इनकी बात पर कभी कोई यक़ीन न करें, पर लॉक डाउन (#CoronavirusLockdown) का यथासंभव सख़्ती से पालन जरूर करे।
मोदी को नहीं, इस घातक बीमारी से बचने के उपाय को ज़रूर अपना समय दीजिए।
यह कोई महाभारत का युद्ध (War of mahabharata) नहीं है। न कोई और धर्मयुद्ध। तेज़ी से फैलने वाली एक वैश्विक महामारी (Global epidemic) है। इसीलिये ढोल-नगाड़े बजाने वालों और तलवारों को चमकाने वालों को दूर रखिए।
मोदी का सच यह है कि इन्होंने अब तक भारत को दुखों के सिवाय कुछ नहीं दिया है। कल ही जारी हुए विश्व ख़ुशहाली के सूचकांक में इन्होंने दुनिया के 156 देशों में 144 वें स्थान पर उतार दिया है।
मुसोलिनी इस मामले में हिटलर से भी दो कदम आगे था। भाषणबाज़ी में तब उसकी बराबरी का कोई नहीं था।
पर इन दोनों के ही व्यक्तिगत जीवन में किसी भी प्रकार की सादगी के आदर्श का कोई स्थान नहीं था। हिटलर दुनिया की सबसे बेहतरीन शराब और शबाब का शौक़ीन था। मुसोलिनी भी वैसा ही था।
इनकी तुलना में न रूस के लेनिन भाषणबाज थे और न स्तालिन ही। अपनी बातों को तार्किक ढंग से रखते थे, लेकिन उनकी बातों में कोई झूठ और आडंबर नहीं होता था। वे दोनों ही अत्यंत सादा और आदर्श जीवन जीते थे।
भारत में को सिर्फ़ गांधी और नेहरू ही नहीं, राष्ट्रीय आंदोलन के पूरे नेतृत्व की एक ही पूँजी हुआ करती थी — ‘सादा जीवन उच्च विचार’। इनके जीवन
इनकी तुलना में जब आप नरेन्द्र मोदी, अमित शाह, भाजपा के समूचे नेतृत्व निजी चरित्र पर गौर करेंगे तो इन सबको हिटलर-मुसोलिनी की श्रेणी में रख कर देखने में आपको जरा भी कष्ट नहीं होगा।
इनके नीचे के भी तमाम नेता शानदार और चमकदार भोगी जीवन से कोई परहेज़ नहीं करते। इनके नेताओं पर बलात्कार का आरोप सबसे आम पाया जाता है।
भाजपा का एक भी नेता आज के समय में कोई आदर्श पेश करता हुआ दिखाई नहीं देगा।
दरअसल, आरएसएस सैद्धांतिक तौर पर ऐसे निजी आदर्शों का विरोधी है। वे निजी जीवन में ज़िम्मेदारियों से पलायन का सुख भोगते हैं और आम लोगों को अपने कठपुतलों की तरह नचाने पर यक़ीन रखते हैं।
हमारा दुर्भाग्य है कि शक्तिशालियों के सामने आत्म-समर्पण की मानसिकता में आज भी फँसा हुआ भारत का गरीब और मध्यवर्गीय आदमी कुछ हद तक आज भी इनकी गिरफ़्त में है।
-अरुण माहेश्वरी