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चार राज्यों व एक केन्द्र शासित प्रदेश के चुनावों के संदर्भ में लिया गया आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट का राष्ट्रीय राजनीतिक प्रस्ताव

National political proposal of All India People's Front taken in the context of elections of four states and one union territory

   यह चुनाव देश में लोकतंत्र के लिए बेहद स्वागतयोग्य है. इसमें अपनी पूरी ताकत लगाने के बावजूद, चुनाव आयोग जैसी संस्था को पार्टी काम में लगाने के बावजूद आरएसएस और भारतीय जनता पार्टी के चुनावी अभियान को पंश्चिम बंगाल की जनता ने करारी शिकस्त दी है और ममता की तृणमूल कांग्रेस वहां विजयी हुई है। केरल में भी अप्रत्याशित परिणाम दिखा है और वहां वाम गठबंधन को एक बार फिर पुरानी परंपरा को नकारते हुए सरकार बनाने का मौका मिला है। तमिलनाडु में भी भाजपा गठबंधन को शिकस्त मिली है जो कि स्वागतयोग्य है।

लेकिन इस आधार पर इधर बहुतेरे लोगों ने अति उत्साह में देश में ममता केंद्रित राष्ट्रीय विपक्ष की बात शुरू कर दी हैं। ऐसा कोई भी विपक्ष राष्ट्रीय राजनीति में स्थिर और कारगर नहीं हो पायेगा जिसके पास जनोन्मुखी कार्यक्रम और जन दिशा न हो। 90 दशक की राजनीति का दोहराव अंततोगत्वा आरएसएस और भाजपा की ही राजनीतिक को मजबूत करेगा।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी की राजनीतिक चुनौती देश में लोकतंत्र के लिए गंभीर खतरा है, इसे कहीं से भी कम आंकने की जरूरत नहीं है।

केरल जैसे राज्य में भी 10 % से भी अधिक मत प्राप्त करना इस खतरे की गहराई को दिखाता है।  भाजपा के इस खतरे से कैसे निपटा जाये और किस तरह देश में लोकतांत्रिक राजनीति विकसित किया जाये, यह

एक बहुत बड़ा कार्यभार है। इन 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव के बाद उत्तर प्रदेश में भी 2022 में अन्य राज्यों के साथ चुनाव होना है. उत्तर प्रदेश में ही परीक्षा की असली घड़ी होगी जहां योगी सरकार की तानाशाही चल रही है और आरएसएस राजनीति की प्रयोगस्थली बना हुआ है। उत्तर प्रदेश में भाजपा को शिकस्त देने के लिए किसान आंदोलन के साथ-साथ दलितों की स्वतंत्र राजनीतिक गोलबंदी बड़ी भूमिका निभायेगी । इस दिशा में यहां ऊर्जा लगानी है।

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