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Kadru becomes the Shaheen Bagh of Ranchi

26 जनवरी 2020 को जब हमारा ‘गणतंत्र’ 71 साल का हो रहा था, ठीक उसी दिन लगभग 3:30 बजे शाम में मैं रांची के कडरू के हज हाउस (Haj House of Kadru, Ranchi) के सामने पहुंचा। जहां 20 जनवरी से ही केन्द्र सरकार की जनविरोधी-संविधानविरोधी सीएए (Central government’S anti-people, anti-constitutional CAA), एनआरसी व एनपीआर के विरोध में महिलाएं अनिश्चितकालीन महाधरना पर बैठी हुई हैं।

हज हाउस की बिल्डिंग की सामने की चारदीवारी से लगकर सड़क के किनारे लगभग 200 मीटर लम्बा और 12-15 मीटर चौड़ा टेन्ट लगा हुआ है। टेन्ट के आगे बांस बांध दिया गया है। टेन्ट के अंदर महिलाएं जमीन पर बिछी दरी पर और चादर पर बैठी हुई हैं। टेन्ट के बाहर कुछ कुर्सियां लगी हुई हैं, उस पर भी महिलाएं बैठी हुई हैं। सड़क पर आने-जाने वाले लोग बाहर से ही थोड़ी देर रूककर महाधरना को देख रहे हैं, कुछ लोग मोबाईल में वीडियो बना रहे हैं, तो कुछ लोग तस्वीर ले रहे हैं।

उसी समय माईक से आवाज गूंजती है, सीएए से आजादी, एनआरसी से आजादी, एनपीआर से आजादी’ और फिर सभी महिलाएं और तस्वीर ले रहे व वीडियो बना रहे लोगों के मुंह से भी आजादी-आजादी का नारा निकलने लगता है। क्योंकि सामने की सड़क काफी व्यस्त है, इसलिए लगभग 50 पुरुष वालंटियर ट्रैफिक व्यवस्था को संभालने में लगे हुए हैं, वैसे झारखंड पुलिस के भी 5-6 सिपाही व एक ट्रैफिक सिपाही भी वहां मौजूद है, लेकिन ट्रैफिक की व्यवस्था वालंटियर के हाथ में ही है।

टेन्ट के अंदर एक बड़ा सा बैनर लगा हुआ है, जिसके ऊपर एक किनारे में अंग्रेजी में ‘सेव कान्स्टीच्यूशन’ (Save constitution), तो दूसरे किनारे ‘सेव इंडिया’ लिखा हुआ है, उसके नीचे अंग्रेजी में ‘वी द पीपुल आफ इंडिया’ फिर उर्दू में यही वाक्य और फिर उसके नीचे हिन्दी में ‘हम भारत के

लोग’ लिखा हुआ है, उसके नीचे हिन्दी में ‘अनिश्चितकालीन महाधरना’ और उसके नीचे अंग्रेजी में ‘रिजेक्ट सीएए, एनआरसी, एनपीआर’ लिखा हुआ है।

इसी बैनर पर थोड़ा सा चढ़ाकर ‘बिरसा मुंडा’ की तस्वीर लगी है। इस बैनर के ठीक बगल में काले रंग का एक बैनर लगा हुआ है, जिसमें लिखा हुआ है ‘हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाई, आपस में सब भाई-भाई’ और इस स्लोगन के ऊपर में सभी धर्म का प्रतीक चिन्ह भी है।

इस बैनर के बगल में भारत के संविधान की प्रस्तावना का लिखा एक बैनर टंगा हुआ है, इसके बगल में फिर ‘हम भारत के लोग’ लिखा बड़ा सा बैनर टंगा हुआ है। इसके बगल में पूर्व राष्ट्रपति डा. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम व स्वामी विवेकानंद की तस्वीर के बीच में महात्मा गांधी की मुस्कुराती हुई तस्वीर लगी है।

