नई दिल्ली, 12 सितंबर: सांस लेने में तकलीफ है, शारीरिक श्रम करने से सांस फूलने लगती है, सांसों में घरघराहट और सीने में जकड़न रहती है, लगातार बलगम की तकलीफ रहती है और खांसी के सामान्य सिरप एवं दवाएं बेअसर साबित हो रही हैं तो सतर्क हो जाएं। ये लक्षण ‘क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज’ (सीओपीडी) - Symptoms of 'Chronic Obstructive Pulmonary Disease' (COPD), के हो सकते हैं, जो फेफड़ों की पुरानी बीमारी (Chronic lung disease) के रूप में जानी जाती है। एड्स, टीबी, मलेरिया और डायबिटीज से होने वाली मौतों की कुल संख्या से कहीं अधिक मृत्यु अकेले सीओपीडी के कारण होती है। पारंपरिक रूप से सीओपीडी का निदान बीमारी के इतिहास और नैदानिक लक्षणों के आधार पर किया जाता है। हालांकि, निदान के इस तरीके में सही समय पर रोग का पता नहीं चल पाता और बीमारी विकराल रूप धारण कर लेती है।
भारतीय शोधकर्ताओं ने सीओपीडी के निदान के लिए इंटरनेट ऑफ थिंग्स (आईओटी) और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) आधारित एक नया डायग्नोस्टिक सिस्टम ईजाद किया है। यह सिस्टम सांस लेने के पैटर्न, श्वसन दर, हृदयगति और रक्त में ऑक्सीजन संतृप्ति के स्तर की निरंतर निगरानी में मददगार हो सकता है।
इस सिस्टम के मुख्य रूप से तीन घटक हैं, जिसमें सेनफ्लेक्स.टी नामक स्मार्ट-मास्क, सेनफ्लेक्स मोबाइल ऐप और आईओटी क्लाउड सर्वर शामिल है। स्मार्ट मास्क ब्लूटुथ के जरिये एंड्रॉइड मॉनिटरिंग ऐप के साथ जुड़ा रहता है। जबकि, मोबाइल ऐप क्लाउड कंप्यूटिंग सर्वर से जुड़ा रहता है, जहाँ मशीन लर्निंग (एमएल) के माध्यम से सीओपीडी की गंभीरता का अनुमान लगाने के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) का उपयोग किया जाता है।
यह सिस्टम भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) खड़गपुर के भौतिक विज्ञान
"सिस्टम में शामिल मोबाइल ऐप आईओटी क्लाउड सर्वर के साथ संचार करता है, जहाँ से ऐप में एकत्रित डेटा को मशीन लर्निंग एल्गोरिदम के माध्यम से आगे के विश्लेषण के लिए स्थानांतरित किया जाता है और बीमारी की गंभीरता का अनुमान लगाया जाता है। एक बार विश्लेषण पूरा होने के बाद परिणाम मोबाइल ऐप पर आ जाते हैं। रिपोर्ट सर्वर में उत्पन्न होती है और ऐप पर उपलब्ध रहती है। सिस्टम से संबंधित घटक पूरी तरह विकसित हैं और एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं।"
इस सिस्टम में तापमान मापने वाले संवेदनशील सेंसर और मापन के लिए ब्लूटुथ आधारित इलेक्ट्रॉनिक उपकरण लगे हैं।
ऑक्सीजन संतृप्ति स्तर की निगरानी के लिए इसमें सेंसर प्रणाली के साथ व्यावसायिक रूप से उपलब्ध एक पल्स ऑक्सीमीटर भी लगाया गया है। रोगी से संबंधित डेटा मोबाइल ऐप के माध्यम से स्वतः क्लाउड सर्वर पर अपलोड होता रहता है। डेटा को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस मार्कअप लैंग्वेज (एआईएमएल) के माध्यम से संसाधित किया जाता है, और ऐप पर रिपोर्ट उपलब्ध हो जाती है, जिसे डॉक्टरों के परामर्श के लिए उपयोग किया जा सकता है।
प्रोफेसर गोस्वामी ने बताया कि
"इस मास्क का उपयोग रोगी घर पर आसानी से कर सकते हैं। इसके उपयोग से बार-बार डायग्नोस्टिक केंद्रों पर जाने से निजात मिल सकता है और सही समय पर निदान हो सकता है। इस तरह, उन्नत स्वास्थ्य तकनीकों की मदद से सीओपीडी से संबंधित जटिलताओं से शुरुआती स्तर पर निपटा जा सकता है, जो रोगियों और स्वास्थ्य प्रणाली दोनों के लिए एक वरदान साबित हो सकता है।"
शोधकर्ताओं ने बताया कि सीओपीडी मौतों का एक प्रमुख कारण है। दिल की बीमारियों के कारण होने वाली मौतों के बाद सीओपीडी का इस मामले में दूसरा स्थान है। वर्ष 2017 में इस रोग के कारण भारत में लगभग 10 लाख लोगों को अपनी जान गवांनी पड़ी थी। एक ताजा सर्वेक्षण के अनुसार सीओपीडी रोगियों में कोरोना वायरस के प्रकोप की गंभीरता एवं मृत्यु दर 63% से अधिक देखी गई है।
“श्वसन तंत्र में अवरोध पैदा करने वाले अस्थमा और सीओपीडी जैसे रोगों के निदान के लिए स्पिरोमेट्री एक मानक परीक्षण है। पर, उपकरणों की अनुपलब्धता, डेटा की व्याख्या में कठिनाई और परीक्षण की अधिक लागत के कारण इसके उपयोग में बाधा आती है। इस चुनौती ने हमें एआई-आधारित प्रणाली विकसित करने के लिए प्रेरित किया, जो परिणामों की व्याख्या की समस्या को दूर कर सकती है और डॉक्टरों एवं रोगियों के लिए सुलभ हो सकती है।”
इस अध्ययन से जुड़े शोधकर्ताओं में प्रोफेसर गोस्वामी के अलावा आईआईटी खड़गपुर की शोधकर्ता सुमन मंडल, सत्यजीत रॉय, अजय मंडल, अर्णब घोष, साहा इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूक्लियर फिजिक्स, कोलकाता के शोधकर्ता बिस्वरूप सतपति और मिदनापुर कॉलेज, मिदनापुर की शोधकर्ता मधुचंदा बैनर्जी शामिल हैं।
(इंडिया साइंस वायर)