नई दिल्ली, 17 नवंबर 2019. जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी (Maulana Arshad Madani, president of Jamiat Ulema-e-Hind) ने कहा है कि उनका संगठन अयोध्या जमीन विवाद मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले (Supreme Court verdict in Ayodhya land dispute case) के खिलाफ शीर्ष न्यायालय में पुनर्विचार याचिका दायर करेगा।
मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि कोई भी मुस्लिम किसी मस्जिद को उसकी मूल जगह से कहीं और स्थानांतरित नहीं कर सकता, इसलिए मस्जिद के लिए कहीं और जमीन स्वीकार करने का सवाल ही पैदा नहीं होता।
मीडिया को एक बयान जारी कर मौलाना अरशद मदनी ने कहा,
"सुप्रीम कोर्ट ने एक समाधान निकाला है, जबकि जमीयत उलेमा-ए-हिंद यह कानूनी लड़ाई सालों से लड़ रही है। एक हजार पन्नों के अपने फैसले में शीर्ष अदालत ने मुसलमानों के अधिकांश तर्कों को स्वीकार कर लिया है और एक कानूनी विकल्प अभी भी शेष है।"
उन्होंने कहा,
"भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की रिपोर्ट के साथ अदालत ने इस बात को स्पष्ट किया कि मस्जिद किसी मंदिर को तोड़कर नहीं बनी थी। 1949 में गैर-कानूनी रूप से मस्जिद के बाहरी आंगन में मूर्तियों को रखा गया था। इसके बाद इन्हें स्थानांतरित करके गुंबददार संरचना के अंदर रखा गया और इस दिन तक मुस्लिम वहां नमाज पढ़ रहे थे।"
"कोर्ट ने भी मना कि 1857 और 1949 तक मुसलमान वहां नमाज पढ़ते आ रहे थे, तो फिर 90 साल तक जिस स्थान पर नमाज पढ़ी गई हो, उसे मंदिर को देने का फैसला समझ से परे है।"
"पुनर्विचार याचिका पर मुश्किल से ही अदालत के निर्णय बदले जाते हैं। फिर भी
अपने बयान में मदनी ने यह भी कहा कि अगर मस्जिद को नहीं तोड़ा गया होता तब भी क्या कोर्ट मस्जिद तोड़कर मंदिर बनाने का फैसला सुनाता ?