Hastakshep.com-राजनीति-Bhogendra Jha-bhogendra-jha-Chaturanan Mishra-chaturanan-mishra-Communist Party of India-communist-party-of-india-Disillusionment with Left-disillusionment-with-left-Lalu Prasad Yadav-lalu-prasad-yadav-Leningrad of Bihar-leningrad-of-bihar-Madhubani-madhubani-चतुरानन मिश्र-cturaann-mishr-बिहार का लेनिनग्राद-bihaar-kaa-leningraad-भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी-bhaartiiy-kmyunisstt-paarttii-भोगेन्द्र झा-bhogendr-jhaa-मधुबनी-mdhubnii-लालू प्रसाद यादव-laaluu-prsaad-yaadv-वाम से मोहभंग-vaam-se-mohbhng

मधुबनी के गरीब आवाम से उसका नेता छीन लेने का श्रेय लालू प्रसाद यादव को ही जाता है

उफ्फ्फ्फ़ हमारा वाम हमारा आवाम

बिहार में वाम के पराभव काल की शुरुआत ...... रजनीश के झा ने फेसबुक पर बिहार में वाम दलों के पराभव पर एक छोटी सी टिप्पणी लिखी और उस टिप्पणी पर बहस में कुछ कमेन्ट भी किए। उस फेसबुकिया टिप्पणी और कमेन्ट्स को मिलाकर एक बड़ी टिप्पणी बन गई है। सवाल आज भी जस के तस हैं। फेसबुकिया टिप्पणी और कमेन्ट्स का संपादित रूप- सं. हस्तक्षेप

1996 लोकसभा चुनाव और बिहार के लेनिनग्राद (Leningrad of Bihar) मधुबनी के तीन बार के सांसद भोगेन्द्र झा (Bhogendra Jha), जिनका मुखर हो कर लालू यादव (Lalu Prasad Yadav) ने विरोध किया...... इस चुनाव में वाम के टिकट का निर्धारण लालू के गठबंधन और जनता दल के प्रभुत्व के कारण वाम पार्टी द्वारा नहीं लालू यादव द्वारा किया गया और मधुबनी से लगातार सांसद रहे स्थानीय कद्दावर वाम नेता, जिनकी पहचान मजदूर किसान और गरीबों के नेता के रूप में रही, का टिकट काट कर पंडित चतुरानन मिश्र को टिकट दे दिया.......

भोगेन्द्र झा और चतुरानन मिश्र दोनों मधुबनी के स्थानीय रहे, मगर चतुरा बाबू की राजनीति और मधुबनी का सम्बन्ध कभी रहा ही नहीं। दोनों के व्यक्तित्व में आसमान और धरातल का अंतर था। एक जमीनी वाम दूसरा सोफिस्टिकेटेड वाम....... दोनों के चरित्र व्यवहार और वाम विचार में इस अंतर को हटा दें तो दोनों ही मुद्दा आधारित राजनीति करने वाले मुखर वक्ता रहे मगर...........लालू के इस एक निर्णय ने चतुरानन मिश्र को संसद पहुंचा दिया।

पहली बार वाम से मंत्री बनने वालों में चतुरा बाबू भी रहे, मगर ये वो निर्णय साबित हुआ जिसके बाद बिहार का लेनिनग्राद खंडहर में

तब्दील हो गया.....

मधुबनी से भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी को समाप्त करने का श्रेय लालू यादव के हस्तक्षेप से अधिक वाम का लालू के आगे नतमस्तक होना रहा, जिसके बाद वाम ने कभी सर नहीं उठाया.......

जी हाँ मधुबनी के गरीब आवाम से उसका नेता छीन लेने का श्रेय लालू प्रसाद यादव को ही जाता है !!!

विधान परिषद् ने बता दिया है कि वाम के साथ अब कोई आवाम नहीं है ...... विधान परिषद् चुनाव से इतर परिणाम विधान सभा का भी वाम के लिए नहीं होने वाला.....

मैं चुनाव प्रचार का हिस्सा रहा हूँ..... वोट और चन्दा साथ साथ मांगते थे भोगेन्द्र बाबू और लोग देते भी थे। चन्दा पैसे से ही नहीं अनाज से भी। आमसभा के लिए मंच कुर्सी टेंट नहीं गाँव के किसी चौपाल पर चौकी पर ही आवाम से सीधा संपर्क..... आज चाय पर चर्चा को भुनाया जाता है, जबकि भोगेन्द्र बाबू चाय भी अपने मतदाता से मांग कर पीते थे......

उफ्फ्फ्फ़ हमारा वाम हमारा आवाम

बिहार में वाम वास्तविकता का चेहरा नहीं देखना चाहते, अन्यथा विधान परिषद् चुनाव परिणाम बहुत कुछ की गवाही देता है।

वाम से मोहभंग (Disillusionment with Left) आध्यात्म सा लगता है। वाम गठबंधन के बजाय आवाम को जोड़े तो वो जातीय समीकरण तोड़ सकता है। ऐसा उस समय भी किया जा चुका है जब जातीयता चरम पर और शिक्षा सिफर थी। शायद सत्ता के करीबी होने का एहसास अब वाम छोड़ना नहीं चाहता........ अन्यथा दीपांकर बिहार में वाम का एक सशक्त चेहरा हो सकता है। पिछलग्गू से मुक्ति या फिर वाम का पटाक्षेप !!!!

रजनीश के झा

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