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किसानों के आंदोलन पर एल. एस. हरदेनिया की टिप्पणी

News & Politics/Avid News Readers: LS Herdenia commented on the farmers' movement

आजादी के बाद दो महाआंदोलन हुए जिनके सामने तत्कालीन केंद्रीय सरकारों को झुकना पड़ा। इनमें से पहला आंदोलन 1956-57 में हुआ था और दूसरा 1965 में। पहले आंदोलन का संबंध महाराष्ट्र राज्य के निर्माण से था।

आंध्र में भाषा आधारित राज्य के निर्माण की मांग को लेकर एक सामाजिक कार्यकर्ता ने आमरण अनशन प्रारंभ किया था। उनका नाम पोटटू रामुलू था। अनशन के दौरान उनकी मृत्यु हो गई जिससे बहुत हंगामा खड़ा हो गया। जिसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने राज्य पुनर्गठन आयोग का गठन किया। इस आयोग को यह जिम्मेदारी दी गई कि वह ऐसा फार्मूला बनाए जिसके आधार पर राज्यों का पुनर्गठन किया जाए। आयोग ने सिफारिश की कि राज्यों का निर्माण का आधार भाषा हो। तदनुसार अनेक राज्यों का गठन किया गया। परंतु मराठी और गुजराती भाषाओं के आधार पर राज्य नहीं बनाए गए।

इससे भारी असंतोष व्याप्त हो गया और बड़े पैमाने पर हिंसा हुई। उस दौरान मैं नागपुर विश्वविद्यालय (Nagpur University) का

छात्र था। महाराष्ट्र की मांग को उचित मानते हुए मैं भी आंदोलन से जुड़ गया। उस समय भी महाराष्ट्र की मांग को लेकर लाखों लोगों ने दिल्ली के लिए पैदल मार्च किया था।

‘‘मुंबई सह महाराष्ट्र झाला पाहिजे” उस आंदोलन का नारा था। मैं भी मार्च में शामिल था। जब नेहरूजी से पूछा जाता था कि वे महाराष्ट्र और गुजरात राज्य क्यों नहीं बनने दे रहे हैं तो वे मजाक के लहजे में कहते थे कि मेरी एक बहन की ससुराल महाराष्ट्र में है और दूसरी बहन की गुजरात में। मैं नहीं चाहता कि वे अलग-अलग राज्यों में रहें। इसके बावजूद मराठी भाषियों की जोरदार मांग के आगे उन्हें झुकना पड़ा।

दूसरा महान आंदोलन तमिलनाडु में हुआ।

संविधान में इस बात का प्रावधान किया गया था कि 1965 के बाद अंग्रेजी लिंक लैंग्वेज नहीं रहेगी। इसका अर्थ यह था कि 1965 के बाद प्रशासकीय कार्य अंग्रेजी में ना होकर हिंदी में होने लगेगा। इस बात को लेकर तमिलनाडु में भारी आक्रोश था। पूरे तमिलनाडु में आंदोलन प्रारंभ हो गया। बड़े नगरों में हिंसक घटनाएं हुईं। हवाई जहाजों, बसों और ट्रेनों का आवागमन ठप्प कर दिया गया।

उन दिनों लाल बहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री थे। शास्त्रीजी के आदेश पर इंदिरा गांधी तमिलनाडु गई।

उस समय स्थिति बहुत गंभीर थी। पूरा तमिलनाडु धू-धू कर जल रहा था। आक्रोषित लोग मद्रास हवाई अड्डे को घेरे हुए थे। इंदिरा गांधी ने मद्रास पहुंचने के पहले यह संदेश भेजा कि किसी पर भी बिना उसकी मर्जी के कोई भाषा लादी नहीं जाएगी। ज्योंही उनका यह संदेश पहुंचा गुस्सा ठंडा पड़ गया।

इस तरह दोनों बार तत्कालीन सरकारों ने जन भावनाओं के सामने घुटने टेके। 

वर्तमान में भी किसानों का एक बड़ा हिस्सा उतना ही बड़ा आंदोलन कर रहा है। लंबे समय से कड़कड़ाती ठंड में पंजाब के किसान और उनके समर्थक खुले आसमान के नीचे बैठे हैं। इस बीच कुछ आंदोलनकारियों की मौत हो गई है। एक संत ने आंदोलनकारियों के समर्थन में आत्महत्या कर ली है।

आंदोलन को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने गंभीर चिंता प्रकट की है। कोर्ट ने चेतावनी दी है कि कहीं मामला हाथ से ना निकल जाए।  कोर्ट ने यह भी कहा है कि किसानों के इस मसले का यदि जल्द हल ना हुआ तो यह एक राष्ट्रीय मुद्दा बन जाएगा। कोर्ट ने एक संयुक्त समिति बनाने का संकेत दिया है।

अभी तक प्रधानमंत्री बार-बार कह रहे हैं कि मैं किसी भी हालत में तीनों कानून वापस नहीं लूंगा। वैसे सरकार वार्ता तो कर रही है परंतु गंभीरता से नहीं।

प्रसिद्ध चिंतक और स्वराज इंडिया के अध्यक्ष योगेंद्र यादव का कहना है कि किसान आंदोलन को लेकर चल रही वार्ताओं में सरकार का रवैया अजीब है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को याद रखना चाहिए कि देश एक लंबे समय तक पंजाब के निवासियों, विशेषकर सिक्खों के आक्रोश को भुगत चुका है। ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद शुरू हुआ हिंसा का सिलसिला बीसवीं सदी के अंतिम दशक के मध्य तक चलता रहा। उस आक्रोश के चलते हमने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को खोया।

Punjab has contributed a lot in the development of the country.

वैसे भी पंजाब का देश के विकास में काफी योगदान रहा है। भाखड़ा  नंगल बांध के निर्माण के बाद पंजाब में गेहूं उत्पादन में भारी बढ़ोतरी हुई है जिससे देश की भुखमरी की समस्या स्थाई रूप से हल हो गई। कभी-कभी लाड़ला बच्चा अपनी मांग को लेकर मां को बहुत परेशान करता है। मां कहती है कि मैं तेरी मांग कभी पूरी नहीं करूंगी। परंतु अंत में मां मान जाती है। प्रधानमंत्री को पंजाब के किसानों से वैसा ही व्यवहार करना चाहिए जैसा एक मां अपने बच्चे के साथ करती है।

एल. एस. हरदेनिया। लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।
एल. एस. हरदेनिया। लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।

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