Hastakshep.com-देश-Achhe din-achhe-din-football girl-football-girl-Motivational story-motivational-story-Neeraj Gurjar-neeraj-gurjar-अच्छे दिन-acche-din-नीराज गुर्जर की कहानी-niiraaj-gurjr-kii-khaanii

Motivational story of football girl Neeraj Gurjar winning the battle with cancer!

अजमेर ज़िले के किशनगढ़ क्षेत्र में स्थित है हासियावास गाँव (Hasiawas village is located in the Kishangarh area of Ajmer district). राष्ट्रीय राजमार्ग से हमारी गाड़ी खुंडियास की तरफ़ चली, पूछते-पूछते हम उस गाँव पहुँचें, जहां पर एक जाँबाज़ फ़ुटबालर रहती है जिसका नाम है नीराज गुर्जर (Neeraj Gurjar).

नीराज और उस जैसी दर्जनों लड़कियाँ ग्राम समाज की बंदिशों, आर्थिक तंगी और लड़की होने के नाते जिस तरह के बंधन थोंपे जाते हैं, उन सब बाधाओं को पार करके फ़ुटबाल के मैदान में जा खड़ी हुईं. सबसे पहले तो इन्हें यह कह कर हतोत्साहित किया गया कि फ़ुटबाल तो लड़कों का खेल है, तुम लड़कियाँ हो कर कैसे खेलोगी ? जब इन लड़कियों ने समाज के इस स्टीरियो टाइप मिथ को मानने से इंकार कर दिया तो लड़के धौंस जमाने लगे, वे अपना बैट और बॉल लेकर आ गए, उसी समय क्रिकेट खेलने जब लड़कियाँ खेलती थी. अभिभावकों को भी अच्छा बहाना मिल गया कि खेल मैदान पर तो लड़के आते हैं, तुम नहीं जा सकती.

समस्यायें बहुत सारी थी, मगर इन किशोरियों के मध्य कार्यरत महिला जन अधिकार समिति की बहनों ने मोर्चा सम्भाला और किशोरियों के माता पिता को समझाया. बेटियों के अभिभावक मान गये, फिर लड़कों से बात की गई, उन्होंने भी अपने खेलने का समय बदल लिया. लेकिन मुसीबतों का अंत कहाँ था ?

खेल मैदान ऊबड़ खाबड़ था, काँटे, पत्थर और खड्डे थे, ऐसे मैदान में भला कोई कैसे फुटबॉल खेल सकते हैं ?

तब हासियावास के ग्रामीणों ने अपनी बेटियों के लिए मैदान साफ़ करने के लिए चंदा उगाहा, अच्छा मैदान बना, जमकर प्रेक्टिस हुई तो लड़कियाँ गाँव की सरहद लांघ कर विजेता बनने लगी.

फ़ुटबाल टीम की वर्तमान कप्तान सुमन गुर्जर जिसे इस साल दसवीं बोर्ड में 94 प्रतिशत अंक मिले हैं, वह बताती है कि

“हम खेलने तो लग गई, पर कईं पाबंदियां भी थी, फ़ुल लैंथ कपड़े पहन कर खेलती थीं, जब एक रेजिडेंशियल शिविर में अजमेर गई तब पहली बार शॉर्ट्स पहन कर मैदान में उतरी, उस दिन लगा कि आज हम थोड़ी आज़ाद हुई हैं, उसके बाद तो पीछे मुड़कर भी नहीं देखा. आज हासियावास की लड़कियों की फ़ुटबाल टीम का इलाक़े में ही नहीं बल्कि ज़िले भर में बड़ा नाम है, यहाँ की टीम से डिस्ट्रिक्ट, स्टेट और तीन-तीन बार नेशनल खेलने प्लेयर जा चुकी हैं “.

नीराज जिसका ओरिजनल नाम नेराज है, वो अपने इस नाम से नाराज़ थी, क्योंकि गाँवों में अनचाही लड़कियों के ऐसे नाम रखे जाते हैं, इसलिये उसने अपना नाम थोड़ा बदल दिया है और अब वो नीराज बन गई है.

