यह चुनाव देश में लोकतंत्र के लिए बेहद स्वागतयोग्य है. इसमें अपनी पूरी ताकत लगाने के बावजूद, चुनाव आयोग जैसी संस्था को पार्टी काम में लगाने के बावजूद आरएसएस और भारतीय जनता पार्टी के चुनावी अभियान को पंश्चिम बंगाल की जनता ने करारी शिकस्त दी है और ममता की तृणमूल कांग्रेस वहां विजयी हुई है। केरल में भी अप्रत्याशित परिणाम दिखा है और वहां वाम गठबंधन को एक बार फिर पुरानी परंपरा को नकारते हुए सरकार बनाने का मौका मिला है। तमिलनाडु में भी भाजपा गठबंधन को शिकस्त मिली है जो कि स्वागतयोग्य है।
लेकिन इस आधार पर इधर बहुतेरे लोगों ने अति उत्साह में देश में ममता केंद्रित राष्ट्रीय विपक्ष की बात शुरू कर दी हैं। ऐसा कोई भी विपक्ष राष्ट्रीय राजनीति में स्थिर और कारगर नहीं हो पायेगा जिसके पास जनोन्मुखी कार्यक्रम और जन दिशा न हो। 90 दशक की राजनीति का दोहराव अंततोगत्वा आरएसएस और भाजपा की ही राजनीतिक को मजबूत करेगा।
केरल जैसे राज्य में भी 10 % से भी अधिक मत प्राप्त करना इस खतरे की गहराई को दिखाता है। भाजपा के इस खतरे से कैसे निपटा जाये और किस तरह देश में लोकतांत्रिक राजनीति विकसित किया जाये, यह