पाम कोर्ट (लन्दन) निवासी श्रीमती सुनन्दा पी. तंवर की गिनती आज के उन गिने-चुने पत्रकारों में की जा सकती है जो पत्रकारिता को एक प्रोफेशन नहीं बल्कि एक मिशन मानते हैं। चूंकि “हस्तक्षेप” विविध स्वरों को स्थान देता है, इसलिए उनका अलग दृष्टिकोण का यह लेख भी पढ़ें -
एक प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी से जब एक प्रतियोगी परीक्षा में अंग्रेजों द्वारा भारत में राज करने की नीति की व्याख्या करने के लिए कहा गया, तो इसके उत्तर में उन्होंने केवल दो शब्दों में ही अंग्रेजों की नीति की पूरी व्याख्या कर दी और उनके यह दो शब्द थे ‘डिवाइड एंड रूल’।
अभी कुछ माह पूर्व ही हुए दिल्ली के विधानसभा चुनाव इसका एक सटीक उदाहरण हैं। इन चुनावों में प्रधानमंत्री व उनके दर्जनों केंद्रीय मंत्रियों सहित पूरी की पूरी भाजपा सरकार को अपने जी-तोड़ परिश्रम के बावजूद भी जब अपनी हार बिल्कुल साफ-साफ दिखाई देने लगी थी तो फिर इस तथाकथित हिंदूवादी पार्टी ने फ़ौरन ही अपने हिंदू-मुसलमान हथियार का इस्तेमाल पूरी ‘बेशर्मी व बेहयाई’ के साथ किया था।
सरकार में हिमाचल के एक युवा मंत्री अनुराग ठाकुर ने ‘गद्दारों’ को गोली मारने के नारे अपनी चुनावी सभाओं में सरेआम लगवाए थे। इसके अलावा मॉडल टाउन से भाजपा के एक प्रत्याशी कपिल मिश्रा ने भी सार्वजनिक रूप से टेलीविजन चैनलों को एक बयान देकर कहा था कि चुनाव वाले दिन दिल्ली की सड़कों पर ‘हिंदुस्तान-पाकिस्तान’ होगा और इस पर भी विडंबना देखिए कि ना तो भाजपा की सरकार ने और ना ही अपनी निष्पक्षता का बार-बार स्वंय
खैर, इन चुनावों का परिणाम फिर क्या निकला था यह तो अब सभी जानते हैं, किंतु भाजपा की इस प्रकार की लगातार हरकतों का हमारे युवाओं व समाज पर क्या प्रभाव पड़ रहा है, इसका कुछ अंदाजा हम अभी हाल में ही पालघर (महाराष्ट्र) में हुई ‘मॉब लिंचिंग’ की एक ताजा घटना से बहुत आसानी से लगा सकते हैं।
भाजपा के कुछ नेताओं व इसके पालतू न्यूज़ एंकरों ने मिलकर पूरे जोर-शोर से भाजपा को एक हिन्दू संस्कृति व साधू-संत रक्षक पार्टी के रूप में प्रचारित करना तथा महाराष्ट्र सरकार का विरोधी बताना शुरू कर दिया है।
जबकि ‘आज की भाजपा’ के पिछले कुछ वर्षों के कारनामों को देखते हुए तो यह अत्यंत ही हास्यास्पद बात है।
वर्ष 2008-09 में गुजरात की राजधानी गांधीनगर तथा अहमदाबाद में लगभग 400 हिंदू मंदिरों को भाजपा सरकार ने पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया गया था, और जब तत्कालीन विश्व हिंदू परिषद के अध्यक्ष प्रवीण तोगड़िया व हिंदू संत आशारामजी बापू के शिष्यों ने इसके विरोध में आवाज उठाई तो इसका परिणाम आज सबके सामने है। दोनों ही महापुरुषों को पूरी तरह से नेस्तनाबूद करने का प्रयत्न किया गया है।
जी हाँ, इस युग के महान हिंदू संत पूज्य आशाराम जी बापू एवं उनके पूरे परिवार के विरुद्ध किये गये इस षड्यंत्र में भाजपा के दो शीर्ष नेताओं व इनके चहेते पुलिस अधिकारी राकेश अस्थाना का सबसे बड़ा हाथ है। मैंने स्वयं भारत आकर इस मामले का गहन अध्ययन किया है तथा एक जिम्मेदार पत्रकार होने के नाते ही मैं यह सब बातें कह रही हूँ। यदि इंडिया की कोई भी जांच एजेंसी 21वीं सदी के इस सबसे बड़े राजनैतिक षडयंत्र के बारे में कोई जांच करना चाहे तो मैं उसे इस विषय में उसे कई पुख्ता प्रमाण भी उपलब्ध करवा सकती हूँ।
