हमारे माननीय प्रधानमंत्री अन्ना के आंदोलन को लोकतंत्र के लिए खतरा बता रहे हैं। मैं प्रधानमंत्री से पूछना चाहता हूं कि क्या शांतिपूर्वक धरना या अनशन लोकतंत्र के लिए खतरा है? अगर अन्ना और अन्ना का आंदोलन लोकतंत्र के लिए खतरा है तो उससे पहले लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा खतरा महात्मा गांधी हैं। लेकिन जहां तक मैं जानता और समझता हूं भारत में धरना-प्रदर्शन और अनशन को लोकप्रिय बनाने का काम महात्मा गांधी का ही था।
भारत के इतिहास में सत्याग्रह के अंतर्गत धरना-प्रदर्शन और अनशन का जिक्र सन् 1812 से ही है। इतिहासकार धर्मपाल जी ने इसका उल्लेख अपने पुस्तकों में किया है।
घबराइए मत, मैं यहां आपके सामने अपना इतिहास ज्ञान नहीं बघारना नहीं चाहता। और ना ही मैं विषय से विषयांतर होना नहीं चाहता। मैं यहां प्रधानमंत्री को दो-चार बातें बताना चाहता हूं।
प्रधानमंत्री जी, अगर अन्ना का रास्ता सही नहीं है तो कहीं न कहीं आप महात्मा गांधी के रास्तों को भी गलत बता रहे हैं। कहने का अर्थ यह है कि डॉ. मनमोहन सिंह महात्मा गांधी की आत्मा पर भी प्रश्न चिन्ह लगा रहे हैं! आज अगर हम आजाद हैं तो उसमें गांधी जी के सत्याग्रह का बहुत बड़ा योगदान है। हमने यदि अंग्रेजों के खिलाफ आजादी की जंग जीती है उसमें गांधी के धरना-प्रदर्शन और अनशन का बहुत अहम रोल है। इससे कोई इनकार नहीं कर सकता। लेकिन हमारे प्रधानमंत्री को यह तरीका लोकतंत्र के खिलाफ लगता है। और हमारे प्रधानमंत्री नागरिकों को संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकार छीनकर अपने को लोकतंत्र
धरना-प्रदर्शन और अनशन जैसे हथियार गांधी के सत्याग्रह के लिए साधन था, वैसे ही अन्ना के लिए भी यह साधन है। गांधी जी साध्य के लिए साधन की पवित्रता पर बल देते थे। अन्ना भी साधन की पवित्रता पर बल देते हैं। यही वजह है कि वे हमेशा शांतिपूर्वक धरना-प्रदर्शन और अनशन की वकालत करते हैं। अन्ना हजारे के आह्वान पर अबतक हुए धरने-प्रदर्शन में कहीं भी किसी तरह की हिंसा नहीं हुई है। यह इस बात का प्रमाण है कि वे साध्य की पूर्ति के लिए साधन में हिंसा का प्रयोग ठीक नहीं समझते।
दूसरी तरफ हमारे ईमानदार प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह लाल किले के प्राचीर से कहते हैं कि अनशन से भ्रष्टाचार नहीं मिटेगा।
आखिर हमारे बेबस प्रधानमंत्री कर भी क्या सकते हैं? अब तक के अपने कार्यकाल में वे भ्रष्ट मंत्रियों के ‘सरदार’ ही साबित हुए हैं। उनके मंत्रिमंडल के अधिकतर मंत्री भ्रष्टाचार के दलदल में धंसे हुए हैं। ऐसा नहीं है कि उन्हें इस बात (भ्रष्टाचार) की खबर नहीं। उन्हें खबर है लेकिन वे इसे जानबूझकर अनदेखा कर रहे हैं। सीएजी और पीएसी की रिपोर्ट भी इस बात की तस्दीक करती है कि इसके बारे में प्रधानमंत्री को पता था। लेकिन वे इसे राजनीति की मजबूरी बता रहे हैं। सबसे बड़ी विडंबना यह है कि इतने पर भी भ्रष्ट मंत्रियों के ईमानदार प्रधानमंत्री अपने पद पर बने हुए हैं। यह भ्रष्टाचार उन्हें लोकतंत्र के लिए खतरा नहीं दिखता लेकिन यदि कोई (अन्ना हजारे) भ्रष्टाचार के खात्मे के लिए बनने वाले कानून (जनलोकपाल) के लिए शांतिपूर्वक अनशन करना चाहता है तो उन्हें इससे लोकतंत्र पर खतरा दिखता है।
प्रधानमंत्री कहते हैं कि अन्ना हजारे ने जो रास्ता अपनाया है उससे संसदीय लोकतंत्र को गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं। लेकिन मैं प्रधानमंत्री को यह कहना चाहता हूं कि हमारा संसदीय लोकतंत्र दुनिया का सबसे शक्तिशाली लोकतंत्र है। इस तंत्र की जड़ें लोक में काफी गहरी हैं। धरना-प्रदर्शन और अनशन से लोकतंत्र को शक्ति मिलती है। भारत जैसे देश में शांतिपूर्वक धरने-प्रदर्शन और अनशन से लोकतंत्र को नई मजबूती मिलती है। अगर धरना-प्रदर्शन पुलिस के बताए नियम-कायदे से होगा तब वह लोकतंत्र नहीं तानाशाही होगी।
संजीव कुमार