Hastakshep.com-आपकी नज़र-Editorial in Deshbandhu today-editorial-in-deshbandhu-today-पेट्रोल डीजल की मार-pettrol-ddiijl-kii-maar-पेट्रोल-pettrol-पेट्रोल-डीजल की मूल्यवृद्धि-pettrol-ddiijl-kii-muulyvrddhi

Modi government getting rich by persecuting the public

 देशबन्धु में संपादकीय आज | Editorial in Deshbandhu today

पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों से देशवासी चाहे जितने परेशान हों लेकिन भारत सरकार को इससे भरपूर फायदा हो रहा है। शायद यही कारण हो कि सरकार इनकी कीमतें घटाने के लिये तैयार नहीं है और लोगों की मजबूरी का फायदा उठाकर खूब धन बटोर लेना चाहती हैं। सरकारी आंकड़ों से जो बात सामने आई है कि केन्द्र सरकार बढ़े दामों से खूब मालामाल हो रही है।

केन्द्र सरकार द्वारा पेट्रोलियम उत्पादों पर जो शुल्क लिया जाता है, उसके आंकड़े केन्द्रीय वित्त मंत्रालय के अंतर्गत लेखा महानियंत्रक द्वारा जारी किये गये हैं। इन आंकड़ों के अनुसार अप्रैल से जुलाई 2021 के दौरान पेट्रोलियम पदार्थों पर उत्पाद शुल्क का संग्रहण एक लाख करोड़ रुपये रहा। यह पहले के मुकाबले 48 प्रतिशत की बढ़ोतरी है। पूरे वित्त वर्ष के दौरान की ऑयल बॉन्ड देनदारी से यह चार गुना अधिक है। पिछले साल की इसी अवधि में यह संग्रह 67,895 करोड़ रु. था।

वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) लागू होने के पश्चात उत्पाद शुल्क केवल पेट्रोल, डीज़ल, एटीएफ और प्राकृतिक गैस पर लगता है और

बाकी सारी वस्तुएं जीएसटी के तहत आ गयी हैं।

वित्त वर्ष 2021-22 के पहले चार माह में 32,492 करोड़ की बढ़ोतरी हुई है जो पूरे साल की 10,000 करोड़ रु. की तेल बॉन्ड देनदारी से चार गुना अधिक है। कांग्रेस सरकार ने पेट्रोलियम पर सब्सिडी देने के लिये तेल बॉन्ड जारी किये थे।

पिछले 7 वर्षों से बढ़ती ही जा रही हैं पेट्रोल-डीजल की कीमतें

उल्लेखनीय है कि पेट्रोल-डीजल की कीमतें पिछले 7 वर्षों से बढ़ती ही जा रही है। शायद ही कोई हफ्ता ऐसा जाता होगा जब इनकी कीमतों में वृद्धि न होती हो। देश के ज्यादातर शहरों में इनकी प्रति लीटर कीमत शतक यानी 100 रुपये के पार हो चुकी है। सरकार से कई बार इनकी कीमतें घटाने के बाबत मांग की गयी लेकिन सरकार के कानों पर जूं तक नहीं रेंगती।

सरकार को इन बढ़े हुए दामों से जैसा मुनाफा हो रहा है, सम्भवत: इसलिये सरकार की यह कतई इच्छा नहीं है कि वह इन्हें कम करे। चूंकि पेट्रोल-डीजल की कीमतें ही अन्य सारी वस्तुओं की कीमतें बढ़ाने की जिम्मेदार होती हैं, इसके कारण देश में महंगाई लगातार बढ़ती जा रही है।

नरेन्द्र मोदी सरकार कारोबारियों की मित्र समझी जाती है अत: उसकी दिलचस्पी महंगाई कम करने की नहीं है। लोगों को राहत देना उसका मकसद कभी भी नहीं रहा है बल्कि वह तो अपने मित्रों को हर हाल में मदद करती आई है। इसलिये सरकार से ऐसी कोई उम्मीद लगाना फिजूल है।

India sells the most expensive fuel among neighboring countries.

यह वाकई बड़ा दुखद है कि पड़ोसी देशों में सर्वाधिक महंगा ईंधन भारत में ही बिकता है। भारत से भी कमजोर आर्थिक हालत वाले देश अपने नागरिकों को हमसे सस्ता तेल उपलब्ध करा रहे हैं। कई देश इसके लिये सब्सिडी तक दे रहे हैं। इतना ही नहीं, अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें घटी हैं। पिछले कुछ वर्षों में तो क्रूड ऑयल की कीमत अपने निम्नतम स्तर पर है। इतना सस्ता कच्चा तेल पाने के बावजूद उसे महंगे दामों में बेचना किसी भी सरकार के अन्यायी और क्रूर होने का पर्याप्त सबूत है क्योंकि पेट्रोल-डीजल महंगा होने से हमारे देश में परिवहन लागत लगातार बढ़ रही है जिसके चलते कई उद्योग-धंधों पर तक संकट आ गया है और बेरोजगारी बढ़ चली है।

सरकार का अपना प्रशासकीय खर्च बढ़ता जा रहा है। यह खर्च वह हरसम्भव स्रोतों के जरिये निकाल रही है। ऐसा नहीं है कि सरकार को इसका भान नहीं है लेकिन वह जानती है कि प्रतिरोध करने वाली कोई शक्ति ही नहीं बची है। कभी पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस आदि की बढ़ती कीमतों को लेकर पूर्ववर्ती सरकारों के खिलाफ प्रमुख विपक्षी पार्टी होने के नाते धरना-प्रदर्शन करने वाली भारतीय जनता पार्टी अब इस पर चर्चा तक नहीं करती।

सस्ते ईंधन हेतु भाजपा को सत्ता में लाने का आग्रह करने वाले योग गुरु बाबा रामदेव व आध्यात्मिक गुरु श्रीश्री रविशंकर और बढ़ती कीमतों पर शोर मचाने वाले फिल्म स्टार अमिताभ बच्चन, अनुपम खेर जैसे लोग आज पूर्णत: मौन हैं। सरकार को चाहिये कि वह अपनी कमाई की परवाह न कर पेट्रोल-डीजल, रसोई गैस की कीमतें घटाकर जनता को अविलम्ब राहत दे!

आज का देशबन्धु का संपादकीय (Today’s Deshbandhu editorial) का संपादित रूप साभार.

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