समय एक बहुत लम्बी सड़क है
और वे चले जा रहे हैं
जो बहुत हिम्मती हैं
उन्होंने अपने बोरे सरों पर लाद लिए हैं
जो बहुत मासूम बच्चे हैं
वे पिताओं की उंगली थाम निकल पड़े हैं सैकड़ों किलोमीटर के सफर पर
जो बहादुर स्त्रियाँ हैं
वे बिना रुके चलती जा रही हैं
हम समय के बुजदिल
अपने सुरक्षित घरों की खिड़कियों से देख रहे नीला आसमान
और कोफ्त कर रहे
क्यों निकल पड़ी है ये अंतहीन यात्रा अपने बच्चों को घर में समेटे हम क्रोध में हैं
कि वे क्यों चलते आ रहे हमें बीमार करने
यह मनुष्यता की यात्रा है
दो पैरों पर ही चलेगी
ये हवाई जहाज से नहीं चलती
ये सड़कों पर रेला बन कर बहेगी
राजमार्गों पर नहीं
जब जीतेगा आदमी तो इन्हीं वनफूलों से महकेगी दुनिया
हम तो गमले में खिले लोग हैं
वे ओलों में बिछते और सर उठाते अन्नदाता
वे लाठियाँ खाते हैं
जीवनधारा दो कदम और आगे बढ़ती है
वे चल पड़ते हैं
चल पड़ता है महासमुद्र
वे रोते हैं
गीली हो जाती है पृथ्वी
वे गुस्से में आते हैं
भूडोल हो जाता है
सिंहासन हिल जाते हैं
फिलहाल वे चले जा रहे हैं
आपदा से निडर
वे मृत्यु और भूख का सामना करते
कहते हैं चिल्लाकर
राजधानी! अब हम कभी नहीं आएंगे तुम्हारे पास
उनके लिए राजपथ बन्द हैं
उनके पाँव ज़ख्मी हैं
हृदय घायल
वे थके हैं, पर पस्त नहीं
वे शहर बनाने वाले, वे सड़क बनाने वाले, पटरियां और पुल बनाने वाले, घर बनाने वाले, अन्न उगाने वाले
उनके लिए शहर का दर बन्द है
सड़कों पर उगा दिए गए हैं लोहे के कांटे
कोई पुल उनके घर तक नहीं जाता
वे खुद अपनी राह बनाते हैं
बरसों से, सदियों सेवे ज़िन्दगी की लड़ियाँ सँवारते हैं
छलनी सीना लिए
वे आज जा रहे हैं
संध्या नवोदिता