दिसंबर में हुई कांग्रेस की सालाना बैठक में जब से तय हुआ कि आरएसएस के उस रूप को उजागर किया जाए जिसमें वह आतंकवादी गतिविधियों के प्रायोजक के रूप में पहचाना जाता है, तब से ही आरएसएस के अधीन काम करने वाले संगठनों और नेताओं में परेशानी का आलम है. जब से आरएसएस के ऊपर आतंकवादी जमातों के शुभचिंतक होने का ठप्पा लगा है वहां अजीबोगरीब हलचल है. आरएसएस ने अपने लोगों को दो भाग में बाँट दिया है. एक वर्ग तो इस बात में जुट गया है कि वह संघ को बहुत पाक साफ़ संगठन के रूप में प्रस्तुत करे जबकि दूसरे वर्ग को यह ड्यूटी दी गयी है कि वह आरएसएस को सभी हिन्दुओं का संगठन बनाने की कोशिश करे.
आरएसएस के पे रोल पर कुछ ऐसे लोग हैं जो पत्रकार के रूप में अभिनय करते हैं. ऐसे लोगों की ड्यूटी लगा दी गयी है कि वे हर उस व्यक्ति को हिन्दू विरोधी साबित करने में जुट जाएँ जो आरएसएस या उस से जुड़े किसी व्यक्ति या संगठन को आतंकवादी कहता हो.
दिग्विजय सिंह ने भी पूरी शिद्दत से काम को अंजाम देना शुरू कर दिया है. देश के सबसे बड़े अखबार में उन्होंने एक इंटरव्यू देकर साफ़ किया कि वे हिन्दू आतंकवाद की बात नहीं कर रहे हैं, वे तो संघी आतंकवाद का विरोध कर रहे हैं. यह अलग बात है कि आरएसएस वाले उनका विरोध यह कह कर करते पाए जा रहे हैं कि दिग्विजय सिंह हिन्दुओं के खिलाफ हैं. लेकिन इस मुहिम में आरएसएस को कोई सफलता नहीं मिल रही है.
ज़्यादातर अखबारों में छपा है कि दिग्विजय सिंह ने इस बात का खंडन किया है कि वे हिन्दू धर्म के खिलाफ हैं. देश के सबसे प्रतिष्ठित अखबार, द हिन्दू में पी टी आई के हवाले से जो बयान छपा है वह आरएसएस के खेल में बहुत बड़ा रोड़ा साबित होने की क्षमता रखता है.
दिग्विजय सिंह ने कहा है कि उन्होंने कभी भी आतंकवाद को किसी धर्म से नहीं जोड़ा. उनका दावा है कि आतंकवाद बहुत गलत चीज़ है. वह चाहे जिस धर्म के लोगों की तरफ से किया जाए.
उन्होंने कहा कि हर हिन्दू आतंकवादी नहीं होता लेकिन पिछले दिनों जो भी हिन्दू आतंकवादी घटनाओं में शामिल पाए गए हैं, वे सभी आरएसएस या उस से संबद्ध संगठनों के सदस्य हैं.
यानी दिग्विजय सिंह इस बात पर जोर दे रहे हैं कि हिन्दू नहीं आरएसएस वाला आदमी आतंकवादी होता है. उन्होंने बीजेपी और आरएसएस से अपील भी की है कि वे आत्मनिरीक्षण करें और इस बात का पता लगाएं कि हर आदमी जो भी आतंकवादी घटनाओं में पकड़ा जा रहा है, उसका सम्बन्ध आरएसएस से ही क्यों होता है.
उन्होंने कहा कि वे हिन्दू धर्म का विरोध कभी नहीं करेगें क्योंकि वे खुद हिन्दू धर्म का बहुत सम्मान करते हैं. उनके माता पिता हिन्दू हैं और उनके सभी बच्चे हिन्दू हैं. लेकिन वे सभी आरएसएस के घोर विरोधी हैं.
ज़ाहिर है दिग्विजय सिंह एक ऐसे अभियान पर काम कर रहे हैं जिसमें यह सिद्ध कर दिया जाएगा कि आरएसएस एक राजनीतिक जमात है और उसका विराट हिन्दू समाज से कुछ लेना देना नहीं है. इसका मतलब यह हुआ कि हिन्दुओं का ठेकेदार बनने की आरएसएस और उसके मातहत संगठनों की कोशिश को गंभीर चुनौती मिल रही है. भगवान राम के नाम पर राजनीति खेल कर सत्ता तक पंहुचने वाली बीजेपी के लिए और कोई तरकीब तलाशनी पड़ सकती है क्योंकि कांग्रेस की नयी लीडरशिप हिन्दू धर्म के प्रतीकों पर बीजेपी के एकाधिकार को मंज़ूर करने को तैयार नहीं है. कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह ने साफ़ कहा है कि हिन्दू धर्म पर किसी राजनीतिक पार्टी के एकाधिकार के सिद्धांत को वे बिलकुल नहीं स्वीकार करते. लेकिन आरएसएस को भगवा या हिंदू धर्म का पर्याय वाची भी नहीं बनने दिया जाएगा.
दिग्विजय सिंह ने सार्वजनिक रूप से भी कहा है कि भगवा रंग बहुत ही पवित्र रंग है और उसे किसी के पार्टी की संपत्ति मानने की बात का मैं विरोध करता हूँ. उन्होंने कहा कि धार्मिक आस्था के बल पर मैं राजनीतिक फसल काटने के पक्ष में नहीं हूँ और न ही किसी पार्टी को यह अवसर देना चाहता हूँ.
उन्होंने कहा कि हिन्दू धर्म पर हर हिन्दू का बराबर का अधिकार है और उसके नाम पर आरएसएस और बीजेपी वालों को राजनीति नहीं करने दी जायेगी. और अगर कांग्रेस अपनी इस योजना में सफल हो गयी तो और बीजेपी की उस कोशिश को जिसके तहत वह हिन्दू धर्म के प्रतिनिधि के रूप में अपने को स्लाट कर रही थी, नाकाम कर दिया तो इस देश की राजनीति का बहुत भला होगा.
शेष नारायण सिंह