नई दिल्ली, 18 सितंबर 2019 : कुपोषण के मामले (Malnutrition cases) तो कम हो रहे हैं, पर इससे जुड़ी बीमारियों का बोझ (The burden of malnutrition related diseases) बढ़ रहा है। भारतीय शोधकर्ताओं के एक ताजा अध्ययन में यह बात उभरकर आई है। विभिन्न राज्यों में वर्ष 1990 से 2017 के दौरान किए गए इस अध्ययन में पता चला है कि कुपोषण के मामलों में दो-तिहाई गिरावट हुई है। हालांकि, पांच साल से कम उम्र के बच्चों की 68 प्रतिशत मौतों के लिए कुपोषण एक प्रमुख कारक बना हुआ है।
बच्चों के अलावा, अलग-अलग उम्र के 17 प्रतिशत लोग भी कुपोषण जनित बीमारियों का शिकार पाए गए हैं। राष्ट्रीय दर की तुलना में कुपोषण के मामले राज्य स्तर पर सात गुना अधिक पाए गए हैं। सबसे अधिक कुपोषण राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार, असम, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा, नागालैंड और त्रिपुरा में पाया गया है।
इंडिया स्टेट-लेवल डिसीज बर्डन इनीशिएटिव (India State-Level Diseases Burden Initiative,) द्वारा किया गया यह अध्ययन शोध पत्रिका द लैंसेट चाइल्ड ऐंड एडोलेसेंट हेल्थ में प्रकाशित किया गया है। यह अध्ययन भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद, पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया तथा स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की संयुक्त पहल पर आधारित है।
इंडिया स्टेट-लेवल डिसीज बर्डन इनीशिएटिव के निदेशक और प्रमुख शोधकर्ता ललित डंडोना ने बताया कि
“लंबे समय तक पोषक तत्वों की कमी और बार-बार संक्रमण से बच्चों का संज्ञानात्मक, भावनात्मक और शारीरिक विकास प्रभावित होता है, जो कुपोषण के प्रमुख संकेतक माने जाते हैं। कुपोषण से होने वाली मौतों (Deaths due to malnutrition) के लिए जन्म के समय बच्चों का कम वजन मुख्य रूप से जिम्मेदार पाया गया है। बच्चों का समुचित विकास न होना भी कुपोषण से जुड़ा एक प्रमुख जोखिम है। उम्र के अनुपात में कम लंबाई और लंबाई के अनुपात में कम वजन बच्चों की मौतों के लिए जिम्मेदार कुपोषण जनित अन्य प्रमुख कारकों में
शोधकर्ताओं का कहना है कि भारत में 21 प्रतिशत बच्चों का वजन जन्म के समय से ही कम होता है। उत्तर प्रदेश में यह संख्या सबसे अधिक 24 प्रतिशत और सबसे कम मिजोरम में 09 प्रतिशत है। हालांकि, राष्ट्रीय स्तर पर जन्म के समय बच्चों के कम वजन के मामलों में 1.1 प्रतिशत की दर से वार्षिक गिरावट हुई है। राज्यों के स्तर पर यह गिरावट दिल्ली में सबसे कम 0.3 प्रतिशत और सिक्किम में सबसे अधिक 3.8 प्रतिशत देखी गई है।
वर्ष 2017 में बच्चों के कम विकास दर की राष्ट्रीय स्तर पर व्यापकता 39 प्रतिशत थी। गोवा में यह 21 प्रतिशत से लेकर उत्तर प्रदेश में 49 प्रतिशत तक दर्ज की गई है। सामाजिक आर्थिक रूप से पिछड़े राज्यों में यह दर सबसे अधिक पायी गई है। हालांकि, पिछले करीब ढाई दशक के दौरान इस दर में राष्ट्रीय स्तर पर 2.6 प्रतिशत की गिरावट हुई है। मेघालय में यह गिरावट सबसे कम 1.2 प्रतिशत और केरल में सबसे अधिक 04 प्रतिशत देखी गई है।
अध्ययन में यह भी पता चला है कि देश में अभी भी 33 प्रतिशत बच्चों का वजन सामान्य से कम होता है। मणिपुर में 16 प्रतिशत से लेकर झारखंड में 42 प्रतिशत बच्चे कम वजन से ग्रस्त पाए गए हैं। राष्ट्रीय स्तर पर बच्चों में एनीमिया की व्यापकता 60 प्रतिशत है, जो मिजोरम में 21 प्रतिशत से लेकर हरियाणा में 74 प्रतिशत तक देखी गई है। मिजोरम में 28 प्रतिशत से लेकर दिल्ली की 60 प्रतिशत महिलाओं समेत देश में कुल 54 प्रतिशत महिलाएं एनिमिया की शिकार हैं। हालांकि, एनिमिया के मामलों में 0.7 प्रतिशत की दर से गिरावट हुई है।
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद के निदेशक प्रोफेसर बलराम भार्गव ने बताया, "हम कुपोषण की निगरानी में वृद्धि के लिए महत्वपूर्ण कदम उठा रहे हैं। राष्ट्रीय पोषण संस्थान और दूसरी सहभागी संस्थाओं की कोशिश राज्यों से कुपोषण संबंधी अधिक से अधिक आंकड़े जुटाने की है, ताकि कुपोषण की निगरानी के लिए प्रभावी रणनीति बनायी जा सके। इस अध्ययन से विभिन्न राज्यों में कुपोषण में विविधता का पता चला है। इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि कुपोषण में कमी की योजना ऐसे तरीके से बनाई जाए जो प्रत्येक राज्य के लिए उपयुक्त हो।”
नवजात बच्चों में पोषण बनाए रखने में स्तनपान की भूमिका (The role of breastfeeding in maintaining nutrition in newborns) अहम होती है। बच्चों को सिर्फ स्तनपान कराने की दर 1.2 प्रतिशत बढ़ी है। शोधकर्ताओं का कहना है कि सामान्य से अधिक वजन वाले बच्चों की संख्या 12 प्रतिशत है, जिनकी संख्या विकसित राज्यों में सबसे ज्यादा है। लेकिन, धीरे-धीरे ऐसे बच्चों की संख्या पूरे देश में पांच प्रतिशत की दर से बढ़ रही है। सामान्य से अधिक वजन वाले बच्चों की संख्या मध्यप्रदेश में सर्वाधिक 7.2 प्रतिशत और मिजोरम में सबसे कम 2.5 प्रतिशत है।
शोधकर्ताओं का कहना है- इस अध्ययन से प्राप्त आंकड़े राष्ट्रीय पोषण मिशन के लक्ष्य को पूरा करने और कुपोषण के लिए जिम्मेदार कारकों (Factors responsible for malnutrition) में सुधार लाने में मददगार हो सकते हैं।
उमाशंकर मिश्र
(इंडिया साइंस वायर)