इंदौर, (मध्य प्रदेश) 8 मई, 2020. 5 मई साम्यवाद के विज्ञान को दुनिया के सामने लाने वाले प्रणेता कार्ल मार्क्स का जन्मदिन है। कार्ल मार्क्स का वर्ष 2020 का यह 202वाँ जन्मदिन था।
आज पूरे भारत या यूँ कहा जाए कि दुनिया के तमाम देशों में जानबूझकर लोगों के सामने साम्यवाद की गलत छवि बनाकर पेश की जा रही है। पूँजीवाद द्वारा आभासी दुनिया के माध्यम से साम्यवाद की गलत छवि लोगों के बीच बनाई जा रही है। जिससे लोग साम्यवाद को समझने की कोशिश से भी दूर रहें। तब इतने नकारात्मक, दुरूह और कठिन समय में मार्क्सवाद को लोगों तक पहुँचाने का काम वो भी जब पूरे देश में लॉकडाउन की स्थिति है उस समय भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) की मध्य प्रदेश इकाई द्वारा फेसबुक लाइव के जरिए 5 मई 2020 को मार्क्स को याद करते हुए पूरे दिन का व्याख्यान आयोजित किया।
इस व्याख्यानमाला का विषय था "कार्ल मार्क्स और हमारा समय"। दोपहर 1 बजे से शुरू होकर शाम 4 बजे तक चली इस व्यख्यानमाला में वक्ता थे कॉमरेड अरविंद श्रीवास्तव ( राज्य सचिव, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, मध्य प्रदेश), कॉमरेड ईश्वर सिंह दोस्त (पूर्व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, ऑल इंडिया स्टूडेंट फेडरेशन) कॉमरेड विजेंद्र सोनी (राज्य महासचिव, अखिल भारतीय शांति एकजुटता संगठन), कॉमरेड विनीत तिवारी (राष्ट्रीय सचिव, प्रगतिशील लेखक संघ), कॉमरेड जया मेहता (जोशी-अधिकारी इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल स्टडीज, नई दिल्ली से जुड़ीं वरिष्ठ जन अर्थशास्त्री)।
कॉमरेड अरविंद श्रीवास्तव ने कार्ल मार्क्स द्वारा प्रतिपादित मार्क्सवाद का महत्त्व समझाते हुए बताया कि गैरबराबरी, विषमता, असमानता, शोषण विहीन समाज की अवधारणा केवल मार्क्सवाद में ही की गई है। मार्क्स का
कॉमरेड ईश्वर सिंह दोस्त ने कहा कि जिस तरह बौद्ध दर्शन के पहले किसी भी दर्शन ने इंसान को बदलने की बात नहीं कि थी ठीक उसी तरह कार्ल मार्क्स के पहले किसी ने भी समाज में आमूल-चूल परिवर्तन की बात नहीं की। ऐसा समाजवाद जिसमें दुनिया की सत्ता में हस्तक्षेप करने की राजनीति समाहित है। बेशक कार्ल मार्क्स द्वारा स्थापित मार्क्सवाद/साम्यवाद की अकादमियों द्वारा, राजनीतिक क्षेत्र में, पार्टियों या अन्य क्षेत्रों में अलग-अलग तरह से व्याख्या की गई है लेकिन हर व्याख्या में मार्क्सवाद का मुख्य सिद्धांत साम्यवाद ही है जिसे बदला नहीं जा सकता।
कॉमरेड बिजेंद्र सोनी ने मार्क्सवाद की व्याख्या करते हुए आदिम साम्यवाद, दासयुग, सामंतवाद और फिर पूँजीवाद को समझाते हुए बताया कि जिस तरह पदार्थ की विभिन अवस्थाओं को प्राप्त करने के लिए अनुकूल परिस्तिथियाँ एवं नियम आवश्यक होते है और जब उसे अनुकूल परिस्तिथियाँ मिलती हैं तो परिवर्तन होता ही है बिल्कुल उसी तरह मार्क्सवाद के अनुसार समाज परिवर्तन के पीछे निश्चित नियम और परिस्तिथियाँ मिलने पर परिवर्तन होना तय है। और इसलिए मार्क्स अपने दर्शन को वैज्ञानिक समाजवाद कहते हैं। बिजेंद्र सोनी ने द्वंदात्मक भौतिकवाद पर भी संक्षिप्त में बात रखी।
कॉमरेड विनीत तिवारी ने मार्क्सवाद के विशेषज्ञ प्रोफेसर रणधीर सिंह को याद करते हुए कहा कि अकसर लोग मार्क्स के बारे में बात करते हुए और मार्क्स की व्याख्या करते हुए इतनी दूर चले जाते हैं कि मार्क्स की खुद की व्याख्या का उसके साथ कोई संबंध ही नहीं रह जाता। मार्क्स ने अपने सिद्धांत में तीन प्रमुख बिंदुओं को विकसित किया। सबसे पहले तो ऐतिहासिक भौतिकवाद और द्वंद्वात्मक भौतिकवाद, दूसरा अतिशेष मूल्य का सिद्धांत और तीसरा वैज्ञानिक समाजवाद। अतिशेष मूल्य के सिद्धांत से उन्होंने पूँजीवाद में निहित शोषण के तरीके को उजागर किया। ऐतिहासिक भौतिकवाद से उन्होंने मनुष्य समाज मे