उत्तर प्रदेश के हाथरस में वाल्मीकि समाज की लड़की की जिस बेरहमी से बलात्कार के बाद हत्या की गयी है, वह दिल दहला देने वाली है. वैसे यह घटना 14 सितम्बर को घटी और उसके बाद से ही लड़की के परिवार वाले भटक रहे थे कि उसके साथ न्याय हो. पुलिस गुंडों को गिरफ्तार नहीं कर पायी. लड़की को इलाज के लिए अलीगढ़ भेजा गया जहां से उसे एम्स दिल्ली के लिए रेफर कर दिया गया और आज सुबह उसकी मौत हो गयी.
दलितों पर अत्याचार की ये घटना कोई नयी नहीं है लेकिन इसमें कोई शक की बात नहीं कि उत्तर प्रदेश में इस समय सवर्ण जातियों के हौसले बुलंद हैं और घटनाओं को जिस तरह से अंजाम दे रहे हैं, उससे लगता है कि वे सामाजिक वर्चस्व बनाये रखना चाहते हैं, चाहे उसके लिए कानून ही क्यों न तोड़ना पड़े.
जिस गाँव में ये घटना अंजाम हुई वह ठाकुरों और ब्राह्मणों की बहुतायत वाला है और शायद 15-20 परिवार वाल्मीकियों के रहते हैं. लड़की के भाई ने एक चैनल को बताया कि उसके परिवार के साथ पहले भी मुख्य अभियुक्त के परिवार के लोगों ने जातीय व्यवहार किया, जिसके चलते वह चार
गाँव में बात चुपचाप बढ़ती रहती है और जातिवादी लोग दलितों की गतिविधियों को देखते भी रहते हैं. कौन अच्छे से रह रहा है, आगे बढ़ रहा है, बाइक में है या अच्छा मोबाइल खरीद लिया. इन सभी बातों पर चुपचाप नज़र होती है. लड़की अगर पढ़ाई करने जा रही है, तो उस पर नजर रहती है. और ये इसलिए कि गाँव में जातीय दम्भ आज भी बरकरार है और अभी भी गाँवों से जातीय उन्मूलन का कोई आंदोलन न चला और न चलेगा. जब हमारे सारे कार्यक्रम जाति केंद्रित हैं तो उन्मूलन कहां से होंगे.
19 वर्षीय इस लड़की के साथ हुई घटना के बाद जिस तरीके से उसकी जीभ काटी गयी और गर्दन मरोड़ कर तोड़ दी गयी वो दर्शाता है कि उसने बहुत संघर्ष किया अपने को बचाने के लिए और मनुवादियों ने उस पर पूरे बेहयापन और बेशर्मी से हमला किया. सभी लोगों गाँव के ठाकुर है जिनको शर्म आनी चाहिए कि उनके परिवार से ऐसी औलादें पैदा हुई हैं.
उसी समय एक और क्षत्राणी का प्रादुर्भाव हुआ जिनका कंगना रनौत है, जो ताल ठोक-ठोक कर कह रही है कि उनकी रगों में राजपूत खून है. करणी सेना नामक राजपूतों की 'रक्षा' हेतु बना एक संगठन भी अभियान छेड़े हुए है कि बिरादरी का सम्मान बहुत बड़ा है. क्या ये सभी सेनापति एक हैशटैग हाथरस की इस लड़की के लिए चलाएंगे जिसको क्रूरता के साथ मारा गया और सभी आरोपी राजपूत या ठाकुर हैं।
क्या ठाकुरो के नेता या क्रांतिकारी लोग कहेंगे कि ये बिलकुल गलत है. क्या जिस गाँव में ये घटना हुई वहां के सभी जातियों के लोग ये कहने को तैयार है कि ये घटना गलत है, निंदनीय है और इसके लिए कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए.
इस घटना पर मुझे एक बात और याद आती है. यहाँ के सांसद हैं राजवीर सिंह दिलेर (Hathras MP Rajvir Singh Diler), जो खुद बाल्मीकि समाज से आते हैं. उनके पिता भी सांसद थे और वह पहले विधायक थे और फिर सांसद बने. उनके चुनाव अभियान की ख़ास बात ये थी कि वह अपने साथ अपनी चाय पीने का गिलास लेकर चलते थे और गाँव में सवर्णों के घरों में प्रवेश नहीं करते थे और बाहर से ही उनको आशीर्वाद मिल जाता था. गाँव के लोगों के पैर छूते और लोगो से वोट देने की अपील करते।
मुझे नहीं पता राजवीर जी की इस पूरे प्रकरण पर क्या प्रतिक्रिया होगी. क्या आज उन्हें अपने गाँव की परम्पराओं को सवाल नहीं उठाना चाहिए. यही वह परम्परा है जिसने ब्राह्मण, ठाकुर, जाट, गुज्जर और जो भी जातीय आततायी हैं, उन्हें ये छूट दे दी है कि वह दलितों के साथ कुछ भी कर सकते हैं क्योंकि कानून उनका कुछ नहीं बिगाड़ पायेगा. क्या अब ऐसे 'स्वयंसेवकों' के बोलने का समय नहीं है. समुदाय का नाम लेकर अपना विकास करने वालों से सावधान रहिये. सवाल करिये और सबसे खड़े होकर सवाल करने का समय है.
राजवीर जी जैसे बहुत से एकलव्य हैं जो परम्पराओ के लिए 'जान भी दें देंगे' और इसलिए अब जरूरी है वे खड़े हों और बतायें कि समाज के साथ ऐसे अत्याचारों को कब तक देखते रहेंगे.
हाथरस की बेटी के साथ न्याय तभी होगा जब जातीय अहंकार को त्याग कर सवर्ण समाज माफ़ी मांगे और कातिलों को अंतिम सजा दिलवाने में पूरी तरह से वाल्मीकि समाज के साथ खड़ा नज़र आएगा तभी ये महसूस होगा कि हमारे हाथ देश के हर एक नागरिक के साथ खड़े हैं. जातीय हिंसा का खात्मा होना जरूरी है और इसके लिए हम सबको प्रण करना होगा और संवैधानिक मूल्यों पर चलना होगा, वो रास्ता जो बाबा साहेब आंबेडकर ने हमें दिखाया, तभी हम इंसान बनेंगे और इंसानियत को समझेंगे.
विद्या भूषण रावत