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The life cycle of plants in the Himalayas is being affected by climate change

नई दिल्ली, 05 फरवरी, 2021 : पेड़-पौधों के जीवन-चक्र पर जलवायु परिवर्तन का व्यापक असर (The impact of climate change on the life cycle of plants,) पड़ रहा है। पता चला है कि जलवायु परिवर्तन, हिमालय क्षेत्र के पेड़-पौधों पर फूल और फल आने के चक्र को भी प्रभावित कर रहा है।

ऊपरी हिमालय क्षेत्र में पेड़-पौधों पर जलवायु परिवर्तन एवं मौसमी घटनाओं के प्रभाव के आकलन के लिए किए गए नये अध्ययन में यह खुलासा हुआ है।

इस अध्ययन में कुछ स्थानीय वनस्पतियों में सामान्य से तीन-चार महीने पहले फूल और फल आने की घटनाएं देखी गई हैं। उत्तराखंड वन विभाग द्वारा राज्य के पिथौरागढ़ जिले के सीमांत क्षेत्र मुनस्यारी में किए गए इस अध्ययन में चार स्थानीय पौधों के जीवन-चक्र में इस तरह के बदलाव दर्ज किए गए हैं। जिन चार वनस्पतियों के पुष्पन एवं फलन पर ये बदलाव देखे गए हैं, उनमें सुन्दर फूलों वाला उत्तराखंड का राज्य वृक्ष बुरांस (रोडोडेंड्रॉन rhododendron in hindi), काफल (मिरिका एस्कुलेंटा),हिसालू (रूबस इलिप्टिकस) और हिमालयन चेरी (प्रुनस सेरासोइड्स) शामिल हैं।

शोधकर्ताओं का कहना है कि पेड़-पौधों की इन प्रजातियों में फूल और फल आने का सामान्य समय बसंत या ग्रीष्म ऋतु होती है। लेकिन, इस वर्ष इन पेड़-पौधों में फूल एवं फल आने की प्रक्रिया जनवरी के अंत में देखी गई है।

जनवरी में ही खिल गए हैं बुरांस के फूल

रोडोडेंड्रोन, जिसे स्थानीय तौर पर बुरांस कहते हैं, में फूल आमतौर पर मार्च से मई के महीनों में लगते

हैं। पर, इस अध्ययन के दौरान बुरांस में जनवरी में ही फूल खिलते देखे गए हैं। इसी तरह, अप्रैल से जून के अंत तक लगने वाले काफल जनवरी के महीने में ही लग गए हैं।

चीफकन्जर्वेटर ऑफ फॉरेस्ट्स (रिसर्च) संजीव चतुर्वेदी ने पौधों में समय से पहले फूल और फल आने के पीछेजलवायु परिवर्तन को जिम्मेदार बताया है।

उन्होंने कहा है कि पेड़-पौधों पर फूल और फल आने के चक्र में बदलाव ऊपरी हिमालयी क्षेत्र के गर्म होने के कारण हो रहा है । मुनस्यारी अपनी बर्फीली सर्दियों के लिए जाना जाता है। इसीलिए, इन परिवर्तनों को जलवायु परिवर्तन के संकेतक के रूप में देखा जा रहा है।

अध्ययनकर्ताओं का कहना यह भी है कि हम पिछले कई वर्षों से सर्वेक्षण में इन पौधों में फूल और फल आने के चक्र में परिवर्तन देख रहे थे। लेकिन, इस बार यह अंतर अधिक स्पष्ट दिखाई पड़ रहा है।



(इंडिया साइंस वायर)