कभी हरियाणा तक राज करने वाले मराठों के स्वाभिमान को केंद्र में बैठे नेता लगातार ललकार रहे हैं। मराठों की इस बेबसी पर महेंद्रगढ़ में बना मराठों का किला महाराष्ट्र को उसका वजूद याद दिला रहा है। मराठों और अहमद शाह अब्दाली के बीच लड़ी गई पानीपत की तीसरी लड़ाई मराठों की ताकत को दर्शा रही है। भले ही मराठों ने कभी दिल्ली पर राज न किया हो पर स्वतंत्र राज के रूप में दिल्ली को हमेशा चुनौती दी है। आज जब लोकतंत्र आ गया है और जनता सर्वश्रेष्ठ हो गयी है तब भी भले ही मराठे देश की राजनीतिक राजधानी दिल्ली पर काबिज न हो पाये हों पर स्थायी तौर पर आर्थिक राजधानी पर आज भी उन्हीं का कब्जा है। हां केंद्र में भाजपा सरकार बनने के बाद छह साल से उन्हें अपमानित किया जा रहा है।
केंद्र के साथ ही अधिकतर राज्यों में राज करने वाली भाजपा से शिवसेना मात्र ढाई साल तक के लिए लिखित में मुख्यमंत्री पद मांग रही थी, जिसे भाजपा ने इनकार दिया, जबकि शिवसेना का कहना है कि उनकी भाजपा से ढाई साल तक मुख्यमंत्री पद की सहमति बनी थी। भाजपा का ऐसे में रहा जब शिवसेना लगातार 30 साल से भाजपा को समर्थन करती रही। चाहे शिव सेना के उसके सामने समर्पण की बात रही हो या फिर कारपोरेट को अपने अधीन करने का मामला। केंद्र सरकार ने कोई कसर नहीं छोड़ी।
सूबे के कद्दावर नेता शरद पवार को ईडी का नोटिस थमाकर केंद्र ने मराठा स्वाभिमान को खुली चुनौती दी। यही वजह रही है कि पवार ने एक बार फिर उसी पुराने मराठा इतिहास और परंपरा की याद केंद्र सरकार को दिलाई। उसका नतीजा यह हुआ कि मोदी
शिवसेना यह भलीभांति समझ रही थी कि भाजपा-सेना के गठबंधन का जो रास्ता था, वह सेना को खात्मे की ओर ले जा रहा था। पहले उससे मुख्यमंत्री पद छिना और फिर दोयम दर्जे का बना दिया गया और फिर उसके बाद लगातार भाजपा उसके वजूद को छोटा करती जा रही थी। ऐसे में गठबंधन को तोड़ना उसके लिए अपने वजूद को बनाए और बचाए रखना प्राथमिकता हो गया था। यह केंद्र का मराठों को सबक सिखाने के प्रति उतावलापन ही था कि राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी से राष्ट्रपति शासन की सिफारिश मंगाकर आनन-फानन में कैबिनेट की मंजूरी देकर उसे राष्ट्रपति के पास भेज दिया। पंजाब के दौरे पर गए राष्ट्रपति ने भी तुरंत उसका अनुमोदन कर दिया।
कांग्रेस और एनसीपी की यही गलती रही कि उन्होंने राज्यपाल के पास जाने के समय शिवसेना को समर्थन पत्र नहीं दिया। उन्हें समझना चाहिए था कि उनका सामना एक लोमड़ी से हो रहा है। लिहाजा उन्होंने जो गलती की है उसमें जल्द सुधार की जरूरत है। हालांकि सोनिया गांधी की ओर से हरी झंडी मिलने के बाद उद्धव ठाकरे के साथ कांग्रेस नेताओं की लगभग एक घंटे तक बैठक हुई है। उद्धव ठाकरे ने सकारात्मक संकेत भी दिये हैं। पर ऐन वक्त पर कांग्रेस-एनसीपी की बैठक रद्द होने से पेंच फंसा भी दिखाई दे रहा है।
इमरजेंसी में जब पूरा देश कांग्रेस के खिलाफ था तो बाला साहेब ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का साथ दिया। वह बात दूसरी है कि 1978 में हुए महाराष्ट्र विधानसभा और बीएमसी चुनाव में शिवसेना को हार का सामना करना पड़ा। हालांकि बाद में बाला साहेब के घोषित तौर पर हिंदुत्व के रास्ते पर चले जाने और इंदिरा गांधी का खुलकर विरोध करने पर दोनों का रास्ता अलग हो गया।
एक ऐसे समय में जबकि देश में संघ और भाजपा के नेतृत्व में फासीवादी जमात न केवल तांडव कर रही है बल्कि एक-एक कर लोकतांत्रिक संस्थाओं को ध्वस्त करने पर उतारू हैं। ऐसे समय में उसे सत्ता से हटाना किसी भी लोकतांत्रिक पार्टी का बुनियादी कर्तव्य हो जाता है। इस लिहाज से उसे कमजोर करने के किसी भी मौके को नहीं चूकना चाहिए। यह हमें नहीं भूलना चाहिए कि शिवसेना न केवल उसकी सहयोगी है बल्कि उसके वैचारिक जामे का भी हिस्सा है। ऐसे में उनके बीच टूट हिंदुत्व खेमे में एक बड़ी दरार साबित होगी, जो किसी भी राजनीतिक नुकसान से ज्यादा घातक होगा।
ऊपर से यह एक दौर की राजनीतिक जरूरत है और राजनीति तथा विचारधारा के द्वंद्वात्मक रिश्तों को भी किसी के लिए समझना जरूरी होता है। कई बार पहले विचारधारा आती है और फिर उसकी राजनीति तय होती है। लेकिन अपवादस्वरूप ही सही यह भी हो सकता है कि किसी दौर में कोई दल अपनी वस्तुगत राजनीति की जरूरतों के चलते अपनी विचारधारा को बदलने के लिए मजबूर हो जाए।
आज के दौर में फासीवाद के खिलाफ एक बड़ा मोर्चा (A big front against fascism) बनाना किसी के भी लिए बुनियादी लक्ष्य होना चाहिए। उसमें भाजपा से इतर जो भी दल उससे लड़ने के लिए तैयार हैं वह इस मोर्चे के स्वाभाविक हिस्से बन जाते हैं। यदि शिवसेना बनती है तो सोने पर सुहागा। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि पिछले छह सालों में तमाम विपक्षी नेताओं के मुकाबले शिवसेना ने अंदर रहते मोदी-शाह की जोड़ी का ज्यादा विरोध किया है। लिहाजा हर लिहाज से शिवसेना विपक्ष का तत्व बन जाती है और उसके साथ सरकार का गठन वक्त की जरूरत।
सी.एस. राजूपत
Moral responsibility of Congress-NCP to form Shiv Sena government!