किसान आन्दोलन के समर्थन में देश भर के अंबेडकरवादियों और बहुजन समाज से अनुरोध करते हुए श्रमण संस्कृति आंदोलन भारत के संयोजक आचार्य भिक्षु सुमित रत्न थेरा (Acharya Bhikkhu Sumit Ratan thera, Convenor of Shraman Culture Movement India) ने कहा है कि अन्नदाता के ऊपर पुलिस की बर्बर हिंसा के बाद उन्हें बेहद दुःख हुआ और उन्होंने अपने सभी कार्यक्रमों को एक किनारे कर गाजीपुर में चल रहे किसान आन्दोलन का समर्थन करने का फैसला किया.
आज उन्हें 70 से अधिक दिन हो गए हैं और वह कहते हैं, हमें अपने सारे मतभेद भुलाकर इस संघर्ष में जुड़ना चाहिए क्योंकि ये अन्नदाता और अन्नखाता दोनों के लिए ही महत्वपूर्ण प्रश्न है और उससे भी महत्वपूर्ण है के यह संविधान बचाने की लड़ाई भी है.
बीती 16 फरवरी को गाजीपुर बॉर्डर पर बातचीत में उन्होंने अपने विचारों को बेहद स्पष्ट तरीके से रखा और कहा कि वह ये जानते हैं कि बड़ी जातियों के किसानों ने गाँव में भूमिहीन श्रमिकों, जिसमें बड़ी संख्या दलितों और अति पिछड़ों की है, के साथ अत्याचार किये हैं लेकिन ये आवश्यक है इस समय किसान की लड़ाई में हम सबको साथ रहने की जरूरत है, क्योंकि ये संघर्ष देश को और संविधान को बचाने के लिए है। उन्होंने कहा कि सामाजिक राजनैतिक संघर्षों में बदले की भावना से कार्य नहीं होते.
आचार्य भिक्षु सुमित रत्न थेरा ने कहा कि हम किसान एक बहुत बड़ा वर्ग हैं और जो भी जातीय हिंसा या जातीय आधार पर अपशब्दों का प्रयोग करता है वो इसलिए क्योंकि वह वर्ण व्यवस्था को मानने वाले लोग
उनका कहना है कि दलित पिछड़ों को जातिवाद के दलदल से बाहर निकलना होगा. जब हम स्वयं ही आपस में जातिगत मतभेद करते हैं तो दूसरे से कैसे लड़ेंगे. जाति से सबसे ज्यादा चिपका यही समाज है जो आपस में भी रोटी बेटी के रिश्ते करने को तैयार नहीं है.
उन्होंने कहा कि जब बाबा साहेब आंबेडकर ने इतने वर् पूर्व हमें एक रास्ता दिखा दिया तो फिर किसने रोका है.
वह यह भी मानते हैं कि राजनैतिक सत्ता से ज्यादा महत्वपूर्ण है सांस्कृतिक और आर्थिक सत्ता ताकि अब स्वतंत्र रूप से राजनीतिक सत्ता को प्राप्त कर सके. अभी की स्थिति में तो दलित राजनैतिक सत्ता नहीं प्राप्त कर सकते और यदि करेंगे भी तो चला नही पायेंगे क्योंकि उसकी मजबूती के लिए जो सामाजिक सांस्कृतिक दर्शन है वह हमारे पास नहीं होता.
भिक्षु कहते हैं बाबा साहेब के कारण आज राजनैतिक आरक्षण के चलते हमारे 135 लोग संसद में होते हैं, लेकिन वे कभी ये नहीं कहते कि वे बाबा साहेब के कारण वहा पहुंचे हैं. सभी यही मानते हैं कि अपनी पार्टियों की बदौलत ही वे संसद में पहुंचे हैं.
वह कहते हैं यदि हम बौद्ध बनकर भी जाति से जुड़े हुए हैं, छुआछूत और जातिभेद करते हैं तथा कोई वैज्ञानिक दृष्टिकोण नहीं विकसित कर पाए तो हम बुद्धिस्ट न होकर ब्राह्मणवादी ही हैं.
वह कहते हैं कि ये आन्दोलन बहुत विस्तृत है इसलिए केवल बाबा साहेब आंबेडकर को ही माने वह नहीं होगा. उनके प्रयासों से किसानों में डाक्टर आंबेडकर और बुद्ध की बात पहुँची है और अब मंच पर किसान नेता बाबा साहेब और बुद्ध का नाम ले रहे हैं. यह बहुत अच्छी बात है.
वह कहते हैं कि हमारे संत महात्मा जैसे रविदास, कबीर आदि सभी हमारे आदर्श हैं और उनके बताये मार्ग पर चलकर ही हम एकता बना सकते हैं.
आचार्य भिक्षु सुमित रत्न थेरा यह भी कहते हैं कि लड़ाई लम्बी है लेकिन असंभव नहीं है और सभी प्रगतिशील, शांतिप्रिय, देशभक्त लोगों को किसानों का सहयोग करना चाहिए और इस आन्दोलन को मजबूत करना चाहिए. आज जरूरत हम सभी को मानववादी बनने की है. अम्बेडकरवादी यदि बाबा साहेब को सही ढंग से समझे हैं तो मानववादी बन जाइए तो अच्छा रहेगा. जाति के अन्दर, अंधविश्वास में फंसकर, वर्णवादी परम्पराओं में रहकर आप चाहे जितना भी गुणगान कर लीजिये लेकिन अम्बेडकरवादी नहीं हो सकते, इसलिए आज जरूरत है बाबा साहेब को समझने की और उनके आदर्शों पर ईमानदारी से चलने की तभी आज के युवा को एक नई दिशा मिल सकेगी.
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