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Khap Panchayats are feudal remains

परंपरा-रिवाजों को निभाने का बोझ केवल नारी के कंधों पर ही डाल दिया गया है। कभी इसकी बलि जाति, गोत्र, परम्पराओं के नाम पर दी जाती है तो कभी महान बनाने का आडम्बर किया जाता है! आधुनिकता की दौड़ में विश्व आगे बढ़ रहा है और हमारा देश जाति, धर्म, सम्प्रदाय के चक्रव्यूह से निकलने में असमर्थ है। सच्‍चाई तो यह है कि देश में दिन प्रतिदिन बुराईयां बढ़ती जा रही हैं।

आज भी हमारे देश में लड़कियों को खुली हवा में सांस लेने की आज़ादी नहीं है। आज भी गाँव में जाति, गोत्र, परिवार की इज्ज़त के नाम पर होने वाली हत्याओं की बात आती है तो इसमें लड़कियों और औरतों की संख्या अधिक होती है।

सामंतवादी विचारधाराओं ने अपनी खाप पंचायत बना ली, जो अपने निहित लाभ के लिये अपना-अपना फरमान जारी करते हैं। फरमान न मानने वाले का सामाजिक बहिष्कार किया जाता है या मृत्युदंड की सजा सुनाई जाती है!

क्या हैं ये खाप पंचायतें और क्या इन्हें ऐसे निर्णय लेने का आधिकारिक या प्रशासनिक स्वीकृति हासिल है? रियायती पंचायतें या कहे खाप पंचायतें या कहे पारंपरिक पंचायतें, जिन्हें न आधिकारिक मान्यता प्राप्त है न ही न्यायिक अधिकार, फिर भी ये प्रभावशाली हैं!

इन पंचायत में प्रभावशाली जातियों या गोत्र का दबदबा रहा है, या यूं कहे इनकी सामंतवादी नीतियां चलती हैं, और जो इनका फरमान न माने उन्हें शक्तिदंड तो भोगना ही पड़ता है, चाहे कोई भी क्यों न हो। एक गोत्र या फिर एक बिरादरी के सभी गोत्र मिलकर खाप पंचायत बनाते हैं। जिस गोत्र के जिस इलाके में ज्यादा प्रभावशाली लोग होते है, उसी का खाप पंचायत में दबदबा रहता है। आज इन पंचायतों का दबदबा सबसे ज्यादा पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश तथा राजस्थान में है, जहां लड़कियों की जनसंख्या कम है! और वो उनपर अपना नियंत्रण खोना नहीं चहते हैं, चाहे उनकी

अपनी औलाद घुटकर-घुटकर क्यों न मर जाये!

हाल ही में आई कई खबरें चौंका देने वाली थीं। कमलेश यादव व खुशबू शर्मा की हत्या, दूसरी कुलदीप और मोनिका की हत्या, मनोज-बबली की हत्या आदि ऐसी कई मौतें इस बात का हवाला देती हैं। रोज़ एक हत्या ऑनर किलिंग (honour killing) या कहें तो डिसऑनर किलिंग के तहत हो रही है। युवा पत्रकार निरुपमा की मौत (Young journalist Nirupama dies) से हम और हमारा समाज अछूता नहीं है। इज्ज़त की खातिर ऑनर किलिंग या यानी डिसऑनर किलिंग का सिलसिला थमने का नाम ही नहीं ले रहा है। अपने झूठा अभिमान को बचाने की झूठी कवायद हो रही है। रोज़-रोज़ मासूमों की बलि चढ़ती जा रही है, जो एक बीमार मस्तिष्क की उत्पति है!

आज देश में हर घंटे अनेकों अपराध हो रहे हैं, बलात्कार, चोरी ,लूट, आतंकवादी घटनाएं और सांप्रदायिक दंगे, पर हमने यह कहीं नहीं सुना कि किसी पंचायत या पिता ने अपने बलात्कारी बेटे को मृत्युदंड दिया हो, उसका सामाजिक निष्कासन किया गया हो। उल्टा उसे बचाने की कवायद शुरू होती है और पुलिस प्रशासन पर आरोप लगता है कि उसके बेटे को गलत फंसाया गया, कभी किसी आतंकी के पिता ने या पंचायत ने उसके लिए फतवा जारी किया है, जो रोज़-रोज़ न जाने कितने बेगुनाह मौत की भेंट चढ़ा रहे है? उसके लिए समाज को कोई चिंता नहीं है।

आज अगर इस महान पंचायत और महान लोगों का बेटा जुआ खेले, लड़कियों को प्रताड़ित करे, शराब पिए तो कोई भी सज़ा नहीं होती पर यदि किसी औरत या लड़की से कोई भी गुनाह हो जाये तो यह पंचायत अपने असली रूप में आकर अपने तेवर दिखाती है।

आज भी किसी महिला या लड़की को अपने जीवन के प्रति निर्णय लेने का अधिकार नहीं है! आज भी लड़कियों को भेड़-बकरियों या गाय की तरह एक खूंटे में बांध दिया जाता है, जहां उसे अपने समाज, बिरादरी की परंपरा निभानी पडती है। आज भी कोई नारी जातीय या धार्मिक परम्परा को तोड़ने की हिम्मत नहीं कर सकती और यदि तोड़े तो उसके लिए मौत ही एक रास्ता होता है!

आज प्रश्न उठता है कि हम कब सुधरेंगे? क्या आज भी हम उन्हीं दकियानूसी परम्पराओं का निर्वाह करते रहेंगे?

आज हमारे देश को आज़ाद हुए इतने साल हो गए पर आज भी ठीक ढंग से लोकतंत्र की स्थापना नहीं हो पाई है! जानते है क्यों? क्योंकि हम अभी भी अपनी-अपनी जाति का बोझ ढो रहे है। अपनी परम्पराओं को गलत ना मानकर दूसरों की परम्पराओं पर लांछन लगा रहे हैं!

वास्तव में हमारे देश का जातिवाद का यह स्वरूप पिछले दो तीन हज़ार वर्षो से बिगड़ा है! मैं सोचती हूँ कि हमारे देश की वर्तमान राजनीति ही मात्र जिम्मेवार नहीं है बल्कि हमारे देश के इतिहास को पढ़ेंगे तो पाएंगे कि कुछ राज्यों में कुछ हद तक जातिवाद की भावना थी, पर वो इतनी गहरी और खराब नहीं थी जितनी की आज है। ऑनर किलिंग के नाम पर मासूमों का खून बहाना बंद होना चाहिए। खाप के लोगों को समझना होगा कि इस देश में कानून अपने हाथ में लेना खतरनाक है, इसे रोकना होगा।

मनु मंजू शुक्‍ला

लेखिका मनु मंजू शुक्‍ला अवध रिगल टाइम्‍स की संपादिका है