किसी भी देश की जनता की जिम्मेदारी उस देश की सरकार की होती है। जनता के लिए काम करके कोई सरकार उस पर कोई एहसान नहीं करती, यह तो जनता द्वारा सौंपी गई उसकी जिम्मेदारी का ही एक हिस्सा होता है। सरकार जनता से विभिन्न टैक्सों के रूप में जो पैसा लेती है, उसी पैसे से सरकार के साथ ही उसके विभागों का खर्चा भी चलता है। सरकार विभिन्न योजनाओं के माध्यम से जो पैसा जनता पर खर्च करती है वह भी पैसा जनता का ही होता है।
कोरोना कहर में भी जो खर्च केंद्र सरकार के साथ ही राज्यों से सरकारों ने खर्च किया है या फिर कर रही हैं यह भी जनता का ही है। जो पैसा मजदूरों के खाते में डाला है वह भी जनता का ही है। किसानों को जो सालभर में छह हजार रुपये केंद्र सरकार दे रही है यह भी जनता का ही है। सरकार के मंत्री जो विदेश में घूमते हैं या फिर दूसरे खर्चे करते हैं। यह भी पैसा जनता का ही है। यानी कि सत्ता में बैठे जितने भी राजनेता हैं, इनका जो भी खर्च होता है वह सब जनता ही वहन करती हैं। यहां तक सरकारी विभागों में जो भी खर्च होता है यह सब जनता के पैसे ही चलता है। यहां तक कि सरकारें जो पैसा अपने प्रचार में खर्च करती है, मीडिया को मैनेज करने में खर्च करती है वह भी सब जनता का ही होता है।
मोदी सरकार में दलाल मीडिया ने यह माहौल बना रखा है कि जैसे प्रधानमंत्री अपनी कुछ जिम्मेदारी निभाकर जनता पर
विभिन्न राज्यों में फंसे मजदूरों को विभिन्न परेशानियों में रोके रखना भी केंद्र सरकार की विफलता ही मानी जाएगी। हां अब जब लॉक डाउन में मजदूर हंगामा करने लगे तो केंद्र सरकार की समझ में आई। विभिन्न राज्यों में फंसे मजदूरों को उनके घरों को भेजने के निर्देश राज्य सरकारों को दिये हैं पर दूर-दूराज क्षेत्रों में फंसे मजदूरों के लिए स्पेशल ट्रेनें न चलाने की वजह से अभी भी मजदूरों के सामने बड़ी मुश्किलें हैं।
तरह-तरह की वीडियो देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि मजदूर कितने परेशान हैं। मजदूर ही नहीं नौकरीपेशा आदमी के सामने बड़ा संकट आन पड़ा है। भले ही प्रधानमंत्री ने किसी को नौकरी न निकालने की बात कही है लॉक डाउन के बाद देश में बड़े स्तर पर लोगों की नौकरी जाने वाली हैं।
लॉक डाउन में भी जानी शुरू हो गई हैं। सरकार लॉक डाउन का पैसा न काटने की बात कर रही है, पर जमीनी स्थिति यह है कि बड़े स्तर पर लोगों को मार्च का वेतन भी नहीं मिला है। यदि कुछ लोगों को मिला है तो लॉक डाउन घोषित करने की तारीख तक का। आगे की कोई उम्मीद नहीं है। मतलब नौकरीपेशा लोगों में भी बड़े स्तर पर लोगों के सामने भुखमरी की स्थिति पैदा हो गई है। बच्चों की फीस का दबाव अलग सके।
किसानों की फसल अलग से बर्बाद हो रही है। चार मई से काफी जिलें को कुछ रियायतें दी गई हैं पर लोगों के सामने कितनी बड़ी चुनौती है यह तो समय ही बताएगा। प्रधानमंत्री लोगों से आत्मनिर्भर बनने की बात कर रहे हैं। यह नहीं बता रहे हैं लोग इस संकट के दौर में कैसे आत्मनिर्भर बनेंगे ? रिजर्व बैंक का रिजर्व पैसा भी निकाल लिया गया है।
देश की स्थिति यह है कि कर्मचारियों का बड़े स्तर पर पीएफ का पैसा निकालने की खबरें भी मिल रही हैं। मतलब देश की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से लड़ख़ड़ा गई है। ऐसे में मेहुल चौकसी, विजया माल्या का पैसा बट्टे खाते में डाल कर प्रधानमंत्री देश को क्या संदेश देना चाहते हैं।
हां मोदी सरकार चार मई को कोरोना वारियर्स को सम्मान देने के नाम पर विभिन्न अस्पतालों पर सेना से पुष्प वर्षा कराने जा रही है। मुझे नहीं लगता कि इस संकट के समय डॉक्टर और नर्सें इस तरह के सम्मान पसंद करेंगे। ये लोग यही चाहेंगे कि उन्हें इस लड़ाई में उचित मेडिकल उपकरणों के साथ ही उन्हें समुचित सुविधाएं दी जाएं। जो पैसा पुष्पवर्षा से खर्च होगा वह कोरोना से लड़ी जा रही लड़ाई में खर्च हो।
