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ब्राम्पटन (कनाडा)। दुनिया भर में कार्ल मार्क्स की दो सौवीं जयंती मनाने की खबरों में कल छः लाख की आबादी वाले कनेडियन शहर ब्राम्पटन ने अपना नाम भी इस गौरव गाथा में दर्ज कर दिया. 'एलाईन्स आफ़ प्रोग्रेसिव कैनेडियन्स.सी ए' के तत्वावधान में कल रायल स्टार रियल्टी के सम्मलेन कक्ष (170 स्टीलवेल रोड) में उपस्थित करीब पचास लोगों ने कार्ल मार्क्स पर बात कही और सुनी, उनके नज़रिए से देश दुनिया के बदलाव पर गंभीर चर्चा करके उन लोगों और विचारधाराओं को नेस्तेनाबूद कर दिया जिन्होंने मार्क्सवाद -समाजवाद के मर जाने, अप्रासंगिक होने जैसी घोषणाए कर दी हैं.

इस अवसर पर बोलते हुए कनाडा का प्रख्यात मार्क्सवादी इतिहासकार जैक पावेल्स ने एक अलग अंदाज में ही मार्क्स के वैचारिक, बौद्धिक योगदान का बयान एक इतिहासकार की नज़र से किया.

जैक पावेल्स, जिनकी तीन बड़ी किताबे प्रथम युद्ध और दूसरे विश्व युद्ध पर ही हैं, उन्होंने कहा कि पहला विश्वयुद्ध एकदम से नहीं हुआ था बल्कि शासक वर्ग ने पूरी तैयारी के साथ इसे अंजाम दिया था ताकि जनवादी, समाजवादी आन्दोलनों को कुचला जा सके. उन्होंने कहा कि हिटलर अमेरिकी पूंजीपतियों और जर्मन उद्योग का मात्र एक चेहरा था जिसे जर्मन और अमेरिकी पूंजी का पूरा समर्थन प्राप्त था, वह इसलिए कि हिटलर ट्रेड यूनियन, कम्युनिस्ट, समाजवाद और सोवियत यूनियन को ख़त्म कर देना चाहता था. यही एजेंडा अमेरिकी पूंजीपतियों का था जिसे स्वर हिटलर दे रहा था.

समारोह के प्रथम वक्ता युवा कार्यकर्ता, पेशे से इंजीनियर नवजीवन ढिल्लों के पावर पॉइंट प्रेसेंटेशन से हुई, जिसमें उन्होंने मई दिवस के इतिहास से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियां दीं। इतिहास से शुरू कर बड़ी ख़ूबसूरती के साथ नवजीवन ने कनाडा के मजदूर आन्दोलनों का इतिहास बताया, जिसमें चीनी मजदूरों द्वारा कनाडा में रेल लाइन बिछाते हुए उनकी दर्दनाक स्थिति, मौतों का जिक्र किया, कनाडा के खदान मजदूरों का हवाला देते हुए कनाडा के मूल निवासियों की वर्तमान

दशा दिशा का उल्लेख करते हुए वर्तमान कनाडा में उनकी आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक स्थिति के आंकड़े देकर उपस्थित दर्शको को स्तब्ध कर देने में सफल हुए.

नेपाल मार्क्सवाद की सबसे नई प्रयोगशाला

नेपाली समाज का प्रतिनिधित्व करते हुए गोविंदा शिवाकोटी ने मार्क्स के वैचारिक महत्त्व का उल्लेख किया और बताया कि नेपाल ही ऐसा देश हैं जहाँ हाल ही में कम्यूनिस्टो की भारी विजय के बाद लोकतांत्रिक सरकार बनी है उन्होंने नेपाल को मार्क्सवाद की सबसे नई प्रयोगशाला बताया.

सूडानी कम्युनिस्ट पार्टी के नेता अल फादिल अल हाशमी ने इस छोटे लेकिन प्रतिबद्ध लोगों के जलसे को संबोधित करते हुए कार्ल मार्क्स की विचारधारा और उनकी प्रासंगिकता को सूडानी परिस्थितियों से अवगत कराते हुई कहा कि इसका कोई विकल्प नहीं.

मार्क्स और महिला

वरिष्ठ कम्युनिस्ट नेत्री कामरेड सालेहा अथर ने पाकिस्तानी समुदाय और पाकिस्तान के हवाले से मार्क्स और महिला नाम से अपना पर्चा पढ़ा तो बांग्लादेश के स्वतंत्रता सेनानी वरिष्ठ कम्युनिस्ट नेता कामरेड अज़ीज़ुल मलिक ने बंगलादेश का इतिहास, वर्तमान की खबर बड़े विस्तार से सुनाई.

