कोरोना से हुई क्षति की भरपाई के लिए केंद्र सरकार के आत्मनिर्भर अभियान को स्वास्थ्य पेशेवर (health professional) अर्थव्यवस्था के लिए तो कारगर मानते हैं लेकिन 90 फीसदी मानते हैं कि कोयले की बजाय हरित ऊर्जा के इस्तेमाल को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए (Use of green energy instead of coal should be encouraged)। कोयले का इस्तेमाल बढ़ाने से स्वास्थ्य के लिए चुनौतियां बढ़ेंगी।
कोरोना संकट से निपटने के लिए केंद्र सरकार द्वारा घोषित आत्मनिर्भर अभियान में कोयला खनन के भी विस्तार की बात कही गई है। 50 कोयला खानों की नीलामी होनी है। इस मुद्दे पर क्लीन एयर क्लेक्टिव (Clean Air Collective) की तरफ से स्वास्थ्य पेशेवरों डाक्टरों, नर्सो आदि के बीच एक आनलाइन सर्वेक्षण किया गया। अभियान में कोयले खानों की नीलामी के प्रावधान की बात को महज 40 फीसदी उत्तरदाता ही जानते थे। 95 स्वास्थ्य पेशेवरों ने माना कि कोयले के इस्तेमाल को बढ़ावा देना खतरनाक होगा क्योंकि कोयले का इस्तेमाल वायु प्रदूषण को सबसे ज्यादा बढ़ाता है। जबकि 90 फीसदी लोगों ने कहा कि केंद्र सरकार को चाहिए कि वह इस अभियान में हरित ऊर्जा के इस्तेमाल को बढ़ाने के उपाय सुनिश्चित करे।
दरअसल, कोरोना महामारी के दौरान पूरी दुनिया में आर्थिक गतिविधिया कम होने से ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी आई है। पूरे विश्व के जलवायु विशेषज्ञ दबाव डाल रहे हैं कि सभी देशों की सरकारों को इस मौके का फायदा उठाना चाहिए और अब अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए जो नये प्रयास करें, उसमें हरित ऊर्जा को शामिल करें। कोयले को प्रोत्साहित
“आत्मनिभर भारत योजना का संपूर्ण उद्देश्य आत्मनिर्भर होना और ऐसी महामारियों से निपटने की हमारी क्षमता को बढ़ाना था। हालाँकि कोयले को उस योजना में शामिल नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि इससे निश्चित रूप से वायु प्रदूषण में वृद्धि होगी और स्थानीय स्तर पर और साथ ही भारत की व्यापक ऊर्जा नीति में परेशानियों में बढ़ोत्तरी होगी।”