बात सिंधिया की ही नहीं है ! कांग्रेस की गलती भी समझिये। कांग्रेस ने गांधी नेहरू के नेतृत्व में भारत के स्वतंत्रता आंदोलन को बहुआयामी बना दिया था। वह सिर्फ विदेशी दासता से मुक्ति का उद्योग नहीं रह गया था, बल्कि वह भारत की लोकतांत्रिक क्रांति भी था जिसके चलते स्वतंत्रता के साथ ही राजतंत्र की बिदाई हो गयी थी।
उसने रियासतें खत्म कीं, जमींदारी का उन्मूलन किया और बाद में प्रिवीपर्स भी समाप्त किये लेकिन राजशाही ठसक, राजतंत्रीय विरुदों का प्रयोग वर्जित नहीं किया, खुदकाश्त और महाल के नाम से चुरा कर बचा ली गईं संपत्तियां जब्त नहीं कीं और राजे, नबाब, जमींदारों को आम आदमी की हैसियत में लाने का काम नहीं किया। बल्कि इसके उलट कांग्रेस ने राजाओं कुमरों को संगठन और सत्ता में जगह दी।
संसदीय राजनीति में धनबल और सामाजिक दबदबे की भूमिका के सहारे ये तत्व अहम होते गए, पूंजीपतियों की लॉबीइंग के लिए इस्तेमाल होने के साथ-साथ ये लोग उनके व्यापारों में साझी होने लगे, बड़े ठेकों में इनका हिस्सा होने लगा। ये दोहरे लाभ में थे, व्यापारी और ठेकेदारों के यहां पूंजी लगाकर अलग कमा रहे थे तो अपनी राजकीय ठसक तथा दबदबे से राजनीति के आसान रास्ते पा रहे थे। खुद ज्योतिरादित्य को राजनीति में
कुछ दिन पहले संजय सिंह (राजा या कुंअर) ने जब कहा कि कांग्रेस कभी कैडर बेस पार्टी नहीं रही, वह मास बेस पार्टी रही है, तो मैं चकित था। यह उन अनगिनत कांग्रेसियों की बेइज्जती थी जो ग्राउंड पर कांग्रेस का काम करते थे।
ज्योतिरादित्य ने धारा 370 हटाने पर जिस गर्मजोशी से मोदी सरकार की तारीफ की थी, मैं तभी समझ गया था कि ये शख्स कांग्रेस के लिए ज्यादा वक्त का नहीं है। इसलिए कांग्रेस को भारत के साधारण लोगों के बीच अपनी भूमिका तलाशनी है। देशी विदेशी पूंजी के लिए वह जो कर सकती थी कर चुकी, यहां तक कि उसने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान के संकल्प भुला दिए। अब पूंजी के पिरामिड के शीर्ष पर काबिज लोगों के लिए इतनी मुफीद नहीं रही है जितना संघ परिवार। यही कारण है कि उसको मिला चंदा बीजेपी को मिले चंदे से बहुत कम है।
कांग्रेस गलती सुधारे, साम्प्रदायिकता के प्रश्न पर नेहरू सी साफ दृष्टि रखे और कॉरपोरेट को स्पेशल डिस्काउंट रिबेट्स राइट-ऑफ कन्सेसन्स के जरिये, निजीकरण के जरिये अर्थव्यवस्था को गति देने के विचार से बाहर आकर लोकलक्षी वैकल्पिक नीतियां रखे। सामंती अवशेषों पर प्रहार के लिए सामाजिक न्याय की शक्तियों के साथ आये।
मधुवन दत्त चतुर्वेदी
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