Hastakshep.com-देश-पत्रकारों की हत्याएं-ptrkaaron-kii-htyaaen

माल्या-अडानी के लिए पैसा है, किसान के लिए नहीं- पी साईनाथ

वाराणसी, 29 नवंबर 2019। देश के जाने-माने पत्रकार पी.साईंनाथ ने इस बात पर चिंता जताई है कि भारत में किसानों की आमदनी तेज़ी से कम हो रही है। किसान अपने ही खेतों में मज़दूर की तरह हो गए हैं जो कॉरपोरेट के फ़ायदे के लिए काम कर रहे हैं।

श्री साईनाथ शुक्रवार को पराड़कर भवन में पत्रकारों पर होने वाले हमलों के खिलाफ गठित समिति काज की उत्तर प्रदेश इकाई की ओर से आयोजित संवाद कार्यक्रम में बोल रहे थे। ग्रामीण इलाकों में पत्रकारिता के बुनियादी सवालों (Basic questions of journalism in rural areas) को उठाते हुए आंचलिक इलाकों के पत्रकारों की समस्याओं को रेखांकित कर रहे थे।

उन्होंने कहा कि ग्रामीण इलाकों में काम करने वाले पत्रकार सही मायने में काम कर रहे हैं। हमले भी इन्हीं पत्रकारों पर हो रहे हैं। हाल के सालों में जितने में पत्रकारों की हत्याएं (Killing journalists) हुईं उनमें सभी ग्रामीण पत्रकार थे और वो क्षेत्रीय भाषाओं में काम करते थे। अंग्रेजी अखबारों में काम करने वाले पत्रकारों पर हमले होते ही नहीं। देश में ऐसा कोई भी आंकड़ा मौजूद नहीं है। सियासी दल और माफिया गिरोह अंचलों में काम करने वाले पत्रकारों को ही निशाना बनाते रहे है। यह स्थिति बेहद चिंताजनक है।

उन्होंने पत्रकारों को सतर्क रहने की बात कहते हुए कहा कि ग्रामीण पत्रकारों पर हमले की घटनाएं बढ़ सकती हैं।

The agricultural crisis is not just a crisis in rural India, it will have a huge impact on the entire country.

साईनाथ ने किसानों के मुद्दों को भी जोरदार ढंग से उठाया। कहा कि कृषि की लागत बढ़ रही है और सरकार अपनी ज़िम्मेदारियों से बच रही है। कृषि को किसानों के लिए घाटे का सौदा बनाया जा रहा है ताकि किसान खेतीबाड़ी छोड़ दें और फिर कृषि कॉर्पोरेट के लिए बेतहाशा फ़ायदे का

सौदा हो जाए। देश में बीज, उर्वरक, कीटनाशक और साथ ही कृषि यंत्रों की कीमत उदारीकरण के बाद तेजी से बढ़ी है। पिछले तीन सालों में कृषि से जुड़ी आय में भारी कमी आई है जबकि लागत तेजी से बढ़ी है। पिछले दो दशकों से लागत लगातार बढ़ रही है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 4-5 लोगों वाले किसान परिवार की एक महीने की आय लगभग छह हज़ार रुपये है। कृषि संकट सिर्फ़ ग्रामीण भारत का संकट नहीं है, इसका समूचे देश पर व्यापक असर होगा।

किसान आंदोलन ऐसे स्थानों से शुरू हुए हैं, जहां सामान्यतः पिछले एक-दो दशकों में इनकी शुरुआत नहीं हुई है। सिर्फ़ किसानों के जीवन, कृषि पर निर्भर लोगों के जीवन और कृषि मज़दूरों के जीवन में झांककर ही समझा जा सकता है। आंकड़े झूठ बोलते हैं। कर्ज़ माफ़ी किसानों को राहत तो देती है, लेकिन ये उनकी समस्याओं का हल नहीं है।

साल 2008 में यूपीए सरकार ने कर्ज़ माफ़ी का ऐलान किया था, लेकिन इसके फ़ायदे ज़्यादातर किसानों तक नहीं पहुंच पाए। ज़्यादातर किसानों ने निजी कर्ज़ लिया है। ऐसे में कर्ज़ माफ़ी का फ़ायदा वो नहीं उठा पाते हैं। लेकिन यही सरकारें हर साल लाखों-करोड़ का कॉर्पोरेट क़र्ज़ माफ़ करती हैं।

