महिला चरखा समिति की स्थापना श्रीमती प्रभावती देवी ने गांधीजी के आशीर्वाद और डॉ. राजेंद्र प्रसाद के मार्गदर्शन में 26 जून 1940 को ‘बिहार महिला चरखा समिति’ के नाम से की थी। यह समिति जिस समय स्थापित हुई, देश में आज़ादी का आंदोलन अपने चरम पर था। स्वतंत्रता आंदोलन (Freedom movement) के अहिंसात्मक आंदोलन (Nonviolent movement) का प्रधान अंग रचनात्मक कार्यक्रम था। जिसका प्रथम चरण चरखा और खादी था। जिसके उद्देश्यों को केंद्र में रखकर इस संस्था की स्थापना की गई थी। वर्तमान में यह संस्था एवं आज़ादी के आंदोलन की महान नेत्री प्रभावती जी का इतिहास धीरे-धीरे हमारी स्मृतियों से ओझल होता जा रहा है। नई पीढी संपूर्ण क्रांति के जनक जयप्रकाश नारायण (Jai Prakash Narayan) एवं अहिंसक सत्याग्रही प्रभावती जी जैसे बिहार के अनमोल रतनों को बिसराती जा रही है। उनके द्वारा स्थापित संस्थाओं तथा अन्य महत्वपूर्ण स्थलों की प्रासंगिकता को पुनः सार्वजनिक जीवन में लाने की आवश्यकता है। इन समस्त बिंदूओं पर प्रस्तुत है, प्रभावती जी की 46 वीं पुण्यतिथि पर भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद की पौत्री तथा वर्तमान में महिला चरखा समिति की अध्यक्ष प्रो. तारा सिन्हा (Pro. Tara Sinha) से महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के स्त्री अध्ययन विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ. सुप्रिया पाठक (Dr. Supriya Pathak) से बातचीत के कुछ महत्वपूर्ण अंश :
प्रभावती बिहार के विख्यात वरिष्ठ कांग्रेसी नेता ब्रजकिशोर जी की लाडली पुत्री थीं। हालांकि उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा घर पर प्राप्त की
प्रभावती जी के गांधीजी के आंदोलनों के प्रति झुकाव को देखते हुए उनके पिता ने 1928 में उन्हें साबरमती आश्रम में पहुंचा दिया जहां एक बार पुनः उनकी मुलाकात गांधीजी एवं कस्तूरबा से हुई।वहां दोनों ने उन्हें पुत्री के समान अत्यंत लाड प्यार से रखा। थोड़े ही समय में गांधीजी उनके पिता, मार्गदर्शक एवं शिक्षक बन गए। कस्तूरबा भी उन्हें इसी तरह मानती थीं। थोड़े ही समय में प्रभावती आश्रम नियम, दिनचर्या, चरखा कताई,आश्रम के बीमार लोगों की सेवा में पूरी तरह रम गईं।
सन 1932 में द्वितीय असहयोग आंदोलन के समय जे.पी. के कारागार में जाने के पहले ही प्रभावती बंदी बना ली गईं। 1940 में रामगढ कांग्रेस के समय प्रभावती ने स्वयंसेविकाओं के दल का नेतृत्व बहुत कुशलता से किया। इस प्रकार स्वतंत्रता के संग्राम में प्रभावती जी ने सक्रिय रूप से भाग लिया। स्वतंत्रता प्रप्ति के बाद भी उन्होंने स्वयं को समाजसेवा के कार्यों में लगाए रखा। पटना में उन्होंने दो संस्थाओं की स्थापना की। महिला चरखा समिति पहली संस्था जिसकी स्थापना 1940 में ,आजादी की लडाई के समय बापू के सत्याग्रह आंदोलन के लिए अहिंसक महिला सैनिक तैयार करने के लिए हुई थी। उनकी दूसरी संस्था ‘कमला नेहरु शिशु विहार’ थी जो स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद खुली।
महिला चरखा समिति का इतिहास अत्यंत गौरवशाली है। यह उस युग में स्त्रियों के लिए बापू की यह बडी देन थी; जो नारी अपने को निरीह, असमर्थ और अयोग्य मानती रहीं उन्हें यह प्रकाश स्वरूप मिला। उनके द्वारा राष्ट्रीय भावना, सहयोग भावना और सामूहिक भावना का विकास हुआ,साथ ही नई जागृति और शक्ति मिली। यह संस्था सदा से बापू के बताए मार्ग पर चलने का प्रयत्न करती रही। एक ओर पटना और कदमकुआँ में शिक्षण कार्य चलता रहा ,दूसरी ओर दृष्टीकोण को कायम रखकर आवश्यकतानुसार हर प्रकार के कार्यों में सहयोग देती रहीं। समिति ने हमेशा अपने दायित्वों का निर्वहन किया। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में दिखा। शहीदों के बलिदान पर पटना में महिलाओं द्वारा एक बड़ा जुलूस निकाला गया।
