इतिहास के झरोखे से 59 साल का पंजाब केसरी
पंजाब केसरी की 59 साल की पत्रकारिता यात्रा, लाला जगत नारायण और रमेश चंद्र का बलिदान, और मीडिया की स्वतंत्रता की मिसाल – जानिए इस लेख में।

पंजाब केसरी: एक ऐतिहासिक विरासत की कहानी
- लाला जगत नारायण: गांधीवादी सोच और पत्रकारिता की मिसाल
- जेल से जनसेवा तक: लाला लाजपत राय और जगत नारायण का रिश्ता
- पत्रकारिता में बलिदान की मिसाल: लाला जगत नारायण और रमेश चंद्र
- खालिस्तान विरोधी विचारधारा और जान की कुर्बानी
- आपातकाल और सेंसरशिप के खिलाफ पंजाब केसरी की जंग
- विजय कुमार चोपड़ा का नेतृत्व और संपादकीय नीति
- ग्रामीण पत्रकारिता और पाठक संख्या बढ़ाने के उपाय
- नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा: संगोष्ठियों की आवश्यकता
- पंजाब केसरी की 59 साल की पत्रकारिता यात्रा, लाला जगत नारायण और रमेश चंद्र का बलिदान, और मीडिया की स्वतंत्रता की मिसाल – जानिए इस लेख में।
पंजाब केसरी अपने 60वें वर्ष में कर रहा है प्रवेश : एक मूल्यांकन
डॉ. रामजी लाल,
लाला जगत नारायण (31 मई 1899 – 9 सितंबर 1981) ने महात्मा गांधी के आह्वान पर असहयोग आंदोलन (1920-1922) में भाग लिया था। उस समय उनकी आयु 21 वर्ष थी। उन्हें लगभग ढाई वर्ष के कारावास की सजा सुनाई गई और उन्हें लाहौर जेल में रहना पड़ा। लाहौर जेल में उन्हें लाला लाजपत राय के निजी सचिव के रूप में काम करने का अवसर मिला।
जेल में लाला लाजपत राय और लाला जगत नारायण के बीच घनिष्ठ संबंध विकसित हो गए। राष्ट्रीय आंदोलन के विभिन्न चरणों में भाग लेने के कारण जगत नारायण 9 वर्ष तक जेल में रहे।
लाला लाजपत राय (जन्म 28 जनवरी 1865 - 17 नवंबर 1928) एक महान दूरदर्शी और करिश्माई नेता थे। वे लोगों के बीच 'पंजाब केसरी' के नाम से मशहूर हैं।
लाला जगत नारायण के लिए 'पंजाब केसरी' लाला लाजपत राय एक आदर्श व्यक्ति और एक अनुकरणीय नेता थे, जिन्होंने राष्ट्र के लिए अपना सब कुछ कुर्बान कर दिया।
उर्दू दैनिक हिंद समाचार (1948) का प्रकाशन शुरू किया गया। पंजाब केसरी लाला लाजपत राय की याद में हिंदी दैनिक पंजाब केसरी का पहला अंक 13 जून 1965 को प्रकाशित हुआ। 15 साल बाद, 1978 में पंजाबी दैनिक जग बानी प्रकाशित हुआ।
पंजाब केसरी समूह का विकास और भाषाई विस्तार - केसरी समूह (पीकेजी) के प्रकाशन: राज्य और शहर
वर्तमान में, पंजाब केसरी समूह (पीकेजी) के समाचार पत्र पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और जम्मू और कश्मीर के विभिन्न अन्य शहरों से प्रकाशित होते हैं - जालंधर (1965), दिल्ली (1983), अंबाला (1991), पालमपुर (2004), लुधियाना (2004), पानीपत (2006), हिसार (2006), जयपुर (2006), जम्मू (2007), मोहाली (2008), चंडीगढ़ (2009) और शिमला (2009)। पंजाब केसरी समूह का लोकप्रिय पंजाबी भाषा का समाचार पत्र जगबानी लुधियाना और जालंधर से प्रकाशित होता है। हिंद समाचार (उर्दू), पंजाब केसरी (हिंदी), और जगबानी (पंजाबी) के अलावा, पीकेजी का चौथा समाचार पत्र नवोदय टाइम्स (हिंदी) अन्य तीन हैं हिंदी में पंजाब केसरी, उर्दू में हिंद समाचार और पंजाबी भाषा में जगबानी।