जो लोग यह कहते-कहते नहीं थकते कि प्रधानमंत्री ने लोगों से कोरोना बचा लिया है। दूसरे देशों की अपेक्षा हमारे देश में बहुत कम मामले सामने आ रहे हैं। देश में कोरोना कहर के लिए तब्लीगी जमात को दोषी ठहरा रहे हैं। कोरोना की लड़ाई को जो तब्लीगी जमात ने कमजोर किया है। मैं इसके लिए तब्लीगी जमात से कम जिम्मेदार केंद्र सरकार को नही मानता हूं।
जब चीन के वुहान शहर में कोराना के बाद अमेरिका, ईरान, स्पेन में कोरोना कहर बरपाने लगा था तो मोदी सरकार ने विदेश से आने वाले लोगों पर प्रतिबंध क्यों नहीं लगाया ? यदि आ भी रहे थे तो उनका टेस्ट क्यों नहीं कराया ? यदि आ भी गये थे तो देश की राजधानी में होने वाले कार्यक्रम को अनुमति क्यों दी गई ? यदि अनुमति भी दे दी गई तो फिर कार्यक्रम क्यों होने दिया गया ? देश की राजधानी में इतना बड़ा कार्यक्रम होता रहा और मोदी सरकार राजनीतिक रोटियां सेंकती रही।
जगजाहिर है कि विदेश से जो तब्लीगी आये हैं वे फरवरी के अंत और मार्च के शुरू में आये हैं। तो यह माना जाए कि मोदी सरकार ने कोरोना की लड़ाई को भी हिन्दू-मुस्लिम का रूप देने के लिए तब्लीगी जमात को कार्यक्रम होने दिया गया। विदेश से आये तब्लीगी विभिन्न राज्यों की मस्जिदों तक पहुंच गये और सरकारों के सारे तंत्रों को पता नहीं चला। ऐसे में तो कोई आतंकी संगठन देश में कुछ भी करा सकता है। वैसे भी कई आतंकी तब्लीगी जमात से जुड़े रहे हैं।
इस समय देश का सबसे अधिक नुकसान सरकार और पूंजीपतियों का दलाल चाटुकार मीडिया कर रहा है। क्योंकि देश में जितनी भी चर्चा हो रही है सब मीडिया को आधार बनाकर हो रही है। मीडिया है कि वह वही दिखा रहा है। वह प्रकाशित कर रहा है जो सरकार चाह रही है।
जो लोग तब्लीगी जमात और पुलिसकर्मियों व मेडिकल टीम पर पत्थरबाजी के लिए मुस्लिम समुदाय को बदनाम कर रहे हैं। वे ठंडे दिमाग से सोचें कि क्या मोदी सरकार मुस्लिम समाज को विश्वास में ले पाई है। क्या मोदी सरकार में मुस्लिम समाज को मोदी सरकार पर बार-बार संदेह करने का मौका नहीं दिया गया। कभी एनआरसी, कभी एनपीआर और कभी सीएए के नाम पर मुस्लिम समाज को डराया नहीं गया ?
कोरोना कहर से बाद अब जो देश में माहौल है। ऐसे में भाईचारा और एकजुटता ही देश और समाज को संभाल सकते हैं। देश के सभी समुदाय मिलकर जब देश और समाज के उत्थान के लिए लगेंगे तभी ही देश संभाला जा सकता है। मोदी सरकार को कुछ ऐसे भी काम करने चाहिए कि जिससे मुस्लिम समाज में इस सरकार का विश्वास जगे।
प्रधानमंत्री को भगवान बनने का यह स्वभाव छोड़कर एक मानव की तरह जमीन पर आकर जमीनी काम करना पड़ेगा। देश में अभी भी बड़े स्तर पर गरीब लोग रहते हैं। कोरोना कहर के बाद तो यह गरीबी बढऩी तय है।
माहौल को डाइवर्ट करने में माहिर माने जाने वाले मोदी ने चीन में लगी कंपनियों में से बड़े स्तर पर अपने देश में लाने की एक चर्चा बाजार में छोड़ दी है। जिस अमेरिकी राष्ट्रपति ने उन्हें अनफॉलो कर दिया, वह अमेरिका से मोदी भारत में कंपनियों को लगवाने की उम्मीद कर रहे हैं। वैसे भी यदि लगती हैं तो कभी लगेंगी ? और कब चलेंगी ?
मौजूदा समय में विपक्ष को भी सही नहीं ठहराया जा सकता है। विपक्ष को भी जनता की कम और सत्ता की ज्यादा चिंता है। लंबे समय तक सत्ता में रहने वाले नेता सत्ता के लिए बेचैन हैं। जनता की ये लोग बात करते भी हैं तो बस वोटबैंक को ध्यान में रखते हुए।
चरण सिंह राजपूत