After the ban on animals, the rural economy is collapsing

पी साईनाथ का कहना है कि पशुओं पर लगे प्रतिबंधों के बाद ग्रामीण अर्थव्यवस्था चरमरा रही है। साईनाथ ने कहा कि न ही बीती सरकार पशु संकट को लेकर चिंतित थी और न ही मौजूदा सरकार। उन्होंने कहा कि मौजूदा सरकार में ये संकट और गहरा रहा है। मवेशियों की बिक्री पर प्रतिबंधों के बाद ये संकट और गंभीर हो गया है। इससे न सिर्फ़ कसाइयों का व्यवसाय ख़त्म हुआ है, बल्कि ग़रीब लोगों की डाइट पर भी असर हुआ है। यदि ग्रामीण क्षेत्र में पशुओं की क़ीमत गिर रही है या बिक्री कम हो रही है तो इसका सीधा मतलब ये है कि उस क्षेत्र में संकट गहरा रहा है।"

Suicides are not the cause of the agrarian crisis but are the result of it

श्री साईनाथ ने कहा कि देश भर में किसानों की कुल आत्महत्याओं में से आधी से ज़्यादा छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश में होती हैं। एनसीआरबी के 2015 के डाटा के मुताबिक देश में हुए कुल किसान आत्महत्याओं में से 68 फ़ीसदी इन तीनों प्रदेशों में थी। इससे ये पता चलता है कि यहां गहरा कृषि संकट है। आत्महत्याएं कृषि संकट की वजह नहीं है बल्कि इसका परीणाम हैं। पिछले दो सालों में वास्तविकता में किसान आत्महत्याएं बढ़ी हैं, लेकिन डाटा कलेक्शन में फ़र्ज़ीवाड़े के कारण ये संख्या कम दिखेगी।

इस मौके पर यूपी जर्नलिस्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष रतन दीक्षित ने कहा कि ग्रामीण पत्रकारों की चुनौतियां बढ़ती जा रही हैं। इसके लिए अब लंबी लड़ाई लड़नी होगी। ग्रामीण पत्रकार एसोसिएशन के प्रदेश अधध्यक्ष सौरभ श्रीवास्तव ने कहा कि ग्रामीण पत्रकारों के दम पर भारत में पत्रकारिता जिंदा है। सच लिखते हैं इसीलिए उन पर हमले ज्यादा होते हैं। पत्रकार प्रेस क्लब के प्रदेश अध्यक्ष घनश्याम पाठक ने कहा कि पत्रकारों पर होने वाले हमलों के खिलाफ उनका संगठन लंबी लड़ाई लड़ने के लिए तैयार है। अगर सत्ता जानबूझकर पत्रकारों की आवाज दबाएगी तो उसके खिलाफ आर-पार की लड़ाई लड़ी जाएगी।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए जाने-माने पत्रकार-लेखक सुभाष राय ने कहा कि ग्रामीण पत्रकारों के समक्ष चुनौतियां बढ़ी हैं जिनका मुकाबला करने के लिए सभी पत्रकार संगठनों को एक मंच पर आना होगा। उन्होंने कहा कि आंचलिक इलाकों में ही पत्रकारिता जिंदा है। शहरों में कुछ घरानों और कारपोरेटरों के लिए पत्रकारिता की जा रही है। यह स्थिति ठीक नहीं है।

इससे पहले वरिष्ठ पत्रकार अभिषेक श्रीवास्तव की पुस्तक देशगांव का पी साईनाथ ने लोकार्पण किया।

कार्यक्रम में वरिष्ठ पत्रकार जितेंद्र कुमार, अनिल चौधरी, रामजी यादव, प्रभाशंकर मिश्र, जगन्नाथ कुशवाहा, बल्लभाचार्य, विकास दत्त मिश्र, मिथिलेश कुशवाहा, प्रदीप श्रीवास्तव, अंकुर जायसवाल, अमन कुमार, मंदीप सिंह, नित्यानंद, रिजवाना तबस्सुम, दीपक सिंह, अनिल अग्रवाल एके लारी, शिवदास समेत समूचे पूर्वांचल के पत्रकार उपस्थित थे।

कार्यक्रम के अंत में काज के यूपी के कोआर्डिनेटर विजय विनीत ने अतिथियों और पत्रकारों का आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम में 400  से अधिक पत्रकारों ने भाग लिया।