आज भारत एक पिछड़ा ग़रीब देश है, जिसमें व्यापक ग़ुरबत, बेरोज़गारी, महंगाई, कुपोषण, स्वास्थ लाभ और अच्छी शिक्षा का अभाव आदि है।
इस देश को कैसे एक शक्तिशाली विकसित देश में परिवर्तित करें, ताकि यहां के लोग खुशहाल हों और अच्छा जीवन व्यतीत कर सकें ? यही सभी देशभक्त लोगों का उद्देश्य होना चाहिए। इस विषय पर गहरी चिंतन की आवश्यकता है।
औद्योगिक क्रांति, जो इंग्लैंड में १८वीं सदी में शुरू हुई, और उसके बाद सारी दुनिया में फैल गयी, से पहले हर देश में सामंती समाज होते थेI सामंती अर्थ व्यवस्था में पैदावार के साधन इतने पिछड़े थे कि उनके द्वारा बहुत कम पैदावार हो सकती थीI भारत में हल से, यूरोप में घोड़ों से, और वियतनाम में भैंसे से ज़मीन जोती जाती थीI इसलिए सामंती समाज में केवल कुछ ही लोग ( राजा, जमींदार आदि ) सम्पन्न हो सकते थे और बाक़ी को ग़रीब रहना होता थाI
यह परिस्थिति औद्योगिक क्रांति के बाद बिलकुल बदल गयी। अब आधुनिक उद्योग इतने बड़े और शक्तिशाली होते हैं कि उनसे इतना पैदावार हो सकता है कि अब किसी को ग़रीब रहने की आवश्यकता नहीं है। दुनिया के सभी लोग खुशहाल ज़िन्दगी पा सकते हैं। इस परिस्थिति के बावजूद दुनिया के ७०-७५% लोग ग़रीब हैं और बेरोज़गारी, कुपोषण, स्वास्थ लाभ और अच्छी शिक्षा का अभाव, आदि का शिकार हैं।
वास्तव में इस दुनिया में दो दुनिया हैं, विकसित देशों की दुनिया ( उत्तर अमरीका, यूरोप, जापान, ऑस्ट्रेलिया, और चीन आदि ), और अविकसित देशों की दुनिया, जिसमे भारत भी आता है।
यह कैसे किया जाय यही मुख्य समस्या है। आज भारत के पास वह सब है जिससे हम इस महान ऐतिहासिक परिवर्तन कर सकें--वैज्ञानिकों और अभियंताओं का एक विशाल समूह और अपार प्राकृतिक सम्पदा।
इसे समझने के लिए हमें कुछ गहराई में जाना होगा और अर्थशास्त्र समझना होगा, क्योंकि जैसा महान रुसी नेता लेनिन ने कहा था 'राजनीति संकेंद्रित अर्थशास्त्र होती है' ( Politics is concentrated economics )।
श्रम का दाम ( cost of labour ) पूरे पैदावार के दाम ( cost of production ) का बड़ा अंश होता है। इसलिए जिस उद्योगपति या व्यापारी के पास सस्ता श्रम है वह अपने उस प्रतिद्वंदी से सस्ता माल बेच सकता है, जिसके पास महंगा श्रम है और प्रतिस्पर्धा ( competition ) में उसे हरा सकता है।
उदाहरणस्वरूप, चीन में १९४९ में क्रांति हुई। १९४९ के पहले चीन एक पिछड़ा ग़रीब सामंती देश था, परन्तु १९४९ के बाद चीन के नेताओं ने एक विशाल आधुनिक औद्योगिक आधार का निर्माण किया। अपने सस्ते श्रम के कारण चीन के विशाल उद्योगों ने दुनिया भर के बाज़ारों पर कब्ज़ा कर लिया है। पश्चिमी देश के उद्योग चीनी उद्योगों से प्रतिस्पर्धा नहीं कर सके क्योंकि पश्चिमी श्रम महंगा है और इसलिए कई पश्चिमी उद्योग बंद हो गए।
इसलिए जिस देश में सस्ता श्रम है वह अगर एक विशाल औद्योगिक आधार बना दे तो वह जिन देशों में महंगा श्रम है उनको प्रतिस्पर्धा में हरा सकता है। भारत के पास तो चीन से भी सस्ता श्रम है। इसलिए अगर भारत एक विशाल औद्योगीकरण कर ले तो विकसित देश का क्या होगा जहां महंगा श्रम है ? उनके अनेक उद्योग बंद हो जाएंगे और लाखों करोड़ों कर्मचारियों को बर्खास्त करना पड़ेगा। क्या ऐसा विकसित देश होने देंगे ? क़तई नहीं।
विकसित देशों में एक गुप्त अलिखित नियम है : भारत को कभी विकसित देश नहीं बनने देना है, अन्यथा अपने सस्ते श्रम के कारण भारतीय उद्योग सस्ता माल बेचेंगे और फलस्वरूप विकसित देश जिनमे महंगा श्रम है प्रतिस्पर्धा का सामना नहीं कर पाएंगे और बंद हो जाएंगे। ऐसी आपदा से वह कैसे बच सकते हैं ? इससे बचने का तरीक़ा है भारतीयों को आपस में धर्म, जाति, भाषा, नस्ल आदि के आधार पर लड़वाना जो बहुत समय से हो रहा है।
हमें इस षड़यंत्र का पर्दाफाश करना है और एक ऐतिहासिक जनसंघर्ष करना है जिसके फ़लस्वरूपम एक ऐसी राजनैतिक व्यवस्था का निर्माण हो सके जिसके अंतर्गत तेज़ी से औद्योगीकरण हो और हम्मारी जनता को खुशहाल ज़िन्दगी मिल सके।
ऐसा ऐतिहासिक जनसंघर्ष आसान नहीं होगा। इसमें बड़ी बाधाएं आएँगी और कई उतार-चढ़ाव तोड़-मरोड़ होंगे। यह लम्बा चलेगा और इसमें बहुत क़ुर्बानियां देनी होंगी। परन्तु और कोई विकल्प नहीं है।
जस्टिस मार्कंडेय काटजू
लेखक प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के पूर्व चेयरमैन और सर्वोच्च न्यायालय के अवकाशप्राप्त न्यायाधीश हैं।
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