Hastakshep.com-देश-Baba Saheb-baba-saheb-Dr. Babasaheb Ambedkar-dr-babasaheb-ambedkar-Kashmir issue-kashmir-issue-removal of Article 370-removal-of-article-370-Sardar Patel-sardar-patel-views on Kashmir issue-views-on-kashmir-issue-अनुच्छेद 370-anucched-370-कश्मीर मुद्दे पर विचार-kshmiir-mudde-pr-vicaar-डॉ. अंबेडकर-ddon-anbeddkr-डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर-ddon-baabaasaaheb-aanbeddkr-सरदार पटेल-srdaar-pttel

नई दिल्ली, 08 अगस्त 2019। जम्मू कश्मीर में संविधान के अनुच्छेद 370 के कुछ प्रावधानों को हटाने पर केंद्र सरकार अपने ही तर्कों के जाल में फंस रही है। अभी तक सरकार समर्थकों की तरफ से कहा जा रहा था कि डॉ. अंबेडकर ने 370 का विरोध किया था, लेकिन जो तथ्य सामने आ हैं वो बताते हैं कि न सिर्फ डॉ. अंबेडकर बल्कि सरदार पटेल का भी अनुच्छेद 370 को पूर्ण समर्थन था।

कश्मीरनामा पुस्तक के लेखक अशोक कुमार पाण्डेय ने अपनी एफबी टाइमलाइन पर लिखा -

“बाबा साहब का संविधान कश्मीर में लागू हो गया। बधाई सबको

लेकिन डॉ अम्बेडकर की बात मानिए तो पूरी मानिए, आधी अधूरी से कैसे चलेगा!

तो भाइयों बहनों, 12 अक्टूबर 1951 में हिंदुस्तान टाइम्स में छपे बयान में बाबा साहब कह रहे हैं कि कश्मीर घाटी मुसलमानों और पाकिस्तान के बीच का मामला है। भारत में केवल जम्मू और लद्दाख को शामिल करना चाहिए था। इस सपने को भी पूरा करेंगे क्या!

बाबा साहब ने 370 ड्राफ्ट नहीं किया था। ड्राफ्टिंग गोपाल कृष्ण अयंगर और पटेल ने की थी। अयंगर को कश्मीर का प्राइम मिनिस्टर पटेल की पहल पर बनाया गया और जब ड्राफ्टिंग हो रही थी, लगभग पूरे समय नेहरू इंग्लैंड में थे। जब पास हुआ सदन में अयंगर भी थे, पटेल भी, अम्बेडकर भी। सबने समर्थन किया। तो शामिल तो उसी संविधान में हुआ था, बाक़ी जो है सो है।“

डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के कश्मीर मुद्दे पर विचार - Dr. Babasaheb Ambedkar's views on Kashmir issue

उधर शून्यकाल के संपादक और प्रखर अंबेडकरवादी चिंतक भंलर मेघवंशी ने डॉ. अंबेडकर के भाषण व लेखों के संग्रह से धारा 370 पर डॉ. अंबेडकर क विचार का स्क्रीनशॉट करते

हुए सरकार समर्थकों के दुष्प्रचार का जवाब दे दिया।

भंवर मेघवंशी ने लिखा -

“डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने 10 अक्टूबर 1951 में संसद में दिये अपने भाषण में कश्मीर मुद्दे पर अपने विचार रखे थे जो इस प्रकार थे -

"पाकिस्तान के साथ हमारा झगड़ा हमारी विदेश नीति का हिस्सा है ,जिसको लेकर मैं गहरा असंतोष महसूस करता हूं। पाकिस्तान के साथ हमारे रिश्तों में खटास दो कारणों से है — एक है -कश्मीर और दूसरा है- पूर्वी बंगाल में हमारे लोगों के हालात।

मुझे लगता है कि हमें कश्मीर के बजाय पूर्वी बंगाल पर ज़्यादा ध्यान देना चाहिए ,जहां जैसा कि हमें अखबारों से पता चल रहा है, हमारे लोग असहनीय स्थिति में जी रहे हैं। उस पर ध्यान देने के बजाय हम अपना पूरा ज़ोर कश्मीर मुद्दे पर लगा रहे हैं।

उसमें भी मुझे लगता है कि हम एक अवास्तविक पहलू पर लड़ रहे हैं। हम अपना अधिकतम समय इस बात की चर्चा पर लगा रहे हैं कि कौन सही है और कौन ग़लत? मेरे विचार से असली मुद्दा यह नहीं है कि सही कौन है बल्कि यह कि सही क्या है?

और इसे यदि मूल सवाल के तौर पर लें तो मेरा विचार हमेशा से यही रहा है कि कश्मीर का विभाजन ही सही समाधान है। हिंदू और बौद्ध हिस्से भारत को दे दिए जाएं और मुस्लिम हिस्सा पाकिस्तान को ,जैसा कि हमने भारत के मामले में किया।

कश्मीर के मुस्लिम भाग से हमारा कोई लेनादेना नहीं है। यह कश्मीर के मुसलमानों और पाकिस्तान का मामला है। वे जैसा चाहें, वैसा तय करें। या यदि आप चाहें तो इसे तीन भागों में बांट दें; युद्धविराम क्षेत्र, घाटी और जम्मू-लद्दाख का इलाका और जनमतसंग्रह केवल घाटी में कराएं।

अभी जिस जनमत संग्रह का प्रस्ताव है, उसको लेकर मेरी यही आशंका है कि यह चूंकि पूरे इलाके में होने की बात है, तो इससे कश्मीर के हिंदू और बौद्ध अपनी इच्छा के विरुद्ध पाकिस्तान में रहने को बाध्य हो जाएंगे और हमें वैसी ही समस्याओं का सामना करना पड़ेगा ,जैसा कि हम आज पूर्वी बंगाल में देख पा रहे हैं।’

( डॉ आंबेडकर : राइटिंग्स एंड स्पीचेज , खंड- 14 ,भाग -2 पेज- 1322)

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