पंजाब केसरी समूह (पीकेजी) के मुद्रित समाचार पत्रों के साथ-साथ इन्हें पंजाब केसरी डॉट कॉम (दिल्ली) और पंजाब केसरी डॉट इन (जालंधर) पर डिजिटल संस्करण में भी पढ़ा जा सकता है।
लाला जगत नारायण व उनके पुत्र रमेश चंद्र की हत्या : बलिदान की पराकाष्ठा
लाला जगत नारायण समाचार पत्र के मालिक व संपादक ही नहीं अपितु वह एक राजनेता भी थे. वह विधायक (1952-1962), पंजाब के मंत्री और महासचिव और साथ ही राज्यसभा के सदस्य (1964-1970) रहे. 2013 में, मनमोहन सिंह ने उनके नाम पर एक स्मारक डाक टिकट जारी किया लाला जगत नारायण खालिस्तानी आंदोलन के कटु आलोचक थे. वह खालिस्तान आंदोलन को आतंकवादी, हिंसक, हिंदू-सिक्ख एकता विरोधी, व राष्ट्र विरोधी मानते हुए निडर व निर्भीक हो कर लिखते थे. परिणामस्वरूप वह भिंड़रावाला के आतंकवादी दस्तों की हिट लिस्ट में थे और आतंकवादियों द्वारा उनकी 9 सितम्बर सन् 1981 उनकी हत्या कर दी. उनकी हत्या से समस्त देश शोकाकुल हो गया. जालंधर सहित पंजाब के सरकारी कार्यालय और बाजार बंद रहे. राष्ट्र और पंजाब के राजनेताओं सहित लगभग एक लाख लोगों का अथाह जनसमूह अपने प्रिय राजनेता और जनता की आवाज उठाने महान पत्रकार के अंतिम दर्शन करने के लिए शव यात्रा में सम्मिलित हुए. पत्रकारिता के इतिहास में यह अतुलनीय य़ादगार है.
भारत के प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने लाल जगत नारायण की स्मृति में सन् 2013 में डाक टिकट जारी करके सम्मानित किया था.
लाला जगत नारायण की मृत्यु के पश्चात उनके पुत्र रमेश चंद्र ने पंजाब केसरी समूह की बागडोर संभाली. अपने पिता की भांति उन्होंने भी आतंकवाद की आलोचना जारी रखी. परिणाम स्वरूप आतंकवादियों ने उनको भी जान से मारने की धमकियां जारी रखी और 12 मई, 1984 को रमेश चंद्र के शरीर को 64 गोलियां मारकर छलनी कर दिया और वह भी अपने पिता की भांति शहीद हो गए.
दुनिया में पत्रकारिता के इतिहास में शायद ऐसा कोई उदाहरण नहीं है जहां एक पिता और पुत्र को जनता की आवाज उठाने के लिए अपने प्राणों की आहुति देनी पड़ी हो. वास्तव में पिता-पुत्र का बलिदान पत्रकारिता के इतिहास के साथ-साथ भारत के आधुनिक इतिहास का भी गौरवशाली अध्याय है.
समकालीन पत्रकारों और समाचार पत्रों के प्रबंधकों को लाला जगत नारायण व उनके पुत्र रमेश चंद्र की शहादत से यह सबक सिखाना चाहिए कि उनकों अपनी आवाज को निर्भीक स्वतंत्रऔर ईमानदारी से बुलंद करना चाहिए.परंतु वर्तमान में इस प्रकार के उदाहरण बहुत कम है. अधिकांश समाचार-पत्र समूहों के लिए पत्रकारिता पैसा कमाने का धंधा बनती जा रही है, जो भारतीय लोकतंत्र के लिए अच्छा संकेत नहीं है.