विभिन्न चरणों मे आये बदलावों की व्याख्या की और वैज्ञानिक विश्लेषण पद्धति से इतिहास की गति को समझने की कोशिश की। सबसे अहम बात वो जो उनकी कब्र पर भी लिखी हुई है- कि दुनिया की व्याख्या तो अनेक दार्शनिकों ने की है, लेकिन मुख्य बात ये है कि उसे बदला कैसे जाए। विनीत ने मार्क्स में साथ एंगेल्स को याद करते हुए कहा कि न केवल मार्क्स और एंगेल्स अपनी दोस्ती के लिए बल्कि क्रांतिकारिता के लिए भी हमेशा साथ याद किये जाएंगे। उन्होंने अपना समूचा जीवन पूंजीवाद की शोषणकारी व्यवस्था को खत्म करने में लगाया। उनकी शिक्षाएं हमें कोविड 19 के बाद की दुनिया को समाजवाद की ओर ले जाने में मददगार होंगी।
कॉमरेड जया मेहता ने अपनी बात रखते हुए कहा कि मैंने मार्क्स को एक अर्थशास्त्री के तौर पर ही ज्यादा जाना और समझा है। कार्ल मार्क्स ने जितना लिखा है और जितना उन पर लिखा गया है उस सब को पढ़े बिना यह दावा करना मेरे लिए बहुत मुश्किल है कि मैं उन्हें समग्रता में जानती हूँ। मैं उनके बारे मेँ एक अर्थशास्त्री के तौर पर अपनी बात रखने की कोशिश करूँगी।
जया मेहता ने कहा कि पूंजीवाद का विश्लेषण करते हुए मार्क्स ने बताया कि गैरबराबरी इसका एक प्रमुख लक्षण है जिसमें पूँजी चन्द लोगों के पास केंद्रित रहती है और काम करने वाले लोगों के पास केवल अपना श्रम बेचने के लिए रहता है। इससे आगे अगर हमें समाजवादी व्यवस्था में जाना है तो हमें उत्पादन के सम्बंध बदलने होंगे। मार्क्स ने बताया कि उत्पादन के सम्बंध बदलने की प्रक्रिया में वर्गीय चेतना विकसित होती है और उत्पादक शक्तियों की चेतना भी इसी तरह बदलती है। समाजवाद की स्थिति आने पर उत्पादन के साधनों पर एक व्यक्ति या कुछ व्यक्तियों का अधिपत्य नहीं रहेगा बल्कि पूरे समाज का रहेगा। फिर इसी दौरान समाजवाद की उत्पादन संरचना के भीतर लोगों की सोच में बदलाव आएगा और फिर वे साम्यवाद की ओर आगे बढ़ेंगे जिसके बारे में मार्क्स ने बहुत ही रोमांटिक कल्पना प्रस्तुत की है कि जहाँ लोग अपने सर्वश्रेष्ठ तथा पूर्ण व्यक्तित्व का विकास करेंगे और जहाँ काम करना मजबूरी नहीं बल्कि हर व्यक्ति के लिए आनंद और गर्व की बात होगी। ऐसे समाज की कल्पना करने वाला निश्चित ही बहुत कल्पनाशील और मनुष्यता से भरपूर, प्रेम करने वाला व्यक्ति रहा होगा। इतिहास ने मार्क्स की इस संकल्पना को गलत साबित किया कि जहाँ पूँजीवाद का पूर्ण विकास हो जाएगा वहाँ समाजवादी ताकतें क्रांति को सम्भव करेंगी। मार्क्स के मुताबिक क्रांति जर्मनी में होनी थी लेकिन वहाँ नहीं हुई। हम कह सकते हैं कि लेनिन ने मार्क्स के सिद्धांत का विकास करके रूस में क्रांति सम्भव की जो जर्मनी की तुलना में पिछड़ा हुआ देश था। आज पूंजीवाद फिर से एक संकट की स्थिति में पहुँच गया है और हमें लेनिन की तरह मार्क्स के अच्छे विद्यार्थी होने की भूमिका निभाकर आज की परिस्थितियों में मार्क्स के सिद्धांत को विकसित करना चाहिए और समाजवाद की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए।
लगभग दिनभर चली इस व्याख्यानमाला को देशभर के तमाम लोगों ने सुना, देखा और पसन्द किया। राज्य के युवा कॉमरेड्स के साथ-साथ वरिष्ठ कॉमरेड्स भी इस व्याख्यानमाला की तैयारी में उत्साह के साथ सहयोगी रहे। कॉमरेड मनोहर मिराठे, सत्यम सागर, राहुल भाईजी, योगेंद्र, राहुल वासनिक, येशुप्रकाश,विवेक गजभिए, सारिका श्रीवास्तव, सुषमा के साथ ही साथ किसान सभा मध्य प्रदेश के महासचिव प्रह्लाद बैरागी, वरिष्ठ कॉमरेड रानाडे, बोस दादा, हरनाम सिंह इन सभी के सहयोग और उत्साह से सम्भव हुई इस परिचर्चा ने लॉकडाउन के इस भारी माहौल में सभी को नई ऊर्जा से भर दिया। इसके पूर्व मजदूर दिवस पर भी फेसबुक लाइव का एक प्रयास किया था। जिसके उत्साहवर्धक परिणाम ने सभी को 5 मई कार्ल मार्क्स के इस आयोजन करने को प्रेरित किया।