथ्वी का जन्म दिवस नहीं है। चार युग जब हजार बार बीत जाते हैं, तब ब्रह्मा जी का एक दिन होता है। इस एक दिन के शुरु में सृष्टि की रचना प्रारंभ होती है और संध्या होते-होते प्रलय।
ब्रह्मा जी की आयु सौ साल होने पर महाप्रलय होने की बात कही गई है।
रचना और प्रलय... यह सब हमारे अंग्रेजी कैलेण्डर के एक दिन में संभव नहीं है। स्पष्ट है कि 22 अप्रैल, पृथ्वी का प्रलय या महाप्रलय दिवस भी नहीं है। फिर भी दुनिया इसे 'इंटरनेशनल मदर अर्थ डे' यानी 'अंतर्राष्ट्रीय मां पृथ्वी का दिन' के रूप में मनाती है। हम भी मनायें, मगर यह तो जानना ही चाहिए कि क्या हैं इसके संदर्भ और मंतव्य ?? मैंने यह जानने की कोशिश की है; आप भी करें।
सच है कि 22 अप्रैल का पृथ्वी से सीधे-सीधे कोई लेना-देना नहीं है। जब पृथ्वी दिवस का विचार सामने आया, तो भी पृष्ठभूमि में विद्यार्थियों का एक राष्ट्रव्यापी आंदोलन था; वियतनामी यु़द्ध विरोध में उठ खड़े हुए विद्यार्थियों का संघर्ष। 1969 में सांता बारबरा (कैलिफोर्निया) में बड़े पैमाने पर बिखरे तेल से आक्रोशित विद्यार्थियों को देखकर गेलॉर्ड नेलसन के दिमाग में ख्याल आया कि यदि इस आक्रोश को पर्यावरणीय सरोकारों की तरफ मोड़ दिया जाये, तो कैसा हो।
नेलसन, विसकोंसिन से अमेरिकी सीनेटर थे। उन्होंने इसे देश को पर्यावरण हेतु शिक्षित करने के मौके के रूप में लिया। उन्होंने इस विचार को मीडिया के सामने रखा।
अमेरिकी कांग्रेस के पीटर मेकेडलस्की ने उनके साथ कार्यक्रम की सह अध्यक्षता की। डेनिस हैयस को राष्ट्रीय समन्वयक नियुक्त किया गया।
आवश्यकता बनी विचार की जननी
खंगाला तो पता चला कि साठ का दशक, हिप्पी संस्कृति का ऐसा दशक था, जब अमेरिका में औद्योगीकरण के दुष्प्रभाव (Side effects of industrialization in america) दिखने शुरु हो गये थे। आज के भारतीय उद्योगपतियों की तरह उस वक्त अमेरिकी उद्योगपतियों को भी कानून का डर, बस! मामूली ही था।
यह एक ऐसा दौर भी था कि जब अमेरिकी लोगों ने औद्योगिक इकाइयों की चिमनियों से उठते गंदे धुंए को समृद्धियों के निशान के तौर पर मंजूर कर लिया था।
इसी समय इस निशान और इसके कारण सेहत व पर्यावरण पर पड़ रहे असर के खिलाफ जन जागरूता की दृष्टि से रचित मिस रचेल कार्सन की लिखी एक पुस्तक की सबसे अधिक बिक्री ने साबित कर दिया था कि पर्यावरण को लेकर जिज्ञासा भी जोर मारने लगी है।
विचार को मिला दो करोड़ अमेरिकियों का साथ Idea got support of 20 million Americans
गेलॉर्ड नेलसन (Senator Gaylord Nelson,) की युक्ति का नतीजा यह हुआ कि 22 अप्रैल, 1970 को संयुक्त राज्य अमेरिका की सड़कों, पार्कों, चौराहों, कॉलेजों, दफ्तरों पर स्वस्थ-सतत् पर्यावरण को लेकर रैली, प्रदर्शन, प्रदर्शनी, यात्रा आदि आयोजित किए। विश्वविद्यालयों में पर्यावरण में गिरावट को लेकर बहस चली।