1943 जो एक आतंक का युग था, पूज्य बापू के ऐतिहासिक उपवास के समय प्रार्थना सभाएं की गईं,जुलूस निकाले गए। उन दिनों श्रीमती प्रभावती देवी के नेतृत्व में श्रीमती सावित्री देवी, श्रीमती पार्वती देवी, श्रीमती सुमित्रादेवी, श्रीमती शरणम आदि बहनें सदैव क्रियाशील रहीं। 1946 के दर्दनाक दंगे में प्रभावती देवी के नेतृत्व में महिलाओं की एक बड़ी सभा अयोजित की गई।
1948 में गावों में जागृति लाने के लिए आठ ग्राम केंद्र खोले गए। वहां बच्चियों की शिक्षा एवं महिलाओं के लिए उद्यम के प्रयास किए गए। 1953 में विनोबा जी के पटना आगमन पर भूदान आंदोलन को सफल बनाने हेतु विराट सभा आयोजित की गई। समिति ने पटना शहर में सर्विदय पात्र का प्रचार किया तथा हर महीने के अंत में एक निश्चित स्थान पर सर्वोदय पात्र एकत्र करती रहीं। अपने सूक्ष्म उद्देश्यों को धारण किए हुए यह आगे बढ़ा। पटना के 18 मुहल्लों में इसके केंद्र खुले। यहाँ सूत काटने की तकनीक सिखाई जाती थी और इसके द्वारा स्वावलंबन को प्रत्साहन दिया जाता था। इस विचार ने ग्राम सेविका शिक्षण को जन्मदिया। 1951 में देश रत्न डॉ. राजेंद्र प्रसाद के हाथों इसके औपचारिक भवन का उदघाटन हुआ। ग्राम सेवा विकास प्रशिक्षण,बालवाड़ी, बालिका विद्यालय, कताई,बुनाई,प्रशिक्षण, गृह उद्योग, अम्बर विद्यालय ,अम्बर परिश्रमालय ,नारी सहयोग विभाग तथा नारी संस्कृति विभाग आदि गतिविधियां चलती रहीं। 1974 में जब जयप्रकाश नारायण ने बिहार आंदोलन का नेतृत्व किया तब भी सम्पूर्ण क्रांति के नारे के साथ महिला चरखा समिति इसका केंद्र बना और यहाँ के महिलाओं ने सक्रिय भागीदारी निभायी। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद अपनी शहादत से कुछ दिन पूर्व अपने संदेश में बापू ने आने वाली चुनौती की ओर स्पष्ट संकेत करते हुए कहा था कि ‘चरखा और खादी का भविष्य अब आज़ादी की लडाई की ध्वजता से मुक्त होने के पश्चात विचारशीलता पर निर्भर है। महिला चरखा समिति ने इस विचार के बुनियाद की सार्थकता को समझा और आज भी उसके लिए निरंतर कार्यरत है’।
देखिए कुछ बातें एवं कुछ विचार ऐसे होते हैं जिनकी प्रसंगिकता कभी खत्म नहीं होती, हो ही नहीं सकती। उनके विचार आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने तब थे। वर्तमान समय में जिस तरह की राजनीति हो रही है,एक दूसरे पर आरोपों प्रत्यारोपों का दौर है। व्यक्तिगत गरिमा के साथ लगातार खिलवाड किया जा रहा है। असंसदीय भाषा एवं मुदा आधारित राजनीति का सर्वथा अभाव होता जा रहा है। राजनीति उस समय सेवा का माध्यम थी, आज राजनीति एक प्रकार से पारिवारिक उद्यम में तब्दील हो चुकी है। जिसका उद्देश्य अधिकाधिक लाभार्जन रह गया है। अभी हाल में भी लगातार जितनी घटनाएं हुई। सेना को जिस प्रकार विवादों में घसीटा गया ,इसकी तो कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था। यह सब बहुत चिंताजनक है कि हम इन सब चीजों से कैसे निजात पाएं। वैसे में गांधीवादी विचार और भी प्रासंगिक हो जाते हैं जो लोगो में राजनीतिक मूल्यबोध पैदा कर सकें।
