समुद्र के अंदर क्या हलचल चलती रहती है यह जानने की उत्सुकता हर जिज्ञासु को होती है। जमीन की सतह से सैकड़ों किलोमीटर पानी के अंदर कौन-से जीव रहते हैं (What creatures live under water) उनका आकार, प्रकार, प्रजाति क्या है, उनका रंग कैसा होता है वे क्या खाते हैं, कितने सालों तक जिन्दा रहते हैं आदि।
मन में ऐसे सवाल उठते हैं - क्या समुद्र मछलियों से भरा है? क्या केकड़ों की आबादी मछलियों पर भारी पड़ती है? क्या समुद्र में रहस्यमयी जल परियां भी रहती हैं? अब इन जिज्ञासाओं का जवाब मिल गया है।
10 सालों से लगातार अस्सी देशों के लगभग ढाई हजार से ज्यादा वैज्ञानिक महासागरों के अंदर जीवों की दुनिया खंगालने में जुटे थे। इस विशाल प्रोजेक्ट के जरिए समुद्री जीवन के बारे में कई दिलचस्प जानकारियां सामने आई हैं जिनकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते थे।
जैव प्रजातियों की गणना (Bio species count) करने वाले वैज्ञानिकों ने समुद्री जीवों की गिनती और उनका वर्गीकरण लगभग पूरा कर लिया है। कोई बड़ी अड़चन न हुई तो 2020 के पहले ही वैज्ञानिक इस स्थिति में होंगे कि वे दावा कर सकें कि समुद्र में कुल कितने जीव और कुल कितनी प्रजातियां हैं। लगभग 95 प्रतिशत प्रजातियों की गणना का काम पूरा हो चुका है और बहुत से चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। मसलन समुद्री जीवों में मछलियों की संख्या तो बहुत कम है, जबकि दो सदी पहले तक समझा जाता था कि समुद्र मछलियों से भरा है।
वास्तव में समुद्र में सबसे ज्यादा प्रजातियां केकड़ों, झींगों, क्रेबफिश यानी चिंगट और श्रिंप की पाई जाती हैं। ये कुल
इस विशाल कार्यक्रम में अस्सी देश शामिल हुए। इन देशों के 2700 से ज्यादा वैज्ञानिक दिन रात इस कार्य में जुटे और अब तक इस कार्य पर करीब 70 करोड़ अमेरिकी डॉलर खर्च हो चुके हैं।
इस परियोजना के बाद ही यह सच सामने आया कि हम समुद्री जीवजगत के बारे में कितना कम जानते हैं। इस अभियान के बाद ही यह पता चला कि जिन समुद्री जीवों को हम जानते हैं (मसलन व्हेल, सी लायन, सील, सी बर्ड, कछुए और दरियाई घोड़े आदि) उनकी तादाद समुद्र में बहुत ज्यादा नहीं है। ये कुल समुद्री जीवों का महज एक फीसदी हैं।
समुद्री जीव इलाकाई हैं Sea creatures are local
एक और बात पता चली कि सभी समुद्री जीव यायावर नहीं होते। तमाम स्थलीय जीवों की तरह ही ये भी अपने इलाके में सीमित रहते हैं। यह तो नहीं कहा जा सकता कि वे घर या घोंसला बनाकर रहते हैं, लेकिन इन्हें भी अपने उस इलाके के पर्यावरण से मोह होता है। समुद्री जीवन की गणना की इस परियोजना के प्रमुख लेखक न्यूजीलैंड के मार्क कॉस्टेलो के मुताबिक ये प्रजातियां घरेलू किस्म की हैं। ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, अंटार्कटिका और साउथ अफ्रीका के वे इलाके, जो अलग-थलग पड़े हैं, इन घरेलू प्रजातियों के सबसे पसंदीदा इलाके हैं।
एक दिलचस्प जानकारी सामने आई है कि आम तौर पर प्राणी जितने बड़े होते हैं उनमें विविधता उतनी ही कम होती हैं। तुलनात्मक रूप से मछलियां बड़े आकार की प्राणी हैं इसलिए उनकी प्रजातियों की संख्या छोटे-छोटे जीवों की तुलना में बहुत कम है। मसलन क्रम्पटन या क्रस्ट मोलस्क विविधता के मामले में मछलियों से कहीं आगे हैं। न्यूजीलैंड और अंटार्कटिका में मिलने वाली प्रजातियों में आधी ऐसी हैं जो दुनिया में और कहीं नहीं मिलतीं। समुद्री जीवों में सबसे सामाजिक प्राणी शायद वाइपरफिश है जो दुनिया के एक चौथाई समुद्रों में पाई जाती है।
इस परियोजना का एक निष्कर्ष यह है कि समुद्री जीवों के लिहाज से दुनिया के सबसे बढ़िया सागर ऑस्ट्रेलिया, जापान और चीन के हैं। यहां सबसे ज्यादा जैव विविधता पाई जाती है। इन तीनों समुद्री क्षेत्रों में बीस हजार से ज्यादा प्रजातियां हैं। गणना का अंतिम रूप सामने आएगा, तब अनुमान के मुताबिक हमें दो लाख तीस हजार समुद्री जीवों के बारे में विस्तृत जानकारी होगी।
डॉ. कॉस्टेलो के मुताबिक वैसे प्रजातियों की संख्या दस लाख से ज्यादा है। इस परियोजना से जुड़े वैज्ञानिकों के मुताबिक दस साल मेहनत करने के बाद हम आज समुद्री जीवन के बारे में पहले से दस गुना ज्यादा जानते हैं। यह जीव-गणना हमें समुद्री जीवन की बेहतर समझ देती है कि कौन-सी प्रजाति वास्तव में कहां रह रही है? इसके आधार पर समुद्री जीवन का प्रबंधन और संरक्षण बेहतर तरीके से किया जा सकता है।
समुद्र की गहराइयां | Deep sea | New species of aquatics
पुराने समय में जलचरों की नई प्रजातियां खोजने के लिए वैज्ञानिक मुख्यत: जाल और जहाज का सहारा लेते थे। जहाज में पीछे की तरफ बड़ा-सा जाल लटका दिया जाता था, इस जाल में बड़ी संख्या में मछलियां, केकड़े आदि फंस जाते थे। इनमें से अलग और अनोखे दिखने वाले जलचरों को अलग कर लिया जाता और बाकी को वापस समुद्र में छोड़ देते थे। लेकिन यह तरीका इतना कारगर नहीं होता था। नई तकनीकों के साथ अब वैज्ञानिक सागर की गहराइयों में खुद उतरकर अध्ययन करते हैं। इस काम के लिए वे एक छोटी कमरेनुमा पनडुब्बी का प्रयोग करते हैं जो तमाम सुविधाओं से लैस रहती है। जैसे, अंधेरे में फोटो खींचने वाला कैमरा (Photo camera in the dark), ऑक्सीजन, कम्प्यूटर व सुरक्षा सम्बंधी सारे इंतजाम। इस पनडुब्बी में दो से तीन लोग बैठ सकते हैं और यह सतह पर मौजूद जहाज के साथ लगातार संपर्क में रहती है।
When was the first submarine built?
पहली बार सन 1930 में बाथीस्केयर नामक पनडुब्बी का निर्माण किया गया था। स्टील की गेंद सरीखी यह पनडुब्बी सुरक्षा और सुविधाओं के मामले में काफी पिछड़ी हुई थी।
संध्याराय चौधरी
(देशबन्धु)