नीराज भी ग़ज़ब की फ़ुटबाल प्लेयर है, मैदान में उसकी फुर्ती देखते ही बनती थी, वो यहाँ की टीम की जान रही, उसके नाम पर कईं उपलब्धियाँ दर्ज हुई हैं, सब उसमें बड़ी फ़ुटबाल खिलाड़ी की उम्मीद पाले हुये थे कि अचानक नीराज थकने लगी, उसके पाँवों में दर्द होने लगा जो बढ़ते ही गया. शुरू-शुरू में तो वो दर्द निवारक गोलियाँ खाती रही, पर जब दर्द असहनीय हो चला तो उसे डॉक्टर के पास ले ज़ाया गया. अस्पताल में उसका ऑपरेशन किया गया, पर दर्द गया नहीं.

जाँचें हुई तो पता चला कि नीराज को कैंसर हैं, किसान माँ बाप के लिये यह किसी वज्रपात से कम न था. लेकिन नीराज के माता पिता ने तय किया कि वे अपनी बेटी का इलाज करायेंगे चाहे उसके लिए ज़मीन ही क्यों न बेचनी पड़े, उन्होंने क़र्ज़ा लिया और इलाज़ शुरू करवाया. बेटी से बीमारी का नाम तक गोपनीय रखा, ताकि उसका हौसला न टूट जाये. दूसरी तरफ़ नीराज को समझ ही नहीं आ रहा था कि उसे क्या हो गया है, वह ठीक क्यों नहीं हो पा रही है ?

जिस दिन उसे जयपुर स्थित भगवान महावीर कैंसर हॉस्पिटल इलाज़ हेतु ले ज़ाया गया, तब उसने अपने पिता से पूछा कि मुझे यहाँ क्यों लाया गया है, यह तो कैंसर वालों का हॉस्पिटल है ?

नीराज के पिता ने बेटी को दिलासा दिया -कुछ नहीं, तुम्हारी जाँच करवानी है, चिंता मत करो. लेकिन जल्द ही हक़ीक़त से पर्दा उठ गया, उसका इलाज़ शुरू हुआ, तब पता चल ही गया.

नीराज बताती है कि मेरे माता पिता की तरह ही वहाँ के डॉक्टर भी बहुत अच्छे हैं, वे सदैव मुझे मोटिवेट करते रहे कि तुम जल्दी ही ठीक हो कर एक दिन वापस मैदान पर जाओगी. अब तक नीराज आठ बार क़ीमोथेरपी करवा चुकी है, अब वह स्वस्थ और ऊर्जावान महसूस करती है. इलाज़ के चलते वह अपनी स्कूल में पढ़ाई रेगुलर नहीं रख पाई, लेकिन स्वयं पाठी छात्रा के रूप में उसने 74 % प्रतिशत अंक हासिल किये हैं.

The story of the football girl who emerged as the winner after fighting the cancer

कैन्सर से लड़कर विजेता के रूप में सामने आने वाली फ़ुटबाल गर्ल की उसकी कहानी सोशल मीडिया पर महिला जन अधिकार समिति से जुड़ी वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता इंदिरा पंचोली जी ने शेयर की. मैं पढ़कर दंग रह गया, सोचा किसी दिन इस हौसले वाली खिलाड़ी से ज़रूर जा कर मुलाक़ात करुंगा. फिर लंदन में रह रही युवा सामाजिक कार्यकर्ता रचना मोहिनी ने भी नीराज गुर्जर की कहानी मुझे टैग करते हुये शेयर की, तो और भी उत्कंठा जगी कि जाकर मिल ही आऊँ.

संयोग देखिये कि स्वाधीनता दिवस की सुबह मैंने किसी काम से पीयूसीएल राजस्थान की प्रेसिडेंट कविता श्रीवास्तव जी को कॉल किया तो उन्होंने बताया कि हम नीराज से मिलने जा रहे हैं, तुम भी चलो हमारे साथ. क्या मैं ना कह पाता ? जैसी स्थिति में था, भागता हुआ कविता जी के घर पहुँचा, वहाँ से एक निजी टैक्सी से कविता जी, कमल जी और प्रधन्या देशपांडे जी के साथ हासियावास के लिए चल दिए, दोपहर एक बजे हम जब उस गाँव में घुसे तो बहुत सारी बच्चियों को गेम ड्रेस में देखा। गाँव की हथाई पर एक छोटा सा टेंट लगाया गया था,जहां ग्राम पंचायत के सरपंच हरिकिशन जी और पूर्व सरपंच गोगी बाई सहित बालिकाएँ व उनके अभिभावक आए हुए थे.

