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Jamun disappointed diabetics this time

नयी दिल्ली, 07 जुलाई। औषधीय गुणों के कारण जामुन की बढ़ती लोकप्रियता से बाजार में इसके फलों की मांग बढ़ती जा रही है और अधिक लाभ के कारण किसान जामुन के नए बाग (New berries orchards) लगा रहे हैं। चार दशक पहले किसी ने सोचा भी नहीं था कि जामुन की व्यावसायिक खेती (commercial cultivation of Jamun in india) होने लगेगी और बाग कलमी पौधों (hybrid jamun) के होंगे।

जामुन को भारत की स्वदेशी फसल के रूप में जाना जाता है (Jamun is known as the indigenous crop of India)। इसके फलों का उपयोग खाने के लिए किया जाता है और बीजों का उपयोग विभिन्न दवाओं को तैयार करने के लिए किया जाता है। जामुन के पौधे से तैयार दवाओं का उपयोग (Use of medicines prepared from the Jamun plant) मधुमेह और रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित के लिए किया जाता है। यह एक सदाबहार पेड़ है जिसकी औसत ऊँचाई 30 मीटर है जिसमें भूरे या भूरे रंग की छाल होती है।

आमतौर पर जामुन के बाग बीजू पौधों से लगाए जाते हैं लेकिन किसानों की गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान (Central Institute for Subtropical Horticulture) ने जामुन की कलम बनाने का तरीका निकाला और वर्तमान में कलमी (ग्राफ्टेड) पौधों की मांग निरंतर बढ़ती जा रही है।

परन्तु मधुमेह के उपचार के लिए रामबाण माने जाने वाले जामुन पर इस साल जलवायु परिवर्तन का प्रकोप हुआ है। इस बार जामुन की फसल बहुत से स्थानों पर अच्छी नहीं हुई, कहीं-कहीं पर तो एक भी फल नहीं आया। वैसे भी जामुन सभी जलवायु में समान रूप से नहीं फलते। कहीं फसल अच्छी होती है और कहीं बिल्कुल भी फल नहीं आते हैं।

एक रिपोर्ट में केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के हवाले से बताया गया है

कि इस बार जलवायु परिवर्तन का असर जामुन की फसल पर पड़ा है। जनवरी से लगातार हो रही बारिश ने अधिकतर पेड़ों में फूल की जगह पत्तियों वाली टहनियों को प्रेरित किया। आमतौर पर जाड़े का मौसम कुछ ही दिन में खत्म हो जाता है। मौसम के आंकड़ों के आधार पर कहा जा सकता है कि जाड़े की ऋतु के बाद तुरंत तापमान के बढ़ जाने से जामुन में बहुत से स्थान पर फूल नहीं आए।

कोंकण क्षेत्र में स्थित सावंतवाड़ी जामुन (konkan bahadoli jamun) के लिए मशहूर है परंतु इस वर्ष किसानों को फल ना लगने से परेशानी का सामना करना पड़ा। बहुत से नए उद्यमी जिन्होंने जामुन के संबंधित पदार्थ बनाने में प्रवीणता हासिल की है, फल उपलब्ध न होने के कारण काफी हताश हुए। जलवायु परिवर्तन का जामुन के उत्पादन पर एक विशेष प्रभाव देखा गया। जब पेड़ों पर फूल आते हैं, उस समय पत्तियां निकली परिणामस्वरूप उपज बहुत कम हो गई।

सीआईएसएच द्वारा विकसित की गई जामुन की किस्में सीआईएसएच-जामवंत और सीआईएसएच जामुन-42 दोनों ही किसानों में लोकप्रिय होते जा रहे हैं।

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद से सम्बद्ध केन्द्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान, लखनऊ (Central Institute for Subtropical Horticulture) के वैज्ञानिकों ने करीब दो दशक के अनुसंधान के बाद 'जामवंत' को तैयार किया है। जामुन की 'जामवंत' वैरायटी में कसैलापन नहीं होता है और 90 से 92 प्रतिशत तक गूदा होता है। इसकी गुठली बहुत छोटी है। जामुन के विशाल पेड़ की जगह इसके पेड़ को बौना और सघन शाखाओं वाला बनाया गया है।

क्यों बढ़ रहा है जामुन का दाम ? | Why is the price of JAMUN increasing?

मधुमेह से पीड़ित लोग इसके गूदे का सेवन करने के बाद गुठलियों को भी सुखाकर पीसकर चूर्ण बनाकर नियमित रूप से प्रयोग में ला रहे हैं। स्वास्थ्य के प्रति बढ़ती सजगता (Increased health awareness,) ने जामुन के मौसम में जामुन को और अधिक महँगा कर दिया है, इसका मुख्य कारण है कि यह मौसमी फल बाजार में कुछ ही दिनों का मेहमान होता है|

Jamuns are very difficult to trade

आम से कई गुना अधिक दाम में बिकने के बाद भी जामुन का व्यापार बहुत आसान नहीं है। यह पकने के बाद ही तुरंत खराब होने लगता है और जरा सी असावधानी से सारे फल फंफूद से ग्रस्त हो जाते हैं। बरसात में इस फंफूद को रोकना और कठिन हो जाता है। ऐसी स्थिति में जामुन के उत्पाद बनाने के लिए भी लोग आकर्षित हुए हैं। कई उद्यमी इस दिशा में अग्रसर है क्योंकि जामुन के बहुत से उत्तम कोटि के संवर्धित पदार्थ बनाने में सफलता मिल चुकी है। केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान ने भी कई उत्पाद बनाकर उनकी लोकप्रियता बढ़ाई है।

ताजे जामुन का व्यापार थोड़ा कठिन एवं जोखिम से भरा हो सकता है। मूल्य संवर्धित पदार्थों को बनाकर साल भर संरक्षित रखा जा सकता है। इन पदार्थों की तरफ भी लोगों की रुचि बढ़ रही है और भविष्य में बिना रसायनों के प्रयोग से संरक्षित बहुत से उत्पाद बाजार में आ सकते हैं जिन्हें अच्छा बाजार मूल्य मिलने की पूर्ण संभावनाएं हैं।

अभी जामुन का परिरक्षण (Preservation of Jamun) आमतौर पर सिरके (jamun vinegar sirka) के रूप में ही होता रहा है परंतु जैसे-जैसे नए उत्पाद बाजार में आएंगे, कच्चे माल की कमी के कारण ताजे जामुन का और दाम बढ़ सकते हैं।

जामुन पर कोरोना की मार | Corona hit on jamun

कोरोना की मार जामुन पर भी पड़ी है। बाजार में बढ़ती लोकप्रियता के बाद भी इसकी ज्यादा उपस्थिति दर्ज ना हो पाई। खरीदारों की कमी और माल का ना आना किसानों और व्यापारियों के लिए अच्छा नहीं रहा। बहुत से जामुन प्रेमियों को इस साल इसकी कमी खली लेकिन लॉकडाउन के चलते सब मजबूर हैं।

 

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