भोपाल/रायपुर 25 जुलाई 2020. छत्तीसगढ़ की आदिवासी जनता के यातनापूर्ण हालात को निर्भीक स्वर देने के साथ हर मुश्किल में उनके साथ खड़े होने की कीमत खुद दमन-उत्पीड़न सहकर चुकाने वाले जांबाज पत्रकार कमल शुक्ला (Kamal Shukla Journalist) को रायपुर और भोपाल में एक साथ हुए सम्मान समारोह में लोकजतन सम्मान 2020 से अभिनंदित किया गया। दोनों राजधानियों में जारी लॉकडाउन के चलते सम्मान समारोह का आयोजन सोशल मीडिया पर लाइव किया गया, जिसमें करीब 14 हजार दर्शकों ने भागीदारी की। लोकजतन सम्मान लोकजतन के संस्थापक सम्पादक शैलेन्द्र शैली (24 जुलाई 1957 - 07 अगस्त 2001) के जन्म दिन पर दिया जाता है।
इस मौके पर "सच्ची पत्रकारिता के कड़वे अनुभव" विषय पर बोलते हुए सम्मानित पत्रकार कमल शुक्ला ने बस्तर को सच का एक ऐसा दस्तावेज बताया जिसका पूरा सच अभी उजागर किया जाना बाकी है। उन्होंने देश और दुनिया के शोधार्थियों, लेखक, कवि, रचनाकार तथा इतिहासकारों को बस्तर आकर उसे जानने और उसके बारे में दुनिया को बताने का न्यौता दिया। उन्होंने दो पाटों के बीच पिसती बस्तर की आदिवासी आबादी के दर्दों के अनेक पहलू उजागर किये और बताया कि किस तरह एक तरफ सशस्त्र बल और दूसरी तरफ माओवादियों की बंदूकों से घिरे बस्तर के आदिवासी नागरिक अधिकारों और इंसानी जीवन जीने तक के अवसरों से वंचित कर दिए गए हैं।
उन्होंने बताया कि अकेले सलवा जुडुम, जिसे छत्तीसगढ़ की दोनों प्रमुख राजनीतिक पार्टियों भाजपा और कांग्रेस ने मिलकर चलाया था - के समय 700 आदिवासी गाँव जला दिए गए, हजारो परिवारों को अपनी खेती, जमीन, घर और जानवर छोड़कर शरणार्थी बन पड़ोस के प्रदेशों में जाना पड़ा। स्कूल और अस्पताल मिटा दिए गए। बिना किसी अपराध के सिर्फ आदिवासी होने की वजह से
पुलिस और अर्ध सैनिक बलों की निरंकुश निर्ममता (Unbridled ruthlessness of police and paramilitary forces) के अनेक उदाहरण देते हुए कमल शुक्ला ने कहा कि बस्तर में हर रोज संविधान और लोकतंत्र की हत्या (Killing of Constitution and Democracy) हो रही है और जिस तरह सलवा जुडूम में टाटा, एस्सार आदि बहुराष्ट्रीय कंपनियों का पैसा और योजना थी वही आज भी जारी है।
उन्होंने उदाहरण सहित बताया कि अवैधानिक खनन तक की सुरक्षा के लिए सरकारें निजी कंपनियों को अर्ध सैनिक बल उपलब्ध करा रही हैं। उधर भी सिपाही के रूप में गरीब का बेटा मरता है इधर भी आदिवासी के रूप में उसकी ही मौत होती है।
बस्तर की सांस्कृतिक लूट (Cultural plunder of Bastar) को उन्होंने अत्यंत चिंताजनक अत्याचार बताया और कहा कि कारपोरेट उन्हें बेदखल करके मार रहा है तो हिंदुत्ववादी संघ उनसे उनकी पहचान छीन कर उन्हें हिन्दू बनाना चाहता है।
कमल शुक्ला ने कहा कि बस्तर की पहचान माओवाद नहीं है - बस्तर की पहचान हजारों साल पुरानी सभ्यता और विरासत है, जिसे तात्कालिक मुनाफे के लिए बर्बाद करने की साजिशें रची जा रही हैं।
लोकजतन के प्रति आभार व्यक्त करते हुए 32 वर्षों से सक्रिय पत्रकारिता में लगे कमल शुक्ला ने कहा कि वे अकेले नहीं हैं। अनेक पत्रकारों ने बस्तर का सच सामने लाया है और सच के लिए खतरे उठाने ही होते हैं सो उठाये हैं।
सम्मान समारोह की शुरुआत में लोकजतन सम्पादक बादल सरोज ने कमल शुक्ला के योगदान को पत्रकारिता के इतिहास में एक चमकीला पृष्ठ बताते हुए कहा कि पत्रकारिता और मीडिया के पराभव के इस दौर में भी 99 प्रतिशत पत्रकार आज भी ईमानदारी और बहादुरी से डटे हैं। समर्पण और लूट में हिस्सेदारी का काम कारपोरेट द्वारा खरीदे गए मीडिया घरानो ने किया है पत्रकारों ने नहीं।
उन्होंने बताया कि ठीक इसी तरह की पत्रकारिता के लिए लोकजतन प्रतिबद्ध है और लोक के जतन के रूप में बिना किसी कारपोरेट या मठ की मदद के निरंतर प्रकाशन की 21वी वर्ष में पहुँच गया है।
प्रमुख एक्टिविस्ट और गांधीवादी हिमांशु कुमार ने कमल शुक्ला की निडर पत्रकारिता की सराहना करते हुए उन्हें बस्तर और छत्त्तीसगढ़ में मानवाधिकारों तथा न्याय की लड़ाई का योद्धा बताया।
वरिष्ठ पत्रकार राजकुमार सोनी ने कमल शुक्ला के कई संघर्षों के संस्मरण सुनाये और बताया कि किस तरह अन्याय के खिलाफ वे अपनी नौकरी तक दांव पर लगाकर लड़ते रहे हैं।
लोकजतन की ओर से जानकारी दी गयी कि कोरोना संकट के ख़त्म होने के बाद रायपुर में एक भव्य आयोजन भी किया जाएगा।