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जानिए क्या हैं एफआईआर दर्ज कराने के कानूनी रास्ते



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It is the duty of the police to register an FIR in a cognizable offence and there is a provision in the CRPC.

कई बार ऐसा देखने को मिलता है कि गाड़ी चोरी हो जाने (Car stolen) या चलती बस या बाजार में मोबाइल चोरी हो जाने पर जब एफआईआर (FIR for mobile theft in moving bus or market) के लिए थाने जाते हैं तो पुलिस एफआईआर दर्ज करने में आनाकानी करती है। वैसे, संज्ञेय अपराध में एफआईआर दर्ज करना पुलिस की ड्यूटी है और सीआरपीसी में इसके लिए प्रावधान है। इसके बावजूद अगर पुलिस गंभीर मामले में केस दर्ज न करे तो क्या रास्ता बचता है (If the police do not register a case in a serious matter, what is the way left), यह जानना जरूरी है।

कानूनी जानकार बताते हैं कि ऐसा कोई भी अपराध जो संज्ञेय है, उसमें पुलिस को एफआईआर दर्ज करनी होगी। पुलिस कोई

बहाना नहीं बना सकती।

भारतीय दंड संहिता की धारा 154 (सीआरपीसी की धारा-154- Section-154 of CRPC) के तहत पुलिस को किसी भी संज्ञेय अपराध की सूचना के आधार पर केस दर्ज करना होता है। जब कोई संज्ञेय अपराध होने की स्थिति में थाने में शिकायत लिखकर देता है तो पुलिस उसकी एक कॉपी पर मुहर लगाकर दे देती है। इसके बावजूद अगर केस दर्ज नहीं होता है तो वह अदालत का दरवाजा खटखटा सकता है। इस मामले में 9 जुलाई 2010 को दिल्ली उच्च न्यायालय ने शुभंकर लोहारका बनाम स्टेट ऑफ दिल्ली के केस में गाइडलाइंस (Guidelines in the case of Shubhankar Loharka vs State of Delhi) जारी कर रखी हैं।

अगर थाने में शिकायत के बावजूद केस दर्ज न हो तो क्या करें

रिपोर्ट दर्ज न हो तो क्या करें : अगर थाने में की गई शिकायत के बावजूद केस दर्ज न हो तो शिकायती 15 दिनों के भीतर जिले के पुलिस चीफ (District Chief of Police) यानी दिल्ली में डीसीपी या राज्यों में एसपी के सामने शिकायत कर सकता है। इस शिकायत की पावती (Acknowledgment of complaint) लेनी होती है। शिकायत डाक के जरिये भी डीसीपी को भेजी जा सकती है या ईमेल भी किया जा सकता है। इसके बावजूद अगर केस दर्ज न हो तो उक्त शिकायत की कॉपी के साथ शिकायती सीआरपीसी की धारा-156 (3)- Section-156 (3) of CRPC के तहत इलाका मजिस्ट्रेट (area magistrate court) के सामने शिकायत कर सकता है। तब मजिस्ट्रेट के सामने अर्जी दाखिल कर कोर्ट को यह बताना होता है कि कैसे संज्ञेय अपराध हुआ।

कानूनी जानकार बताते हैं कि अगर शिकायती की अर्जी पर सुनवाई के दौरान अदालत संतुष्ट हो जाती है तो अदालत इलाके के एसएचओ को निर्देश जारी करता है कि वह केस दर्ज करे और अपनी रिपोर्ट कोर्ट में पेश करे।

मजिस्ट्रेट चाहें तो अर्जी पर पुलिस से स्टेटस रिपोर्ट (Status report from police) दाखिल करने को कह सकते हैं और फिर जवाब के बाद केस दर्ज करने का आदेश दे सकते हैं।

अगर मजिस्ट्रेट की अदालत शिकायती की अर्जी खारिज कर दे तो क्या करें | What to do if the magistrate's court dismisses the complaint

अगर मजिस्ट्रेट की अदालत शिकायत की अर्जी खारिज कर देती है तो उक्त आदेश को सेशन कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है। वहां भी अगर अर्जी खारिज हो जाए तो उच्च न्यायालय में अपील दाखिल हो सकती है।

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नोट - यह समाचार किसी भी हालत में परामर्श नहीं है। यह जनहित में सिर्फ एक अव्यावसायिक जानकारी है।कोई निर्णय लेने से पहले अपने विवेक का प्रयोग करें और किसी कानूनी विशेषज्ञ से सलाह लें। जानकारी का स्रोत - देशबन्धु)

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