महिला चरखा समिति का उद्देश्य महिलाओं में चरखा तथा अन्य गृह उद्योगों की सहायता में सामाजिक तथा सांस्कृतिक जागृति पैदा करना, महिलाओं में शिल्पकला का प्रचर करना, उद्योग एवं शिल्पकला के लिए महिला शिक्षिकाएं तैयार करना, उनके लिए कला तथा संगीत का वर्ग तैयार करना,पुस्तकालय तथा वाचनालय का संचालन, महिलाओं के लिए छत्रावास, उन्हें ग्राम सेवा की शिक्षा देना,ग्राम सेवा केंद्र स्थापित करना, उपयोगी साहित्य तैयार करना एवं उनमें स्वावलंबन की शक्ति एवं विश्वास पैदा करना है। वर्तमान में समिति जयप्रकाश शोध एवं अध्ययन केंद्र, प्रभावती महिला पुस्तकालय, प्रभा महिला शोध एवं अध्ययन केंद्र, प्रभा चरखा प्रशिक्षण ,गृह उद्योग विभाग, प्रकाशन तथा प्रभा-जयप्रकाश संग्रहालय जैसी महत्वपूर्ण गतिविधियां संचालित कर रही है। जिसके अंतर्गत गांधीजी , डॉ.राजेंद्र प्रसाद, विनोबाजी, और श्री जवाहरलाल नेहरु द्वारा प्रभावती को लिखे पत्रों को भी यहाँ संजो कर रखा गया है। साथ ही, 1955 से उसी भवन में रह रहे दंपति की स्मृतियों को ‘प्रभा- स्मृति’ नामक संग्रहालय के रूप में सुरक्षित रखा गया है। प्रभावती महिला पुस्तकालय की स्थापना 1973 में हुई थी। यह शहर में महिलाओं के लिए एकमात्र पुस्त्कालय है। जिसमेंलगभग15,000 पुस्तकें हैं। यह बिहार सरकार द्वारा विशिष्ट पुस्तकालय के रूप में वर्गीकृत एवं मान्यता प्राप्त है।
महिला चरखा समिति एक स्वआश्रयी संस्था है, तथापि इसे केंद्र सरकार ,राज्य सरकार तथा निजी संस्थानों से समय-समय पर सहयोग मिलता है। लोकनायक जयप्रकाश नारायण के वसीयत से गठित ट्रस्त द्वारा ,बृजकिशोर ट्रस्ट द्वारा, जयप्रकाश फांउडेशन ट्रस्ट,आदर्श शिक्षा ट्रस्ट,कोलकाता एवं कुछ व्यक्तियों द्वारा समिति को सहयोग मिलता है। अभी हाल ही में माननीय मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार जी द्वारा समिति को सुचारु रूप से संचालित करने के लिए 3 करोड रुपए की कॉर्पस राशि निर्गत की गई जिसके लिए हम उनके बहुत आभारी हैं। जयप्रकाश जी साथ आंदोलन में शामिल रहे राजनीतिक लोगों ने हमेशा समिति की यथासंभव मदद की है। जिसके लिए वे धन्यवाद के पात्र हैं परंतु मसला आर्थिक सहायता से अधिक उनकी राजनीतिक- सामाजिक उपेक्षा का है। हम लगातार बिहार के इस आंदोलन धर्मी पहचान को बचाए रखने को कृत संकल्प है।अपनी ऐतिहासिक विरासत को बचाए रखना बिहार के ही नहीं बल्कि भारत के हर नागरिक का कर्तव्य है परंतु नई पीढी में आज़ाद देश के महत्वपूर्ण नेताओं तथा प्रभावती जी जैसी महान गांधीवादी नेत्रियों के बारे में उपेक्षा दृष्टी आहत करती है। इस तरह धीरे धीरे हम अपने गौरवान्वित इतिहास को विस्मृत करते चले जाएंगे। इस गंभीर प्रश्न के प्रति हमें सचेत होने की आवश्यकता है।
इस समिति ने 25 वर्ष तो प्रभावती जी के जीवंकाल मे ही पूरा किया था। उन्होंने बड़े उत्साह के साथ इसकी रजत जयंती मनाई थी, हम सभी ने उसमें योगदान किया था। मैंने स्वयं अपनी एम.ए. की पढ़ाई पूरी करने के बाद यहाँ अध्यापन का कार्य किया। इस संस्था के साथ मेरा बहुत रागात्मक संबंध रहा है। क्योंकि हम सबने उनके साथ मिल के बहुत काम किया था। प्रभावती जी का अंतिम समय भी यहीं बीता। जयप्रकाश जी ने भी अपने जीवन के अंतिम दिन यहीं गुजारे। यह एक ऐतिहासिक स्थल है।
समिति को संपूर्णता से संचालित करने के साथ-साथ बिहार के अन्य स्थलों पर इसकी गतिविधियां संचालित हों,यह समय की भी जरुरत है। आज भी ग्रामीण परिवेश और शहरी स्लम क्षेत्र में महिलाओं और बच्चों के विकास और आत्म निर्भरता के लिए महिला चरखा समिति का उद्देश्य और कार्यक्रम मील का पत्थर साबित हो सकता है। आज के परिदृश्य में भी स्त्री में आत्म निर्भरता और आत्म विश्वास उत्पन्न कर ,उन्हें आर्थिक और मानसिक पराधीनता से मुक्ति दिलाने का ध्येय सामने रखकर यह संस्था कार्य कर रही है। समाज कल्याण विभाग द्वारा गाँव के बच्चों और महिलाओं के स्वास्थ्य और प्रशिक्षण पर विशेष ध्यान देने हेतु आंगनबाड़ी योजना भी चलाई गई है। बिहार में महिला चरखा समिति ने 1978 में इसका पहला सत्र चलाया और आजतक अनवरत जारी है।