मोदी के नेतृत्व में भारत सरकार का जम्मू-कश्मीर पर खुफिया एजेंडा पर्दाफाश
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता एवं स्टेट लीगल एड कमेटी के कार्यकारी चेयरमैन प्रो.भीमसिंह ने भारत सरकार के अधिवक्ता द्वारा सुप्रीम कोर्ट में जम्मू-कश्मीर सरकार के मौलिक अधिकार के सम्बंध में जवाबी हलफनामा दाखिल न करने पर आश्चर्य प्रकट नहीं किया। सरकार के अधिवक्ता ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि हम सुप्रीम कोर्ट में अनुच्छेद 35 (ए) के खिलाफ जवाबी हलफनामा दाखिल नहीं करेंगे। अनुच्छेद 35(ए) को 1954 में तत्कालीन राष्ट्रपति ने एक अध्यादेश द्वारा भारतीय संविधान में शामिल किया था, क्योंकि अनुच्छेद 370 राष्ट्रपति को यह अधिकार देता है कि वे अनुच्छेद 370 के किसी भी प्रावधान में संशोधन कर सकते हैं।
प्रो.भीमसिंह ने कहा कि भाजपा का, जो कि जनसंघ की साख है, प्रतिबद्धता थी कि वह भारतीय संविधान से अनुच्छेद 370 को हटाएगी, लेकिन भाजपा इस मामले में बेनकाब हो गयी है, जो अनुच्छेद 370 में संशोधन करने की हिम्मत किये बगैर उसके निर्देशों का पालन कर रही है। भाजपा अनुच्छेद 370 व अनुच्छेद 35 (ए) की वैधता को चुनौती करने वाली याचिकाओं की, ना तो भाजपा ने समर्थन या ना ही मदद की।
सरकारी अधिवक्ता ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि भारत सरकार कोई जवाबी हलफनामा दाखिल नहीं करेगी और मुकदमे में बहस करेगी। उन्होंने यह नहीं बताया कि सरकार का इसके सम्बंध में क्या स्टैंड है।
प्रो.भीमसिंह ने घोषणा की कि अनुच्छेद 370 में संशोधन व अनुच्छेद 35 (ए) से ‘ए‘ को हटाने के लिए याचिका दाखिल करेगी। उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 35(ए) के कारण ही जम्मू-कश्मीर के लोग, जो कि भारतीय नागरिक हैं, अपने मौलिक अधिकारों से वंचित हैं। उन्होंने कहा कि मैंने खुद आठ साल से ज्यादा समय तक डिटैंशन लॉ के तहत जेलों में काटें हैं, क्योंकि जम्मू-कश्मीर के लोगों (भारतीय नागरिकों) को मौलिक अधिकार प्राप्त नहीं हैं।