नारे में और कविता में फर्क होता है लेकिन दोनों का अपना - अपना महत्त्व है

पंजाबी साहित्य के जानेमाने नाम पेशे से वेटनरी साइंस प्रोफ़ेसर सुखपाल ने एक सजग लेखक और शार्प आब्जर्वर के लेन्सेस के थ्रू मार्क्सवाद पर बात की. उन्होंने इस मौके पर तीन अलग-अलग लघु कथाएं सुनाईं. उन्होंने कहा कि वह कौन सी बात है जब मनुष्य अपने दुखो के अंत के बाद दूसरे मनुष्यों के दुखों को अपना दुःख बना लेता है? वह कहते हैं यही करुणा है जो बुद्ध ने पहली बार मनुष्य जाति के सामने परिभाषित की. दुःख देशकाल परिस्थियों के चलते बदल सकते हैं, बुध के कुछ और थे, कबीर ने जाति वाद के प्रतिकार में अपने दुखो को परिभाषित किया, मार्क्स आर्थिक कारणों को दुःख की वजह बताते हैं. उन्होंने कहा कि प्रेम की संवेदना के बिना क्रांति नहीं हो सकती. मार्क्स ने १५० प्रेम कवितायेँ अपनी बीवी जेनी के लिए लिखी और जेनी की मृत्यु के बाद मार्क्स लंबे समय तक जीवित नहीं रहे. सुखपाल ने फलस्तीनी महाकवि महमूद दरवेश की दो कवितायेँ सुनाई और याद दिलाया कि नारे में और कविता में फर्क होता है लेकिन दोनों का अपना अपना महत्त्व है.

कामरेड हरपर्मिंदर सिंह गदरी ने इस अवसर पर कार्ल मार्क्स की थ्योरी ऑफ़ सरप्लस वेल्यू (अतिरिक्त मूल्य का सिद्धांत) पर अपने विचार व्यक्त किये.

इस अवसर पर 'सरोकारों दी आवाज़' समाचार पत्र के संपादक हरबंस सिंह ने कार्ल मार्क्स की विचारधारा और उसकी प्रासंगिकता पर अपने विकार रखे. उन्होंने कहा कि मार्क्स का विरोध पूंजीवाद, सम्राज्यवाद और शोषण का समर्थन है और कोई भी न्यायप्रिय व्यक्ति मार्क्स विरोधी नहीं हो सकता.

इस आयोजन में हिस्सा लेने वालों में प्रमुख गणमान्यों में तुर्की के जानेमाने पत्रकार सैद सेफ़ा भी थे जिन्हें अर्दोजान हकुमत की अदालते तीन आजीवन कारावास की सजा दे चुकी हैं. उनके साथ मिस कमुरान तीबिक भी थी जो मौजूदा हकुमत के उत्पीडन के बाद कनाडा में शरण ले चुकी है. अहमदाबाद के सामाजिक कार्यकर्ता रफ़ी मलिक ने भी इस समारोह में शिरकत की इनके अतिरिक्त करेबियन गुआना के विलियम्स नारायण, सीता नारायण, पंजाबी समाज के वरिष्ठ चिन्तक देव धुरे, बलराज चीमा, प्रोफेसर जागीर काहलो, साहित्यकार मलूक सिंह काहलो, टी वी पत्रकार चरनजीत बरार भी शामिल थे.

कम्युनिटी के जाने माने संस्कृतिकर्मी गायक इकबाल बरार ने अपना गीत सुनाया आलिमा ने भी एक अंग्रेजी गीत गया. समारोह की शुरुआत लाल बैंड पाकिस्तान द्वारा 'इंटरनेशनल' गीत से हुई और अंत हम मेहनत कश इस दुनिया से जब अपना हिस्सा माँगेगे जैसे गीत पर. आयोजन कक्ष की साज सज्जा का काम संदली और ज़किया शमशाद ने ऐसे की जैसे किसी कम्युनिस्ट पार्टी का कोई सम्मलेन हो रहा हो. सभी दीवारों पर ए पी सी के नारों और मुद्दों के पोस्टर बड़े कायदे से लगाये गए थे.

सभा का मंच संचालन कामरेड हरदीप सिंह ने बहुत पेशेवर तरीके से किया, कम्युनिस्ट पार्टी आफ़ कनाडा के (जी टी ए वेस्ट क्लब) वरिष्ठ नेता कामरेड मल्कियत सिंह ने आयोजको की तरफ से वोट ऑफ़ थेक्स प्रस्ताव पेश किया.

उपरोक्त समारोह की सबसे दिलचस्प बात यह थी कि भारतीय समुदाय के अलावा दूसरी कई राष्ट्रीयताओं की शिरकत इस समारोह में रही. इसी कारण से 'एलाईन्स आफ़ प्रोग्रेसिव कैनेडियन्स.सी ए' की वैचारिक विशिष्टता, सर्वांगीण दृष्टिकोण और उन्नत कार्यप्रणाली दूसरे कथित संगठनों के एकागी, सांप्रदायिक, तंग नज़र, जातिवादी और जड़ता से अलग एक नया जनवादी आयाम और विकल्प प्रस्तुत करता है.