रमेश चंद्र की मृत्यु के पश्चात विजय कुमार चोपड़ा पंजाब केसरी समूह के प्रधान संपादक एवं प्रबंध निदेशक हैं. पंजाब केसरी समूह के स्तंभकारों में मुझे, पूनम आई कौशिक, नीरजा चौधरी, कुलदीप नैयर, चंद्र त्रिखा, वीरेंद्र कपूर, बलबीर पुंज, मनमोहन शर्मा इत्यादि के संपादकीय पृष्ठ पर आलेख अधिक पसंद आते थे.
विजय कुमार चोपड़ा के द्वारा लिखे गए संपादकीय अनेक बार आंकड़ों और तिथियों के आधार पर पुष्टि करते हुए लिखे जाते रहे हैं. राजनीति विज्ञान के शोधार्थियों के लिए यह संपादकीय पृष्ठ अत्यंत लाभकारी सिद्ध हुए हैं.
आपातकालीन स्थिति और पंजाब केसरी
आपातकाल की घोषणा होने के तुरंत बाद समाचार पत्रों पर भारत सरकार के द्वारा सेंसरशिप लगा दी गई. लाला जगत नारायण ने सेंसरशिप का विरोध किया और उनको गिरफ्तार कर लिया गया.
पंजाब केसरी समूह के समाचार पत्रों का प्रकाशन बंद करने के लिए सरकार ने बिजली काट दी. लेकिन ट्रैक्टर से प्रिंटिंग प्रेस चलाकर और अखबार छापकर उन्होंने जनता को आश्चर्यचकित कर दिया और सरकार को संदेह में डाल दिया. आपातकाल के दौरान पंजाब केसरी के प्रथम पृष्ठ पर भड़काऊ रंगीन तस्वीरें भी प्रकाशित होने लगी जिसके परिणाम स्वरूप पाठकों की संख्या व समाचार पत्र के सर्कुलेशन में अभूतपूर्व वृद्धि हुई. उस समय यह व्यंग सामान्य हो गया था कि जब पंजाब केसरी का रंगीन तस्वीरों का पहला पृष्ठ छपता था तो इंद्रलोक हिल जाता था.
पंजाब केसरी समूह के समाचार पत्र केवल छह राज्यों से प्रकाशित होते हैं. यही कारण है कि अन्य हिंदी समाचार पत्रों की तुलना में इसकी प्रतियां कम प्रकाशित होती हैं और पाठकों की संख्या भी कम है.
भारत के समाचार पत्र रजिस्ट्रार के अनुसार दिसंबर 2022 में पंजाब केसरी हिंदी संस्करण के पंजाब, हरियाणा व हिमाचल प्रदेश में पाठकों की संख्या 1.138 मिलियन थी. इसलिए हमारा अभिमत है कि पंजाब केसरी के संस्करण अन्य वंचित राज्यों से भी प्रकाशित किए जाएं और स्थानीयकरण में वृद्धि की जाए. प्रतिद्वंदी समाचार पत्रों का मुकाबला करने हेतु यह एक महत्वपूर्ण कदम सिद्ध होगा. समाचार पत्रों की विश्वसनीयता को बढ़ाने के लिए खोजी, ईमानदार व मेहनती पत्रकारों को वरीयता दी जाए ताकि पाठकों को तथ्यपरक व निष्पक्ष पढ़नीय सामग्री उपलब्ध हो सके.
भारतवर्ष की अधिकांश जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती हैं. समाचार पत्र के पाठकों की संख्या बढ़ाने के लिए ग्रामीण क्षेत्र संबंधित समस्याओं को समाचारपत्रों में स्थान देने की आवश्यकता है. पंजाब केसरी के स्थापना दिवस, लाला जगत नारायण एवं रमेश चंद्र की जयंती एवं पुण्यतिथि पर ब्लॉक स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक संगोष्ठियां आयोजित की जानी चाहिए ताकि आने वाली पीढ़ियां उनके जीवन, चिंतन और शहादत से परिचित हो सकें तथा देशभक्ति और समाज सेवा की प्रेरणा ग्रहण कर सकें.
(लेखक समाज विज्ञानी एवं हरियाणा के करनाल स्थित दयाल सिंह कॉलेज के पूर्व प्राचार्य हैं।)