इसके अलावे और भी कई छोटे-छोटे बैनर और प्ले कार्ड लगे हुए हैं। हां, टेन्ट के ऊपर भी कई बैनर व जयपाल सिंह मुंडा, महात्मा गांधी, मौलाना आजाद, परमवीर अब्दुल हमीद आदि महापुरुषों की तस्वीर लगी हुई है। बगल के एक वृक्ष में कई सारे नारे लिखे प्ले कार्ड टंगे हुए हैं।

टेन्ट के अंदर भी महिलाएं नारे लिखे हुए पोस्टर हाथ में लिए हुए हैं, जिसमें मोदी और अमित शाह पर कई नारे हैं, तो कई नारे सीएए, एनआरसी और एनपीआर को खत्म करने से संबंधित हैं, तो कई नारे तमाम संप्रदाय की एकता की हिमायत करते नजर आते हैं।

26 जनवरी को राष्ट्रीय अवकाश रहने के कारण महाधरना स्थल पर काफी भीड़ थी, टेन्ट के अंदर, बाहर और हज हाउस के कम्पाउंड में, सब मिलाकर लगभग 5 हजार महिलाएं वहां मौजूद थी, जिसमें सभी उम्र की महिलाएं थीं। माईक से लगातार आजादी के नारे, फैज के नज्म, कविताएं और जोशीले भाषण की आवाज आ रही है, लेकिन उस समय सारी आवाजें महिलाओं की ही थी।

ek shaam sanvidhaan ke naam’ against CAA, NRC and NPR in Ranchi

महिलाओं के अनिश्चितकालीन महाधरना स्थल को बाहर से ही कुछ देर देखने के बाद वहां से मात्र 50 मीटर आगे ईदगाह मैदान पहुंचा, वहां उस समय हजारों की संख्या में लोग मौजूद थे।

दरअसल, वहां पर साझा मंच की तरफ से सीएए, एनआरसी व एनपीआर के खिलाफ में ‘एक शाम संविधान के नाम’ कार्यक्रम हो रहा था, जिसके तहत पहले राउंड में बच्चों के द्वारा सीएए, एनआरसी व एनपीआर के खिलाफ में पेंटिंग व स्लोगन लिखने की प्रतियोगिता हो चुकी थी। ईदगाह मैदान में प्रवेश करते ही झारखंड के कई सारे प्रगतिशील बु़द्धिजीवी व वामपंथी-जनवादी व्यक्तियों पर मेरी नजर पड़ी, जिसमें वरिष्ठ पत्रकार फैसल अनुराग, प्रसिद्ध अर्थशास्त्री व एक्टिविस्ट ज्यां द्रेज, सामाजिक कार्यकर्ता बलराम, झारखंड संस्कृति मंच के अनिल अंशुमन आदि शामिल हैं।

‘एक शाम संविधान के नाम’ कार्यक्रम की शुरुआत सामूहिक राष्ट्रगान से हुई, फिर मंच से संविधान की प्रस्तावना का सामूहिक पाठ करवाया गया। इस दोनों अवसर पर मैं भी मंच पर ही मौजूद रहा। उसके बाद झारखंडी परंपरा के अनुसार मांदल व नगाड़े की थाप से सांस्कृतिक कार्यक्रम की शुरुआत हुई।

धीरे-धीरे इस कार्यक्रम में भीड़ बढ़ने लगी और लगभग 5 हजार तक पहुंच गयी। इसी मंच पर पद्म श्री से पुरस्कृत नागपुरी गीत के लेखक और गायक मधु मंसूरी को आयोजकों द्वारा शाल देकर सम्मानित भी किया गया और उसके बाद मधु मंसूरी ने भी अपना संक्षिप्त संबोधन वहां रखा।