इसके बाद वर्ष 2017-18 में काशी (वाराणसी में) लगभग 250 से भी अधिक अति प्राचीन शिव मंदिरों को पूर्ण रूप से धूल-धूसिरत कर दिया गया तथा सैकड़ों खंडित शिवलिंगों को आम जनता की नजरों से बचाने के लिए एक गंदे नाले में फेंक दिया गया। यह सब जानकारी मुझे काशी के एक 88 वर्षीय प्रकांड विद्वान एवं ज्योतिषी श्री बटुकनाथ शास्त्री जी ने स्वयं दी है। उन्होंने बताया कि गंदे नाले में फेंके गए दर्जनों खंडित शिवलिंग चमत्कारिक रूप से एक ही स्थान पर आकर एकत्रित हो गए थे, जिन्हें फिर हमने शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद के सहयोग से निकलवा कर तथा मंत्रोच्चारण व गंगाजल से पवित्र करके एक स्थान पर ही रखवा कर उनकी दैनिक पूजा-अर्चना व भोग का प्रबंध कर दिया है।
और हाँ, अपने आपको हिंदू संस्कृति व हिंदू साधुओं का एकमात्र ठेकेदार घोषित करने वाली ‘आज कि भाजपा’ यह तो जरूर जानती ही होगी कि ‘गौ-माता’ का ‘हिंदुओं’ के जीवन तथा हिन्दू संस्कृति में क्या स्थान है, और बेशक इसीलिए अपनी जान की बाजी लगाकर भी कुछ उत्साही हिंदू युवक कसाईखाने ले जा रही गायों को कसाइयों से छुड़वाने का सदैव प्रयत्न भी करते रहे हैं। देश का हिंदू समाज ऐसे वीर व उत्साही युवकों का सम्मान व उत्साहवर्धन भी सदैव से करता आ रहा था, किंतु ‘आज की भाजपा’ के शीर्ष नेतृत्व ने तो ऐसे सभी ‘गौरक्षक युवकों’ को सार्वजनिक रूप से ना केवल गुंडा घोषित कर दिया है बल्कि इन सबके खिलाफ सख्त कार्रवाई करने के लिए सरकार के गृहमंत्रालय ने सभी राज्य सरकारों को भी एडवाइजरी जारी कर दी है, इसके परिणाम स्वरूप अब प्रतिदिन 50 से 60 हजार गायें अधिक कटने भी लगी हैं।
खैर, मुझे सिर्फ इतना ही कहना है कि है ‘आज की भाजपा’ अब डॉ० श्यामा प्रसाद मुखर्जी, पंडित दीनदयाल उपाध्याय अथवा श्री अटल बिहारी वाजपाई जी की भाजपा नहीं रह गई है, यह तो अब पूरी तरह से ही अंग्रेजों की नीतियां अपनाकर येन-केन-प्रकारेण पूरे देश को अपनी मुट्ठी में दबोचने के लिए आतुर कुछ पूंजीपतियों व राजनेताओं का अपना एक निजी गिरोह बन कर रह गई है।
वर्ष 1928 में भारतवासियों के हृदय में सरकार के विरुद्ध बढ़ते आक्रोश को देखते हुए अंग्रेजी सरकार ने उस ‘आक्रोश’ को कुचलने के लिए एक बहुत बड़ा प्रोग्राम चलाया था। इसके तहत हजारों निरपराध युवकों, बुद्धिजीवियों व नागरिकों को अंग्रेज सरकार के विरुद्ध ‘गुप्त तख्तापलट आंदोलन’ में शामिल होने के आरोप लगा-लगा कर उन्हें जेलों में ठूंस दिया गया था।
उस समय शहीदे आजम भगत सिंह ने भी जनवरी 1928 में ‘किरती’ में प्रकाशित अपने एक लेख में इस विषय में लिखा था कि- ‘जब आजादी का कोई आंदोलन सफल तरीकों पर चलता दिखाई दे तो इसे असफल करने के लिए इसके सेवकों पर सबसे बड़े आरोप जो लगाये जाते हैं, वह यह होते हैं- 1. कि यह षडयंत्र कर रहे हैं और 2. यह धर्म विरोधी हैं।’
‘आज की भाजपा’ सरकार का ‘देशभक्ति’ का उनका अपना फार्मूला और क्रियान्वयन क्या अंग्रेजों के इस ‘तख्तापलट आंदोलन’ की जीरोक्स कॉपी नहीं है?
-सुनन्दा पी तंवर
अंतर्राष्ट्रीय पत्रकार एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता
लंदन, यू,के
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