जब मोदी के विकास जुमले की लहर पूरे देश में चल रही थी तब भी दिल्ली में “आप” की जीत हुई थी. आज जब मोदी का बहुमत की भीड़ से संसद में संविधान के मूल स्तम्भों को धराशायी करने का षड्यंत्र उफ़ान पर है तब भी दिल्ली में “आप” की जीत हुई. गोली मारो सालों को, करंट लगेगा, आतंकवादी, पाकिस्तान की जीत होगी और फिर अंततः हनुमान पर आकर चुनाव लड़ा गया. हनुमान जी ने “आप” को जीत दिला दी.
भूमंडलीकरण के वार से पूरी दुनिया में मार्क्सवाद मूर्छित है. पूंजीवाद दक्षिणपंथ और कट्टरवाद के सहारे पूरे विश्व का शोषण कर रहा है. भारत में भी वही खेल चल रहा है.
याद कीजिये 1990 भूमंडलीकरण की बुनियाद का दशक, भारत में 6 दिसम्बर 1992 बाबरी ढांचे का ‘राम’ के नाम पर गिराया जाना. संसद बेच कर भूमंडलीकरण की गोद में बैठने का उदारवादी ‘पूंजीवादी’ खेल. मध्यमवर्ग का उफ़ान, सिलिकॉन वैली, बाज़ार और विकास. इस सबकी आड़ में निजी मीडिया में आस्था, संस्कार आदि चैनलों में धर्मान्धता का प्रचार, जगह-जगह योग का ढोंग रच नव धनाढ्य मध्यमवर्ग में अपने को स्थापित कर आरएसएस ने अपने को मजबूत किया.
और जब भूमंडलीकरण के ध्वज वाहक मनमोहन सिंह कमज़ोर हुए तो आरएसएस ने चाल,चरित्र और चेहरे के मुखौटे को उतार फेंका और अपने असली तानशाह को सत्ता पर बैठाने का षड्यंत्र रचा. इस षड्यंत्र को रचने के लिए उन्होंने CAG जैसे संवैधानिक पद के मुखिया का उपयोग कर भ्रष्टाचार के अजगर को सामने रखा. पूर्व जासूस को एक जन आन्दोलन के लिए नियुक्त किया.
“आप” जब सत्ता में आई तो सबसे पहले पार्टी से संविधान सम्मत सुरों को लात मारी गई. एक आत्महीन तानाशाह ने पूरे आन्दोलन को ध्वस्त कर पार्टी को अपनी कठपुतली बना दिया. दिल्ली में LG के माध्यम से नूरा कुस्ती चलती रही.
विकास के लालच में अँधा मध्यमवर्ग खुद सूली पर चढ़ गया. विकास तो क्या हुआ जो हाथ में था वो भी लुट गया. उसके बदले मिला राष्ट्रवाद, बेरोजगारी और बर्बाद अर्थव्यवस्था. पर राष्ट्रवाद का घोड़ा फिर सत्ता पर जा पहुंचा.
भेड़ियों ने आते ही संविधान को नोचना शुरू कर दिया. पर भेड़ बना समाज धीरे धीरे राष्ट्रवाद के उन्माद से बाहर निकलना शुरू हुआ और देश में भेड़ियों के संविधान पर हमले का विरोध करने लगा.
आरएसएस अपने भेड़ियों के उजागर होने से हिला हुआ है. उसकी रणनीति है कि अगर समाज में भेड़ियों का विरोध बगावत पर उतर आया तो वो इन भेडियों से किनारा कर लेगी जैसे गांधी के हत्यारे से किया था. ऐसे समय में “आप” पार्टी उसका राजनैतिक ऑउटफिट बनकर सत्ता पर काबिज़ होगा. इसलिए दिल्ली चुनाव के पहले उसके प्रवक्ता ने कहा भाजपा का विरोध हिंदुत्व का विरोध नहीं है. नतीजा “आप” के सामने है बजरंगबली ने “आप” को जीत दिला दी.
दिल्ली की जनता मोहरा बन गई. कांग्रेस अपने चक्रव्यूह में फंसकर ‘बिल्ली’ के भाग जागने की राह देख रही है. वामपंथ मूर्छित है और आम्बेडकरवादी सत्ता के गलियारों में छिन भिन्न! ऐसे समय में संविधान और भारत एक विचार के पुरोधाओं को देश में व्यापक ‘विचार मंथन’ कर समाज में संविधान के प्रति पनपे विष को अलग करने का आन्दोलन व्यापक करना होगा. चुनावी खेल से दूर इस मंथन से समय रहते देश के युवाओं को जोड़ना अनिवार्य है भारत के लिए!
मंजुल भारद्वाज