शाम गहराती जा रही थी और सांस्कृतिक कार्यक्रम का शुरूर दर्शकों पर छाने लगा था। उसी समय मेरी मुलाकात छात्र संगठन आइसा की नेत्री नौरीन अख्तर और निशा से हुई और उनके साथ मैं फिर महिलाओं के महाधरनास्थल पर वापस आ गया।

महाधरना का संचालन उस समय नुशी बेगम कर रही थी, जब उन्होंने जाना कि मैं मीडिया से हूं और कुछ बात करना चाहता हूं, तो फिर उन्होंने मुझे बताया कि यह महाधरना दिल्ली के शाहीन बाग की महिलाओं के जोश व जज्बे से प्रेरणा पाकर ही शुरू हुआ है और यह महाधरना तब तक जारी रहेगा, जब तक कि संविधानविरोधी व जनविरोधी सीएए, एनआरसी व एनपीआर को सरकार वापस नहीं ले लेती है। महाधरना में सिर्फ मुस्लिम महिलाओं के शामिल रहने के सवाल का तुरंत प्रतिकार करते हुए वहीं पर बैठी बहुजन क्रांति मोर्चा की सावित्री गौतमी व पार्वती को दिखाती हैं, जो कि हिन्दू हैं। सावित्री गौतमी के हाथ में 29 जनवरी के भारत बंद से संबंधित कई पर्चे हैं और वो मुझे बताती हैं कि अब लड़ाई आर-पार की है।

सरकार को झुकना ही होगा।

नुशी बेगम बताती हैं कि लगभग 25 महिलाओं की संचालन कमिटी है, जो कि इस महाधरना का संचालन कर रही हैं। ‘सीएए नागरिकता देने के लिए है, न कि छीनने के लिए’ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा कही गई इस वाक्य को जब मैं महिलाओं को बताता हूं, तो बहुत सारी महिलाएं मोदी पर भड़क उठती हैं।

कई महिलाएं एक स्वर में कहने लगती हैं कि ‘मोदी ने कभी सच बोला है क्या‘ और फिर मोदी द्वारा किये गये नोटबंदी से समय का भाषण मुझे याद दिलवाने लगती हैं।

जाहिदा परवीन कहती हैं कि आप लिखिए कि यहां दुर्गा, काली, पार्वती, लक्ष्मीबाई सभी मौजूद है, अब तो सरकार को पीछे हटना ही होगा।

‘मोदी सरकार द्वारा अपने कार्यकाल में कई सारी जनविरोधी-महिलाविरोधी नीतियां लागू की गई, लेकिन कभी भी आप सड़क पर नहीं उतरे तो आखिर इस बार क्यों उतरना पड़ा’ इस सवाल पर साहित्य से पीएचडी डा. तनवीर बदर कहती हैं कि इस बार बात हमारी नागरिकता पर आ गई है, जब नागरिकता ही नहीं रहेगी, तब तो सारा कुछ खत्म हो जाएगा। ये बताती हैं कि जब से महाधरना शुरु हुआ है, तब से ये प्रतिदिन आती हैं और यहां आकर विरोध की आवाज में सुर से सुर मिलाकर बहुत ही सुकून मिलता है।

रेशमी बताती हैं कि उनके परिवार से सभी लोग यहां आए हुए हैं और उनके घर में उन्हें यहां आने से किसी ने मना तो नहीं ही किया बल्कि प्रोत्साहित ही किया।

लगभग 65 साल की कमर जहान बताती हैं कि उन्हें थायराइड, हाई ब्लडप्रेशर, सुगर व गठिया जैसी बीमारियां हैं, जिसमें ठंड में निकलने को डाक्टर ने मना किया है, लेकिन फिर भी डोरंडा से यहां आई हूं क्योंकि इस बार सवाल अपने अस्तित्व का है।

