जब से हम पढ़ना शुरू किए, कायदे से किसी से प्रभावित नहीं हो सके। लोग पूछते थे बचपन में कि बेटा तुम्हारा आदर्श कौन है, हम बताने में लटपटा जाते थे। बहुत बाद में समझ में आया कि एकाध लोगों से प्रेरणा ली जा सकती है। उस समय हम लोग मार्क्स-लेनिन को पर्याप्त पढ़ते थे, लेकिन उनमें जाने क्यों प्रेरणा कभी नहीं दिखी। वो लोग क्रांति के लिए रिजर्व खाते में थे। जो एकाध लोग निजी जीवन में कायदे से प्रेरणा लेने लायक समझ में आए, उनमें दो प्रमुख रहे- जे. कृष्णमूर्ति और राहुल सांकृत्यायन। बनारस में रहते हुए इनको पढ़े भी खूब। राहुल बहुत खींचते थे अपनी ओर। दिक्कत यह थी कि हमारे जवान होने तक दोनों गुज़र चुके थे।
''बड़ा आदमी'' समझ रहे हैं न? मने, जिस किस्म की क्षुद्रताओं में हम लोग जीने के आदी हैं, उनसे बहुत दूर।
हम लोगों का जीवन हाइपर-पॉलिटिकल हो चुका है जबकि हम लोग हैं बहुत बौने इंसान। छोटे आदमी, छोटी सोच, छोटे कर्म, छोटे-छोटे कनविक्शन, छोटे-छोटे पाप। छुटपन के कुएं में हम लोग एक-दूसरे की क्षुद्रताओं को देख-देख कर ही टाइमपास किए जा रहे हैं। बुद्ध, राहुल, कृष्णमूर्ति, रजनीश, कृष्णनाथ, यहां तक कि अमृतलाल वेगड़ जैसे लोग इसीलिए मुझे हमेशा खींचते रहे हैं।
आप ''नए जीवन दर्शन की
कल जंतर-मंतर पर हुए हिंदी जगत के ''शोकनाच'' के बाद कृष्णनाथ जी की आज मौत से जाने क्यों ऐसा लग रहा है कि एक दिन जहाज पर सिर्फ चूहे बचेंगे। इन चूहों के कुतरने से हम जीवन की महिमा को बचा पाएंगे या नहीं वीरेनदा, मुझे शक़ है। मेरा ब्लड प्रेशर ठीक है, फिर भी लग रहा है कि ये जहाज डूबने वाला है।
अभिषेक श्रीवास्तव