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June issue of Samayantar and article by Pankaj Bisht

साहित्य और पत्रकारिता की क्या भूमिका होनी चाहिये (What should be the role of literature and journalism), इसे समझने के लिए युवाजनों को यह अंक जरूर पढ़ना चाहिए।

2000 से मैं लगातार लिखता रहा हूँ समयांतर में। माननीय प्रभाष जोशी और ओम थानवी की परवाह न करते हुए जनसत्ता की नौकरी करते हुए हमने अनेक लेख उनकी नापसंदगी के भी लिखे हैं।

पहली बार सम्पादकीय में प्रूफ की इतनी गलतियां देख रहा हूँ। ऐसा कभी नहीं हुआ। लॉक डाउन की वजह से गैर व्यावसायिक जनपक्षधर प्रकाशन कितना मुश्किल होता है, हम भुक्तभोगी हैं। लेकिन समयांतर जैसी पत्रिका निकालना कितना कठिन है, इन गलतियों की पृष्ठभूमि समझते हुए महसूस कर रहा हूँ।

पंकज बिष्ट कभी विशुद्ध साहित्यकार नहीं रहे।

वे काफी हद तक महाश्वेता देवी की तरह हैं। संजोग से दोनों मेरे वजूद के हिस्से हैं।

समयांतर में उनका सम्पादकीय हमेशा की तरह दृष्टि समृद्ध सामाजिक यथार्थ का दर्पण है।

लेकिन उनका यह लेख मुझे बंगाल के अकाल के दौरान चित्तप्रसाद और सोमनाथ होड़ के चित्रों की तरह जिंदा लग रहा है, जिसकी दृष्टि और संवेदना हमारे मर्म को भेद रही है।

यह विशुद्ध साहित्य नहीं है।

June issue of Samayantar and article by Pankaj Bisht

जैसे चित्त प्रसाद और सोमनाथ होड़ के चित्र विशुद्ध कला नहीं है। हम प्रेरणा अंशु के जुलाई अंक में भूख की चित्रकला पर अशोक भौमिक का लेख छाप रहे हैं।

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साहित्य और कला आम जनता की सम्पत्ति है और इसे नकार कर, इसमें उसकी भागेदारी को खारिज करके विशुद्धता की बात करने वाले भी बौद्धिक फासिस्ट होते हैं।

पलाश विश्वास जन्म 18 मई 1958 एम ए अंग्रेजी साहित्य, डीएसबी कालेज नैनीताल, कुमाऊं विश्वविद्यालय दैनिक आवाज, प्रभात खबर, अमर उजाला, जागरण के बाद जनसत्ता में 1991 से 2016 तक सम्पादकीय में सेवारत रहने के उपरांत रिटायर होकर उत्तराखण्ड के उधमसिंह नगर में अपने गांव में बस गए और फिलहाल मासिक साहित्यिक पत्रिका प्रेरणा अंशु के कार्यकारी संपादक। उपन्यास अमेरिका से सावधान कहानी संग्रह- अंडे सेंते लोग, ईश्वर की गलती। सम्पादन- अनसुनी आवाज - मास्टर प्रताप सिंह चाहे तो परिचय में यह भी जोड़ सकते हैं- फीचर फिल्मों वसीयत और इमेजिनरी लाइन के लिए संवाद लेखन मणिपुर डायरी और लालगढ़ डायरी हिन्दी के अलावा अंग्रेजी औऱ बंगला में भी नियमित लेखन अंग्रेजी में विश्वभर के अखबारों में लेख प्रकाशित। 2003 से तीनों भाषाओं में ब्लॉग
पलाश विश्वास

पंकज दा हिंदी के बड़े कथाकार हैं और इसीलिए इस समय को उन्होंने इतने जीवंत तरीक़े से चित्रित कर सके हैं और साथ ही जरूरी सवालों को उठाते हुए मानवीय संवेदना को झकझोर सके हैं।

सम्पादकीय हमारे सम्पादक वीरेश कुमार सिंह भी बढ़िया लिख रहे हैं और हर अंक के साथ निखर रहे हैं। लेकिन ऐसी अलौकिक लौकिक सामाजिक यथार्थ का चित्रण शायद अकेले पंकज बिष्ट जैसे लोग ही कर सकते हैं। पंकजदा के लिए बहुत अच्छा महसूस कर रहा हूँ।

साहित्य और पत्रकारिता को जनता के पक्ष में खड़ा देखना चाहते हैं, उन्हें समयांतर का यह अंक जरूर पढ़ना चाहिए।

पलाश विश्वास

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