हमने नीराज से उसके खेल प्रेम और कैंसर से जंग जीतने की प्रेरक कहानी सुनी। बताते हुये उसकी आँखें कईं बार नम हुई, आँसू भी निकले, पर हार के नहीं जीत के और लोगों से मिले प्यार के लिए धन्यवाद के.

नीराज को सुनते हुये हम भी बहुत भावुक हुये, पर उसके हौसले को देखकर ताज्जुब भी हुआ कि उसने कैन्सर जैसी बीमारी को भी खेल मैदान के चैलेंज के रूप में ही लिया और बीमारी को भी हरा कर ही मानी.

कविता जी ने हासियावास की इस हौसलेमंद बेटी के लिए ख़ूब ज़िंदाबाद के नारे लगवाये. उन्होंने बताया कि महिला संगठनों की ओर से नीराज के लिए पच्चीस हज़ार की मदद की जायेगी. इस अवसर पर नीराज को एक चेक भी सौंपा गया ताकि वो अपनी पढ़ाई  कंटीन्यू कर सके.

नीराज को सोशल मीडिया पर उसकी कहानी पढ़कर जो संदेश आये, उन सबकी एक तस्वीर भी दी गई. उसके लिए और भी गिफ़्ट दिये गये. उसकी साथी खिलाड़ियों और अच्छे अंक लाने वाली प्रतिभाशाली लड़कियों को भी उपहार इनाम दिये गये.

हासियावास की किशोरी बालिकाओं की फ़ुटबाल टीम ग़ज़ब की है, इसमें ज़्यादातर खिलाड़ी गुर्जर समुदाय की है, लेकिन मेघवाल व वाल्मीकि समुदाय की भी प्रतिभावान खिलाड़ी इस टीम का मज़बूत हिस्सा हैं। इन बेटियों की खेल भावना और टीम स्पिरिट के सामने जाति की दीवारें भी कमजोर हुई हैं, सब मिलकर खेलती है, मिलकर पढ़ती हैं, साथ रहती हैं. पूरा गाँव अपनी बेटियों के पीछे चट्टान की तरह मज़बूती से खड़ा है, उनकी पढ़ाई व खेल ठीक से चले इसके लिए ग्रामीण अपनी मेहनत मज़दूरी की गाढ़ी कमाई से पैसा देते हैं.

हासियावास के ग्रामीणों और उनकी बेटियों के साथ 15 अगस्त मनाकर लगा कि वाक़ई एक सार्थक स्वाधीनता दिवस मनाया, जहां आज़ादी को ग्रासरूट स्तर तक उतरते देख पाना एक सुखद अनुभूति रही.

सबसे ज़्यादा प्रेरक क्षण नीराज गुर्जर जैसी जाँबाज़ और हौंसले वाली खिलाड़ी से मुलाक़ात करना रहा. कैंसर का नाम सुनकर ही लोगों की हिम्मत टूट जाती है, पर हासियावास की इस बेटी ने उससे दो-दो हाथ करके उसे हरा दिया और अपनी हिम्मत को बरकरार रखा है. नीराज की नानी और माँ तथा उसके पिताजी से भी मुलाक़ात हुई. बेटी के लिये अपना सर्वस्व दांव पर लगा कर साबित कर दिया कि वे वाक़ई बेटे और बेटी में कोई फ़र्क़ नहीं करते हैं.

अंत में मैं महिला जन अधिकार समिति अजमेर के साथियों को साधुवाद देता हूँ जो नीराज के इस संघर्ष में हर कदम साथ खड़े रहे और आज भी खड़े हैं. जिन साथियों ने आर्थिक सहायता की वे भी आभार व धन्यवाद के हक़दार हैं, उनके द्वारा दिया गया योगदान नीराज की भावी ज़िंदगी को संवारेगा. उम्मीद है कि और भी लोग आगे आयेंगे ताकि नीराज और उसका परिवार भविष्य में एक ख़ुशहाल और क़र्जमुक्त ज़िंदगी जी सके तथा वो अपना खेल और पढ़ाई जारी रख पाये.

- भंवर मेघवंशी

( सम्पादक - शून्यकाल डॉटकॉम )