बीस लाख करोड़।
जीडीपी का दस प्रतिशत।
आत्मनिर्भर अर्थ व्यवस्था।
जीडीपी शून्य से नीचे है। तो इसका बीस प्रतिशत कितना होगा?
कारोबार और उद्योग धंधे को दो महीने में जो नुकसान हुआ है, नौकरियां और आजीविका जिस पैमाने पर खत्म हुई है और खेती किसानी जैसे खत्म हुई है, उसके बाद पूंजीपतियों के पास भी वर्किंग कैपिटल नहीं है। 20 लाख करोड़ किसे, कब और कैसे देंगे जबकि वित्तीय घाटा और राजस्व घाटा से खजाना खाली है?
इन जुमलों का हक़ीक़त का तो बाद में पता चलेगा।
बहरहाल जनता खुश है। सरकार की आलोचना अब लोकतंत्र नहीं देशद्रोह है।
कोरोना से लड़ाई का आलम यह है कि तुगलकी फरमान जारी करके लॉक डाउन से पहले देशभर में फँसे करोड़ों लोगों को घर वापसी के लिए एक दिन की मोहलत भी नहीं दी गयी। फरमान था, जो जहां हैं वहीं रहे।
भूख और बेरोजगारी से परेशान लाखों मजदूर जब जैसे तैसे पैदल डेढ़ हजार मील के सफर पर निकल पड़े तो उनकी सुधि नहीं ली गयी। उन पर बर्बर अत्याचार हुए। भूख प्यास दुर्घटना से लोग मरते रहे तो उनकी कहीं सुनवाई नहीं हुई। कहा गया कि राशन पानी छत सरकार देगी।
50 दिनों में ही मजदूरों को कुत्तों बिल्लियों की तरह महानगरों के कोरोना इलाकों से खदेड़ा जाने लगा। इनमें ज्यादातर लोग कोरोना पॉजीटिव हैं, जो लॉकडाउन से पहले बीमार नहीं थे।
ग्रीन ज़ोन की हालत यह है कि हम उत्तराखण्ड में हैं, एक सवारी वाली टुकटुक की भी
कल कारखानों में तैयार माल की खपत नहीं है तो नया माल कैसे तैयार करेंगे? कहाँ बेचेंगे, किसे बेचेंगे? कच्चा माल कहाँ से लाएंगे।
मजदूरों को अर्थव्यवस्था खोलने के पहले गांवों में खदेड़कर पहाड़ों तक को रेड ज़ोन बनाने की तैयारी हो गयी। अब जब सामुदायिक संक्रमण होगा तो उससे कैसे निबटेंगे।
अमेरिका में जिस तरह ट्रम्प अर्थव्यवस्था खोलने के लिए आम जनता को खत्म करने पर तुले हैं, क्या उसी तरह की योजना है?
अपनी बारी आने तो ताली थाली बजाएं और दिया जलाएं।
जिस तेजी से डॉक्टर, नर्स, स्वास्थ्यकर्मी,पुलिस, अर्द्ध सैनिक बल, नौसेना और सेना में कोरोना फैल रहा है, इससे जाहिर है कि कोरोना योद्धाओं का कैसे सम्मान हो रहा है। इस संक्रमण का औसत निकालकर 138 करोड़ जनता का हिसाब लगाकर देखें कि वास्तव में कितना धोखा और फरेब यह राजकाज है।
कहते हैं कि नीरो खूब बजाता था और हिटलर से बेहतर कोई बोल नहीं सकता।
अब देखना है कि निर्मला सीतारमन अपनी थैली से कैसे-कैसे आंकड़े निकालती हैं।
इंतज़ार करें।
आपकी निगरानी हो रही है।
बोले नहीं कि पता नहीं क्या हो जाएगा।
बेहतर है कि योग प्राणायाम करके शांति से स्वर्गवास की तैयारी करें।
बंगाल में मरणासन्न लोगों से प्रायश्चित कराने की परंपरा है। यह राजकाज का कर्मकांड वही है।
कोई महापुरोहित मंत्रोच्चार और कर्मकांड से सारी विपदा, सारी बाधाओं को दूर करने के लिए ग्रह दोष निवारण कर रहे हैं।
कोई महा जादूगर हवा में भारत का नवनिर्माण कर रहे हैं।
श्रोताओं दर्शको की सम्मोहित दशा है। इंद्रियां स्थगित है। जैसे अर्थव्यवसथा स्थगित है।
जैसे नौकरियां, कारोबार, आजीविका, काम धंधे, शिक्षा चिकित्सा, मौलिक अधिकार, नागरिक और मानव अधिकार स्थगित हैं।
श्रम कानून जैसे खत्म हैं वैसे ही स्थगित है सारे कानून और कानून का राज। स्थगित है संविधान, लोकतंत्र, इतिहास और भूगोल।
सावधान, धारा 188 लागू है और सामूहिक अंत्येष्टि की पूरी तैयारी है।
पलाश विश्वास
दिनेशपुर