ताप विद्युत संयंत्र, प्रदूषण फैलाने वाली इकाइयां, जहरीला कचरा, कीटनाशकों के अति प्रयोग तथा वन्य जीव व जैवविविधता सुनिश्चित करने वाली अनेकानेक प्रजातियों के खात्मे के खिलाफ एकमत हुए दो करोड़ अमेरिकियों की आवाज ने इस तारीख को पृथ्वी के अस्तित्व के लिए अह्म बना दिया।
तब से लेकर आज तक यह दिन दुनिया के तमाम देशों के लिए खास ही बना हुआ है।
आगे बढ़ता सफर
पृथ्वी दिवस का विचार देने वाले गेलॉर्ड नेलसन ने एक बयान में कहा –
’’यह एक जुआ था; जो काम कर गया।’’
सचमुच ऐसा ही है। आज दुनिया के करीब 184 देशों के हजारों अंतर्राष्ट्रीय समूह इस दिवस के संदेश को आगे ले जाने का इस काम कर रहे हैं।
वर्ष 1970 के प्रथम पृथ्वी दिवस आयोजन के बाद संयुक्त राष्ट्र संघ के दिल में भी ख्याल आया कि पर्यावरण सुरक्षा हेतु एक एजेंसी बनाई जाये।
वर्ष 1990 में इस दिवस को लेकर एक बार उपयोग में लाई जा चुकी वस्तु के पुर्नोपयोग का ख्याल व्यवहार में उतारने का काम विश्वव्यापी संदेश का हिस्सा बना।
1992 में रियो डी जिनेरियो में हुए पृथ्वी सम्मेलन ने पूरी दुनिया की सरकारों और स्वयंसेवी जगत में नई चेतना व कार्यक्रमों को जन्म दिया। एक विचार के इस विस्तार को देखते हुए गेलॉर्ड नेलसन को वर्ष 1995 में अमेरिका के सर्वोच्च सम्मान 'प्रेसिडेन्सियल मैडल ऑफ फ्रीडम' से नवाजा गया। नगरों पर गहराते संकट को देखते हुए अंतर्राष्ट्रीय मां पृथ्वी का यह दिन 'क्लीन-ग्रीन सिटी' के नारे तक जा पहुंचा है।
पृथ्वी दिवस आयोजन का मंतव्य | Destination of Earth Day event
अंतर्राष्ट्रीय मां पृथ्वी के एक दिन - 22 अप्रैल के इस सफरनामें को जानने के बाद शायद यह बताने की जरूरत नहीं कि पृथ्वी दिवस कैसे अस्तित्व में आया और इसका मूल मंतव्य क्या है।
आज, जब वर्ष 1970 की तुलना में पृथ्वी हितैषी सरोकारों पर संकट ज्यादा गहरा गये हैं कहना न होगा कि इस दिन का महत्व कम होने की बजाय, बढ़ा ही है।
इस दिवस के नामकरण में जुड़े संबोधन 'अंतर्राष्ट्रीय मां' ने इस दिन को पर्यावरण की वैज्ञानिक चिंताओं से आगे बढकर 'वसुधैव कुटुम्बकम' की भारतीय संस्कृति से आलोकित और प्रेरित होने का विषय बना दिया है।
इसका उत्तर इस प्रश्न में छिपा है कि भारतीय होते भी हम क्यों और कैसे मनायें अंतर्राष्ट्रीय पृथ्वी दिवस ?
इस पर चर्चा फिर कभी। फिलहाल सिर्फ इतना ही कि 22 अप्रैल अंतर्राष्ट्रीय मां के बहाने खुद के अस्तित्व के लिए चेतने और चेताने का दिन है। आइये, चेतें और दूसरों को भी चेतायें।
अरुण तिवारी
We must act decisively to protect our planet from both the coronavirus and the existential threat of climate disruption.
UN Secretary-General António Guterres