वहां पर मौजूद ढेर सारी महिलाएं मुझसे बात करना चाहती हैं, लेकिन उसी समय नमाज का वक्त हो जाता है और माईक बंद कर महिलाएं हज हाउस नमाज अदा करने जाने लगती हैं। उसी समय एक महिला आती है और यह कहते हुए अपना मोबाईल नंबर मुझे नोट करवाती हैं कि जिस भी जगह आपका लिखा छपेगा, उसका लिंक मुझे जरूर भेज दीजिएगा।

Kadru becomes the Shaheen Bagh of Ranchi

मैं यह देखकर थोड़ा अचंभित भी होता हूं और खुश भी हो जाता हूं कि किस तरह आज बेधड़क महिलाएं अपना मोबाईल नंबर शेयर कर रही हैं। वो बताती हैं कि उनके अंदर यह हिम्मत आंदोलन के द्वारा ही आई है।

यहां पर सिर्फ कडरू ही नहीं बल्कि रांची के विभिन्न हिस्सों से भी महिलाएं आती हैं। छात्र संगठन आइसा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य नौरीन अख्तर बताती हैं कि 20 जनवरी को जब यह जुटान प्रारंभ हुआ, तो उस दिन मुश्किल से सौ महिलाएं होंगी, लेकिन धीरे-धीरे यह कारवां बढ़ता गया और आज 5 हजार तक पहुंच गया।

नौरीन शुरुआत से महाधरना में शामिल हैं और इन्हें भी वालंटियर बनाया गया है, ये बताती हैं कि यहां पर इंतजामिया कमेटी (जिसमें सिर्फ पुरुष हैं) के जरिए महिलाओं को सुबह में नाश्ता में पूड़ी-सब्जी और दोपहर व रात में चिकन बिरयानी दिया जाता है। बीच-बीच में चाय-बिस्कुट भी मिलते रहता है। चूंकि कमिटी ने तय किया है कि रात में सिर्फ 50-60 महिलाएं ही यहां सोएंगी, तो रात के एक बजे के बाद महिलाएं घर चली जाती हैं, इसलिए सुबह में नाश्ता मात्र 50-60 महिलाएं ही करती हैं, लेकिन दोपहर व रात में इनकी संख्या हजारों में हो जाती हैं। ये बताती हैं कि अब तक पुलिस ने कोई डिस्टर्ब नहीं किया है और स्वराज पार्टी के संयोजक योगेन्द्र यादव समेत रांची के कई वाम-लोकतांत्रिक व्यक्तियों ने महाधरना को संबोधित किया है।

रांची के शाहीनबाग बने कडरू में महिलाओं द्वारा दिये जा रहे अनिश्चितकालीन महाधरना के बारे में वरिष्ठ पत्रकार फैसल अनुराग कहते हैं कि ‘पहली बार रांची में इतनी संख्या में महिलाएं घर से बाहर आंदोलन में निकली है, यह महत्वपूर्ण बात है। यही महलिाएं आगे चलकर पितृसत्ता के खिलाफ भी टकराएंगी व पूंजीवादी शोषण व लूट-खसोट के खिलाफ भी कमर कसकर मैदान में उतरेंगी।’

निष्कर्ष के तौर पर कहा जा सकता है कि आज दिल्ली के शाहीन बाग की महिलाओं से प्रेरणा लेकर रांची की कडरू की महिलाएं भी उसी भावना से ओत-प्रोत हो गई हैं। सरकार एक इंच भी पीछे हटती है कि नहीं, यह तो देखने वाली बात होगी, लेकिन महिलाएं एक इंच भी पीछे हटने के लिए तैयार नहीं हैं।

सीएए, एनआरसी व एनपीआर के खात्मे की लड़ाई अस्तित्व बचाने की लड़ाई की ओर बढ़ रही है। इसपर सरकार जितना भी दमन करेगी, यह आंदोलन अपने लक्ष्य के प्रति और भी मजबूत होकर आगे बढ़ेगी और आने वाले दिनों में और भी सवालों को समेटेगी।

रांची से स्वतंत्र पत्रकार रूपेश कुमार सिंह की रिपोर्ट

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